200 साल पुराने सुल्तानपुर के ब्रह्म बाबा आश्रम का क्या है इतिहास?

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ब्रह्म विद्यालय एवं आश्रम 

सुल्तानपुर: युवाओं के प्रेरणा स्रोत रहे स्वामी विवेकानंद ने हिंदू सनातन को लेकर जो विचार दिए वे अटल और अमर हो गए. उन्हीं के मार्गदर्शन पर आज कई संस्थाएं, जीवन और समाज कल्याण का कार्य कर रही हैं. उन्हीं में से एक है सुल्तानपुर में स्थापित ब्रह्मा विद्यालय एवं आश्रम. ये स्वामी परमहंस दयाल जी महाराज के नेतृत्व में आगे बढ़ा. आइए जानते हैं लगभग 200 वर्ष पुराने इस आश्रम का क्या इतिहास है और कहां-कहां इस आश्रम के सेवादार समाज कल्याण की दिशा में कार्य कर रहे हैं.

कौन थे स्वामी दयाल जी महाराज 
सुल्तानपुर के विंध्यवासिनी नगर (झाला) स्थित ब्रह्म बाबा आश्रम के सेवादार अटल शरणानंद ने लोकल 18 से बातचीत के दौरान बताया कि सभी धर्मों और सम्प्रदाय को स्वयं में समेटे हुए परमहंस महाराज का जन्म छपरा शहर के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में दहियावां मुहल्ले में रामनवमी के दिन 1846 को हुआ था. परमहंस दयाल जी महाराज अपनी मां-बाप की इकलौती संतान थे. दयाल जी महाराज के जन्म के आठ माह बाद मां और पांच वर्ष के बाद पिता की मौत हो गई.

तब छपरा के रहने वाले नरहरि प्रसाद श्रीवास्तव ने उनका पालन पोषण किया. लेकिन यहां भी 14 वर्ष की अवस्था में लाला नरहरि प्रसाद श्रीवास्तव और 17 वर्ष की अवस्था में श्रीवास्तव जी की पत्नी का देहांत हो गया. इस घटना ने दयालजी को अंदर से झकझोर दिया और दयाल जी का मन संसार से पूरी तरह से विरक्त हो गया और इन्होंने अध्यात्म का रास्ता पकड़ लिया.

इस दिन होता है भजन-कीर्तन 
झाला स्थित ब्रह्म बाबा आश्रम में प्रत्येक बृहस्पतिवार को भजन-कीर्तन और आरती होती है. इस कार्यक्रम में गांव के स्थानीय लोग इकट्ठा होकर ईश्वर से जुड़ने का प्रयास करते हैं. इस आश्रम के माध्यम से लोगों को परमात्मा से जोड़ने का प्रयास किया जाता है और आत्मज्ञान का बोध कराने की कोशिश की जाती है. सरणानंद महाराज ने बताया कि अगर कोई निराश्रित व्यक्ति सुल्तानपुर में आता है और उसके पास रुकने के लिए स्थान उपलब्ध नहीं होता है तो इस आश्रम में दो-तीन दिन और रुक सकता है.

पाकिस्तान में है समाधि स्थल 
ऐसा माना जाता है कि जब केदारघाट के स्वामी से उनको दीक्षा प्राप्त हुई तो स्वामीजी सन्यासी हो गए. इसके बाद वो देश भ्रमण करते हुए पाकिस्तान के टेरी पहुंच गये. टेरी में कई वर्ष तक लोगों को योग, ज्ञान, भक्ति का दर्शन कराते रहे और अंत में अपनी गद्दी अपने परम शिष्य स्वरूपानंद जी महाराज को सौंपकर 10 जुलाई 1919 को टेरी में ही समाधि ले ली. इसीलिए स्वामी जी का समाधि स्थल और इस स्थान पर बना एक मंदिर पाकिस्तान में आज भी श्रद्धा और भक्ति का केंद्र बना हुआ है. सुल्तानपुर में तेजी से स्वामी परमहंस दयाल महाराज के विचार इस आश्रम के माध्यम से फैल रहे हैं.

Tags: Local18, News18 uttar pradesh, Sultanpur news

FIRST PUBLISHED :

November 19, 2024, 11:37 IST

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