नई दिल्ली:
Bangladesh and Pakistan relation: बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से देश की व्यापार नीति और विदेश नीति में भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं. कराची से एक मालवाहक जहाज चट्टोग्राम (Cargo vessel from karachi to Bangaldesh) पहुंचा है. यह पहला जहाज है जो पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच यात्रा कर चट्टोग्राम पहुंचा है. शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद ऐसा माना जा रहा था कि बांग्लादेश की विदेश और व्यापार नीति में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे. इस बार में पाकिस्तान के हाई कमिश्नर से ढाका में कहा कि ये दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को लेकर बड़ा कदम है. पाकिस्तान अधिकारी का दावा भी है कि यह दोनों देशों में ऐतिहासिक रूप से तनावग्रस्त संबंधों में बदलाव के रूप में देखा जा सकता है. अभी तक दोनों देशों के संबंधों के बीच 1971 की लड़ाई की परछाई काफी अहम रोल अदा कर रही थी.
पाकिस्तान और बांग्लादेश में क्यों रुका रहा व्यापार
1971 में नौ महीनों की मुक्ति जुड्ढो के दौरान पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश के लोगों अनगिनत अत्याचार किए थे. करीब 30 लाख लोगों को मार दिया गया था. हजारों लोगों को टॉर्चर किया गया, महिलाओं का रेप किया गया और लाखों लोग अपने घरों को छोड़कर भाग गए. ये पुरानी यादें आज तक दोनों देशों के बीच संबंधों को प्रभावित करते आ रहे थे.
पाकिस्तान की ओर इन अत्याचारों के लिए कभी कोई न तो खेद व्यक्त किया गया और न ही माफी मांगी गई.
पाकिस्तान का जवाब
इसके उलट, पाकिस्तान की ओर से हमेशा 1971 की बांग्लादेश की घटना के लिए भारत को जिम्मेदार बताया गया. पाकिस्तान का आरोप रहा है कि बांग्लादेश में कोई अत्याचार नहीं था बल्कि यह सब भारत द्वारा प्रायोजित था जिसका मकसद पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना के प्रोजेक्ट को विफल करना था. बता दें कि यह विचार पाकिस्तान की सेना के हिसाब से उचित रहता है. पाकिस्तानी सेना अपने देश के लोगों के बीच भारत को दुश्मन बनाकर देश की राजनीति में अपने लिए अहम पद हासिल करती है. इसी का सहारा लेकर पाकिस्तानी सेना ने कभी भी बांग्लादेश में हुए अत्याचारों के लिए कभी भी माफी नहीं मांगी है. बांग्लादेश में मुक्ति संग्राम हाल के दिनों तक एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है.
हसीना के समय संबंध खराब
बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के दौरान पाकिस्तान और ढाका में संबंध काफी खराब ही रहे हैं. बांग्लादेश का कहना रहा है कि पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों के मामले में न्याय नहीं हुआ. उन्हें न्याय मिलना चाहिए. उनके शासनकाल में गद्दारों या कहें रजाकारों को युद्ध अपराधी बताकर कार्रवाई की गई. शेख हसीना का कार्यकाल 1996- 2001 और 2009 - 2024 तक रहा है. हसीना ने 2010 में युद्ध अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए इंटरनेशनल क्राइम ट्राइबुनल भी बनाया था. इतना ही नहीं हसीना ने पाकिस्तान का समर्थन करने वाले जमात ए इस्लामी पर भी प्रतिबंध लगाया था.
मुल्ला की फांसी का पाकिस्तान में विरोध
गौरतलब है कि 2013 में जमात नेता अब्दुल कादिर मुल्ला को आईसीटी ने 344 लोगों की हत्या और युद्ध अपराध के लिए दोषी पाया था. वह पहला रजाकार था जिसे हसीना के शासन में फांसी दी गई थी. उसकी फांसी पर पाकिस्तान के तत्कालीन गृहमंत्री निसार अली खान चौधरी ने कहा था कि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. चौधरी ने कहा था कि पाकिस्तान के साथ निष्ठा के चलते उसे फांसी दी गई है.
