बिहार उपचुनाव में प्रशांत किशोर की अग्निपरीक्षा, आज ही तय हो जाएगा भविष्य?

7 hours ago 2

पटना : नरेंद्र मोदी से लेकर नीतीश कुमार तक की चुनावी रणनीति को लीड कर चुके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर अब अपनी पार्टी जन सुराज को बिहार में लीड कर रहे हैं. बिहार में अभी चार सीटों पर उपचुनाव हुए हैं. इसमें गया जिले की दो सीट बेलागंज और इमामगंज, भोजपुर की तारारी और कैमूर की रामगढ़ सीट है. 13 नवंबर को मतदान हुआ था. कल 23 नवंबर को मतगणना होगी.

यहां से राजद, भाजपा, जदयू, जीतनराम मांझी की हम सेकुलर, माले और बसपा के उममीदवार हैं. इसके अलावा इसी सील 2 अक्टूबर को जन सुराज पार्टी की घोषणा करने वाले प्रशांत किशोर ने भी सभी चारों सीटों पर अपना प्रत्याशी खड़ा किया है. कहने को तो उपचुनाव जीतने वाले विधायकों का कार्यकाल मात्र एक साल का होगा, क्योंकि अगले साल 2025 में बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है. लेकिन, यह चुनाव राजद, भाजपा, जदयू और खुद प्रशांत किशोर के लिए सेमिफाइनल के जैसा है. उपचुनाव के परिणाम आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बिहार की राजनीति के पुराने और नए क्षत्रपों की स्वीकार्यता और संभावित गठबंधन के लिहाज से अहम होने वाले हैं.

पार्टी खड़ा करने से पहले PK ने की थी पदयात्रा
चुनावी रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर को बिहार में राजनीतिक पार्टी के कार्यकताओं के साथ-साथ राजनीति की समझ रखने वाले लोग पिछले 10 वर्षों से जान रहे हैं, जब पहली बार उन्होंने नरेंद्र मोदी के साथ काम किया था. लेकिन जब वे चुनावी रणनीतिकार के काम से खुद को अलग करते हुए बिहार को अपनी कर्मभूमि मानकर प्रत्यक्ष राजनीति में उतरने का सोचा, तो इसके लिए पदयात्रा के रूप में होमवर्क किया. गांव-गांव में उन्होंने कार्यक्रम किए. इससे इनका फॉलोअर बढ़ा. इनमें से अधिकांश आज उनकी जन सुराज पार्टी के संगठन से भी जुड़े हुए हैं और माउथ प्रचार से लेकर सोशल मीडिया तक पर प्रचार करते दिख जाते हैं. ये तो जरूर माना जा सकता है कि पिछले एक साल में उन्होंने अपनी पार्टी को बिहार में खड़ा कर लिया है. यही कारण है कि विभिन्न राजनीतिक दलों के मुखिया अब इनसे हड़के हुए हैं और पार्टी में हाशिए पर रह रहे नेताओं-कार्यकर्ताओं पर नजर टिकाने के साथ-साथ उन्हें मना भी रहे हैं.

राजनीति में आते ही उजागर हुई जाति, लगा भाजपा का एजेंट होने का ठप्पा
मधेपुरा के वरीष्ठ पत्रकार तुरवसु सचिंद्र बताते हैं कि बिहार की राजनीति की एक बड़ी खासियत है. यहां चुनाव में उतरने के लिए नेताओं को अपनी जाति को सार्वजनिक करने की मजबूरी होती है. तभी वे अपनी जाति के लोगों के बीच पैठ बना पाते हैं. उन्हें रीझा पाते हैं. यही कारण है कि कई लोग जिनके नाम में पहले से जाति का टाइटल नहीं लगा रहता है, वे भी टाइटल लगाने लगते हैं.

प्रशांत किशोर के नाम में जाति नहीं लिखा था, विपक्षियों ने उन्हें प्रशांत किशोर पाडेय कहकर बुलाना शुरू कर दिया. यह जताने के लिए कि वे सवर्ण हैं. पिछड़ी और दलित उनसे ना जुड़ें. ये उनपर पहला व्यक्तिगत अटैक हुआ. दूसरा अटैक उनपर भाजपा का एजेंट होने का और तीसरा, पार्टी चलाने व चुनाव लड़ाने के लिए रुपए कहां से ला रहे हैं, यह आरोप चस्पा गया. राजनीति में आने के बाद इस तरह का अटैक होता ही है. लेकिन, उन्होंने न सिर्फ कड़े शब्दों में लालू-तेजस्वी पर काउंटर अटैक किया, बल्कि जदयू-भाजपा को भी जमकर खड़ी-खोटी सुना रहे हैं.

अधिक पढ़ें ...

*** Disclaimer: This Article is auto-aggregated by a Rss Api Program and has not been created or edited by Nandigram Times

(Note: This is an unedited and auto-generated story from Syndicated News Rss Api. News.nandigramtimes.com Staff may not have modified or edited the content body.

Please visit the Source Website that deserves the credit and responsibility for creating this content.)

Watch Live | Source Article