आखिरकार भारत ने हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण कर दिया. लंबी दूरी तक मार करने वाली इस मिसाइल का टेस्ट ओडिशा का तट पर एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया है. आवाज की रफ्तार से पांच गुना तेजी से चलने वाली इस मिसाइल तकनीक के सफल परीक्षण के बाद भारत अब ऐसा ताकत रखने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है. इसने भारत को उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल कर दिया है, जिनके पास ऐसी महत्वपूर्ण तकनीक विकसित करने की क्षमता है. पर इस मिसाइल में ऐसा क्या है जिसकी वजह से इसे इतनी अहमित दी जाती है आखिर ये गेमचेंजर क्यों मानी जाती है.
आवाज से भी तेज रफ्तार है ताकत
आज बेशक युद्ध के हथियारों में मिसाइल सबसे बड़ी ताकत हैं, लेकिन आज का दौर में इनकी रफ्तार की बहुत अहमियत है. एक मिसाइल अगर किसी देश की सीमा के अंदर की ओर आती है तो वह देश उसी मिसाइल के पीछे दूसरी मिसाइल छोड़ देता है जो जमीन पर गिरने से पहले ही उसने नष्ट कर सकती है. ऐसे में झगड़ा रफ्तार हो जाता है. यहीं पर हाइपरसोनिक मिसाइल मिसाइल आती हैं जो ध्वनि की गति से पांच से 25 गुना या 6,200 किलोमीटर प्रति घंटे से ज़्यादा की रफ़्तार से यात्रा कर सकती है.
हवा में ही दिशा बदलने की क्षमता
केवल रफ्तार ही हाइपरसोनिक मिसाइल की खासियत नहीं है. यही वजह है कि यह आधुनिक युद्ध में सबसे उन्नत तकनीकों में से एक है. यह रफ्तार के साथ हवा में ही दिशा बदल सकती है. इस तरह से यह गाइडेड मिसाइल के दर्जे में भी शामिल हो जाती है. ऐसे में यह गतिशीलता मिसाइलों को उड़ान के बीच में ही दिशा बदलने की अनुमति देती है और मार्ग को अप्रत्याशित बनाती है.
इस तकनीक से भारत को अब तेज गति से नियंत्रित क्रूज मिसाइल मिल जाएगी. (फाइल फोटो)
बैलेस्टिक मिसाइल से बेहतर क्यों
लॉन्च होने के बाद बीच में रास्ता बदल पाने की काबिलियत के कारण है हाइपरसोनिक मिसाइल खतरनाक मानी जाने वाली बैलेस्टिक मिसाइल से भी ज्यादा कारगर और मारक समझी जाती हें. जबकि बैलेस्टिक मिसाइल की भी रफ्तार दशकों से हाइपरसोनिक मिसाइल के करीब रही है. यानी जहां बैलेस्टिक मिसाइल लॉन्च होने के बाद नियंत्रित नहीं की जा सकती है, वहीं हाइपरसोनिक मिसाइल कभी भी रास्ता बदल सकती है.
कैसे होती है नियंत्रित ये मिसाइल
हाइपरसोनिक हथियारों की नई पीढ़ी “बूस्ट-ग्लाइड” तकनीक का उपयोग करती है. रॉकेट बूस्टर द्वारा लॉन्च किए जाने के बाद, ये मिसाइल हाइपरसोनिक गति से वायुमंडल में फिर से प्रवेश करती है और एरोडायनामिक लिफ्ट का उपयोग करके अपने लक्ष्य की ओर निर्देशित होती है. बैलिस्टिक मिसाइलों के विपरीत, जो एक निश्चित प्रक्षेप पथ का अनुसरण करते हैं, बूस्ट-ग्लाइड वाहन उड़ान के जरिए यह दुश्मन की जवाबी मिसाइल को भी चकमा देने के काबिल हो जाती है. , जिससे इसे रोकना बेहद मुश्किल हो जाता है.ट्रैककरना और रोकना है बहुत मुश्किल
पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों की तुलना में कम ऊंचाई पर उड़ान भरने की इसकी क्षमता के साथ, हाइपरसोनिक मिसाइलों को ट्रैक करना और रोकना बेहद मुश्किल हो जाता है. ऐसे में हाइपरसोनिक मिसाइल भारत के हिमायल के इलाकों के लिए बहुत मुफिद हथियार हो सकती है जहां के ऊंचे नीचे दुर्गम रास्तों से हैलिकॉप्टरों तक के निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसलिए लद्दाख और अन्य पर्वतीय इलाकों में चीन से निपटने के लिहाज यह मिसाइल भारतीय सेना को अभूतपूर्व ताकत देने का काम करेगी.
चुनौतियां भी कम नहीं थीं
भारत को अपनी हाइपरसोनिक मिसाइल के विकास के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. शोधकर्ताओं का कहना है कि हाइपरसोनिक गति पर बहुत अधिक तापमान और घर्षण को झेल सकने वाली सामग्री विकसित करना मुश्किल साबित हुआ, जिसके लिए उन्नत मिश्र धातुओं और कोटिंग्स जरूरत पड़ी.
2019 में HSTDV जैसे शुरुआती परीक्षणों में विफलताएं मिलीं, जिससे प्रगति जटिल हो गई. बाद के परीक्षण अधिक सफल रहे, लेकिन इंजन की कारगता में चल रही अनिश्चितताओं को उजागर किया. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय सहयोग में दिक्कत का सामाना करना पड़ा. उड़ान के दौरान हापरसोनिक हथियारों के साथ विश्वसनीय संचार सुनिश्चित करने के लिए उन्नत उपग्रह नेटवर्क की आवश्यकता होती है, जिसे भारत अभी भी विकसित कर रहा है.
FIRST PUBLISHED :
November 18, 2024, 13:16 IST