16,000 KM की बस यात्रा, रास्ते में पाकिस्तान समेत 10 देश, इलाहाबाद-बनारस स्टॉप

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हाइलाइट्स

कोलकाता से लंदन तक चलती थी बस सेवा.16,000 किमी का सफर, 10 देशों से होकर गुजरती थी.1976 में भारत-पाकिस्तान तनाव के कारण बंद हुई सेवा.

Kolkata to London autobus work : आपने शायद ही इतनी लम्बी बस यात्रा के बारे में कभी सुना होगा, जो 16000 किलोमीटर का सफर करती हो, जिसका रूट 10 देशों में से होकर गुजरता हो, रास्ते में एशिया के कुछ देश और यूरोप भी आता हो. जी हां, ये सच है. खास बात यह है कि इस बस सर्विस का भारत से भी गहरा कनेक्शन रहा है. भारत में इसके चार मुख्य स्टॉप थे- कोलकाता, इलाहाबाद, बनारस और दिल्ली. दिल्ली के बाद ये बस सीधे पाकिस्तान की ओर निकल जाती थी. पूरे 16 हजार किलोमीटर की लम्बी दूरी तय करने के बाद यह सर्विस लंदन में खत्म होती थी. फिर उसी रूट से वापस भी आती थी.

यह बस सर्विस अब तो नहीं चलती है, लेकिन भारत की आजादी के बाद एक समय ऐसा था, जब इस रूट पर सफर करने का ख्वाब हर अमीर शख्स का सपना हुआ करता था. आज हम आपको इसी बस रूट के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं.

कोलकाता से लंदन तक की यह बस सर्विस बेहद खास थी. इसकी शुरुआत 15 अप्रैल 1957 को हुई थी. 20 यात्रियों को बैठाकर लंदन से रवाना हुई यह बस पूरे 50 दिनों बाद कोलकाता पहुंची. उस दिन तारीख 5 जून 1957 थी. ऐसा नहीं था कि यह बस केवल एक ही बार चली हो. 1957 में शुरू हुई यह यह बस सेवा 1976 तक बदस्तूर जारी रही. उसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के चलते इस बस सेवा को रद्द करना पड़ा था. 1976 के बाद यह बस सेवा कभी शुरू नहीं हो पाई.

किन-किन देशों से होकर गुजरती थी बस?
भारत के कोलकाता से लेकर लंदन तक 16 हजार किलोमीटर का सफर आसान नहीं था. न तो कोई बस लगातार इतनी दूरी तक चल सकती है और न ही इंसान इतनी दूरी के लिए बैठे रह सकते हैं. बस को एक छोर से दूसरे छोर पर पहुंचने के लिए पूरे 50 दिन का वक्त लगता था.

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यह बस लंदन से शुरू होकर बेल्जियम, पश्चिम जर्मनी, ऑस्ट्रिया, यूगोस्लाविया, बुल्गारिया, तुर्की, ईरान, अफगानिस्तान, और फिर पाकिस्तान होते हुए भारत में प्रवेश करती थी. भारत में एंट्री करने के बाद यह दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद और वाराणसी (पहले बनारस) होते हुए कोलकाता पहुंचती थी. चूंकि यह अलग-अलग देशों से होकर गुजरती थी, इसी वजह से यात्रियों को कुछ खास पासपोर्ट की जरूरत पड़ती थी. यात्रियों को सामान्य नीले रंग का पासपोर्ट चाहिए होता था, जिसका उपयोग पर्यटन, व्यापार और अन्य उद्देश्यों के लिए किया जाता है. यह पासपोर्ट आम लोगों को जारी किया जाता है और इस पर विदेश यात्रा की अनुमति होती है.

चूंकि, प्रत्येक देश की अपनी वीजा नीति होती है, और यात्रियों को उन देशों में प्रवेश करने के लिए उचित वीजा प्राप्त करना होता था. यदि कोई यात्री मैरीटाइम इंडस्ट्री से होता तो वह सीमैन बुक का उपयोग कर सकता था, जो उन्हें बिना पारंपरिक पासपोर्ट और वीजा के यात्रा करने की अनुमति देती थी. हालांकि, यह केवल उन पेशेवरों के लिए मान्य था जो समुद्री यात्रा कर रहे थे.

बस में यात्रियों के लिए सुविधाएं
अल्बर्ट बस में यात्रियों के लिए अलग-अलग सोने की बंक थे. एक रीडिंग लाउंज था, जिसमें बैठकर आसानी से अखबार और मैग्ज़ीन या दूसरी किताबें पढ़ी जा सकती थीं. यात्रियों को बोरियत महसूस न हो, इसलिए मनोरंजन के लिए रेडियो और म्यूजिक सिस्टम उपलब्ध था. बस में एक फैन ऑपरेटेड हीटर और एक किचन भी था. इतनी सब चीजें होने की वजह से ही बस में बैठने के लिए केवल 20 सीटें ही बचती थीं.

कोलकाता से लंदन तक का किराया?
1957 में एकतरफा यात्रा का किराया 85 ब्रिटिश पाउंड था. आज के हिसाब से देखें तो यह 2,589 पाउंड बनता है. आज के लिहाज से रुपयों में कन्वर्ट करें तो यह 2,76,030 (2 लाख 76 हजार रुपये से अधिक) बनता है. तब से लेकर अब तक ब्रिटिश पाउंड काफी मजबूत हुआ है, जबकि पाउंड के सामने रुपये की वैल्यू में गिरावट आई है. 1973 में लंदन से कोलकाता के लिए चलने वाली बस का किराया बढ़कर 145 पाउंड हो गया था, जो आज के हिसाब से लगभग 2,215 पाउंड है.

बस बनाने वाली कंपनी
कोलकाता से लंदन और फिर वापस चलने वाली बस भी काफी खास रही होगी. बस को बनाने वाली कंपनी का नाम था एल्बियन मोटर्स (Albion Motors). एल्बियन मोटर्स इंग्लैंड की एक बड़ी कंपनी थी, जिसे विशेषकर बस और ट्रक बनाने के लिए जाना जाता था. इसी बस को लंदन से कोलकाता रूट क के लिए चलाया गया. बस का संचालन अल्बर्ट ट्रैवल (Albert Travel) द्वारा किया जाता था, इसलिए इसका नाम ‘अल्बर्ट बस’ पड़ गया.

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जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि यह सेवा 1976 में बंद हो गई थी, तो उसके साथ ही अल्बर्ट ट्रैवल ने भी अपना काम समेट लिया. फिलहाल ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है कि यह ट्रैवल एजेंसी अब भी काम करती है या नहीं.

अलग-अलग रिपोर्ट्स से उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, बाद में यह बस एक हादसे का शिकार हो गई थी. बस को काफी नुकसान पहुंचा. तब उस बस को एक ब्रिटिश यात्री एंडी स्टीवर्ट ने खरीद लिया. उन्होंने इस बस की डेंटिंग-पेंटिग करके फिर से तैयार किया गया. उन्होंने इसे डबल डेकर बस बना दिया और बस को 2012 में ऑस्ट्रेलिया पहुंचा दिया. उसके बाद से ही वह बस ऑस्ट्रेलिया में है और कई ऑटोमोबाइल शोज़ का हिस्सा बनी है.

Tags: Bus Services, Public Transportation, Travel

FIRST PUBLISHED :

November 18, 2024, 14:33 IST

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