मंगल ग्रह पर अब तक किए गए हमारे सभी अभियानों और प्रयासों में, ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जिससे हम पक्के तौर पर यह कह सकें कि मंगल पर जीवन है. लेकिन, दशकों पहले 1970 के दशक में, जब वाइकिंग लैंडर लाल ग्रह पर सुरक्षित रूप से उतरने और उसका अन्वेषण करने वाला पहला अमेरिकी मिशन बन गया था, तो हम शायद करीब पहुंच गए थे. एक शोधकर्ता ने संभावना जताई है कि मंगल ग्रह की मिट्टी के नमूने में जीवन मौजूद था. फिर इसकी पुष्टि करने के स्तर की हमारी खोज में, हमने इसे शायद खत्म कर दिया था. जर्मनी में तकनीकी विश्वविद्यालय बर्लिन के खगोलविज्ञानी डर्क शुल्ज़-मकुच के अनुसार, मंगल ग्रह पर सूक्ष्मजीव जीवन के संकेतों का पता लगाने का एक प्रयोग घातक हो सकता था.
नजरअंदाज करना मुश्किल है ये कहानी
इस कहानी को मशहूर होने की कवायद मान कर खारिज ना कर दीजिएगा! इसमें किया गया दावा आपको भले ही असंभव लगे, लेकिन इसमें कुछ अहम सीख भी हैं जिसे हमारे वैज्ञानिकों को कभी भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. आइए, जानते हैं कि क्या है ये दावा और क्या है ये पूरी कहानी पिछले साल बिग थिंक में पोस्ट किए गए एक कॉलम में और इसी साल सितंबर में नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित एक टिप्पणी में, उन्होंने अनुमान लगाया कि हमारे तरीके अपने आप में विनाशकारी हो सकते हैं.
1970 के दशक की वह खास पड़ताल
1976 में, नासा के वाइकिंग 1 मिशन ने लाल ग्रह की जांच करने और जीवन के संकेतों की खोज करने के लिए मंगल ग्रह की सतह पर दो अंतरिक्ष यान भेजे. इन प्रयोगों में मंगल ग्रह से जमा किए गए मिट्टी के नमूनों के साथ पानी और पोषक तत्वों को मिलाना शामिल था. इसके पीछे यह धारणा थी कि पृथ्वी पर जीवन के समान ही मंगल पर जीवन को जीवित रहने के लिए तरल पानी की जरूरत होगी. शुरुआती नतीजों ने जीवन की संभावना का संकेत दिया, लेकिन दशकों की बहस के बाद, अधिकांश शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि नतीजे शायद फॉल्स पॉजिटिव थे, यानी गलत उम्मीद देने वाले थे.
वाइकिंग अभियान में ही मंगल के सबसे पहले नमूने लेकर उनका अध्ययन किया गया था. (तस्वीर: NASA)
तो क्या हुआ होगा उस प्रयोग में?
अब, शुल्ज़-मकुच ने एक सिद्धांत प्रस्तावित किया है कि वाइकिंग लैंडर्स ने वास्तव में मंगल ग्रह के जीवन का सामना किया होगा, लेकिन अनजाने में ही इसे पानी से डालकर नष्ट कर दिया. नेचर के लिए एक टिप्पणी में, शुल्ज़-मकुच ने लिखा कि संभावित मंगल ग्रह का जीवन वातावरण से नमी खींचने के लिए नमकों पर निर्भर होकर बहुत ही सूखे हालात में जिंदा रह सकता है. और यह बिलकुल चिली के अटाकामा रेगिस्तान जैसे चरम वातावरण में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों के समान हो सकता है. उन्होंने समझाया, “हो सकता है कि नासा के वाइकिंग लैंडर्स द्वारा किए गए प्रयोगों ने बहुत अधिक पानी डालने से मंगल ग्रह के जीवन को गलती से मार दिया हो.”
आगे अभियानों में भी हो सकती है दिक्कत
यह परिकल्पना नासा की “पानी का अनुसरण” करके पृथ्वी से बाहर जीवन की खोज करने की लंबी रणनीति को चुनौती देती है. शुल्ज़-मकुच की दलील है कि तरल पानी को प्राथमिकता देने के बजाय, भविष्य के मिशनों को हाइग्रोस्कोपिक नमकों पर भी गौर करना चाहिए. ये ऐसे पदार्थ होते हैं जो वायुमंडलीय नमी को सोखने का काम करते हैं. मंगल ग्रह पर प्राथमिक नमक सोडियम क्लोराइड संभावित रूप से सूक्ष्मजीवी जीवन को बनाए रख सकता है यह पृथ्वी पर नमकीन घोल में पनपने वाले कुछ बैक्टीरिया के समान है.
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शोधकर्ता ने मंगल ग्रह के सूक्ष्मजीवों पर वाइकिंग प्रयोग के संभावित असर की तुलना अटाकामा रेगिस्तान में हुई एक घटना से की, जहां मूसलाधार बारिश ने 70-80% स्थानीय बैक्टीरिया मार दिए, क्योंकि वे पानी के प्रवाह के अनुकूल नहीं हो सके. वाइकिंग मिशन के लगभग 50 साल बाद, शुल्ज़-मकुच ने मंगल ग्रह पर जीवन का पता लगाने के लिए नए सिरे से प्रयास करने की मांग की, जिसमें ग्रह के चरम वातावरण के बारे में नई, उन्नत तकनीक और ज्ञान को शामिल किया जा सके. उन्होंने जोर देते हुए कहा, “यह एक और जीवन-पता लगाने वाले मिशन का समय है”, जबकि उन्होंने स्वीकार किया कि उनका सिद्धांत अभी भी अटकलें हैं. “पुख्ता सबूत जुटाने के लिए हमें जीवन का पता लगाने के कई स्वतंत्र तरीकों की जरूरत होगी.”
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FIRST PUBLISHED :
November 19, 2024, 08:01 IST