बांग्लादेश में अब्दुल कादिर मुल्ला की फांसी का हसीना को पाकिस्तान से विरोध झेलना पड़ा. पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली ने मुल्ला की फांसी के विरोध में एक प्रस्ताव पारित किया. इसका जवाब हसीना की ओर से आया जिन्होंने कहा कि पाकिस्तान अभी तक बांग्लादेश की आजादी को पचा नहीं पाया है. साथ ही उनका कहना था कि बांग्लादेश में पाकिस्तान के कई मित्र हैं.
भारत से संबंध बने अच्छे
वहीं, हसीना के कार्यकाल में भारत और बांग्लादेश के संबंधों में काफी सुधार हुआ और भारत के बांग्लादेश की आजादी में निभाई गई भूमिका की काफी सराहना भी हुई. भारत के लोगों के प्रति बांग्लादेश में काफी इज्जत भी रही. खुद हसीना के नेहरू-गांधी परिवार के साथ अच्छे संबंध रहे हैं. 1975 में शेख मुजिबुर रहमान की हत्या के बाद शेख हसीना का भारत में शरण दी गई थी. हसीना के शासन में कट्टरपंथियों पर कड़ी कार्रवाई की गई और भारत और ढाका में व्यापारिका और सांस्कृतिक संबंधों में काफी प्रगाढ़ता भी आई.
बांग्लादेश में पाकिस्तान के लिए नई राह क्यों खुली
बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद वहां क्या और क्यों हो रहा है इसके बारे में तीन बातें निकलकर सामने आई हैं. पहली तो यह कि हसीना ने और उनकी पार्टी ने देश में लंबे समय के शासन में राजनीतिक तौर पर काफी फायदा उठाया. यह फायदा उनके परिवार और पार्टी के बांग्लादेश की आजादी में योगदान के चलते हुआ. लेकिन स्टूडेंट के विद्रोह ने यह साबित किया कि अब विरोधियों को रजाकर बताने से काम नहीं चलेगा. देश में बढ़ती आबादी के हिसाब से आर्थिक और सामाजिक हालात को बदलना जरूरी था. बांग्लादेश में युवाओं की आबादी का अब देश की आजादी की बातों से खुद को जोड़ पाना उतना प्रासंगिक नहीं रह गया है. जिस पीढ़ी ने अत्याचार देखे और सहे वे इसे जानते हैं, नई पीढ़ी उनसे अनभिज्ञ है.
बांग्लादेश में कई लोगों को नई दिल्ली के साथ हसीना के बेहतर संबंध अच्छे नहीं लग रहे थे. बांग्लादेश में भारत विरोधी विचारधारा भी बढ़ती जा रही थी और लोग ऐसा मान रहे थे कि भारत का बांग्लादेश के आंतरिक मामले में दखल है. इसका उदाहरण ऐसे समझ सकते हैं. कुछ समय पहले पांच दशकों से बने इंदिरा गांधी कल्चरल सेंटर जहां पर भारतीय सांस्कृतिक गतिविधियां हुआ करती थीं, वहां पर स्थानीय लोगों ने हमला कर दिया था.
तीसरा महत्वपूर्ण कारण यह रहा है कि बांग्लादेश में एक तबका है जो 1971 की घटना का विरोध भी करता है. वह 1971 को बांग्लादेश और बंगाली राष्ट्रवाद की जीत नहीं मानता है. इस प्रकार के लोग 1971 को विभाजन के वादे के साथ धोखा मानते हैं. हसीना के जाने के बाद जमात ए इस्लामी की ढाका में गहरी मौजूदगी हो गई है.
भारत के खिलाफ विचारवाले लोगों के बांग्लादेश की राजधानी में बढ़ते प्रभाव को देखकर कहा जा सकता है कि आगे आने वाले समय में भारत से बांग्लादेश की तल्खी और बढ़ेगी और वहीं, पाकिस्तान के साथ संबंध और बेहतर होंगे.