हाइलाइट्स
पोस्टल बैलेट में डाक से वोट डाले जाते हैं, इन वोटों का इस्तेमाल सैनिक और अपने घर से दूर तैनात सरकारी कर्मचारी करते हैंचूंकि पोस्टल बैलेट की संख्या कम होती है, लिहाजा इनकी गिनती सबसे पहले होती है
महाराष्ट्र और झारखंड के साथ देश में हुए उपचुनावों की वोटिंग की आज गणना की जा रही है. जहां जहां वोटों की काउंटिंग हो रही है, उसमें सबसे पहले पोस्टल बैलेट यानि डाक से मतपत्रों की गिनती की जा रही है. क्या होते हैं पोस्टल बैलेट, इनके जरिए कैसे वोट दिए जाते हैं और कौन से लोग ये वोट देने के हकदार होते हैं. और ये भी जानिए कि इन्हें सबसे पहले क्यों गिना जाता है.
भारत के चुनाव में यह पूरी कोशिश की जाती है कि ज्यादा से ज्यादा लोग मतदान कर सकें. लेकिन देश के कई लोग ऐसे होते हैं जो चुनाव के मौके में अपने घर जार कर वोट देने की स्थिति में नहीं होती है. ऐसे लोगों के लिए ऐसी व्यवस्था करने के बारे में सोचा जाता रहा कि कैसे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी वजह से अपने गृह नगर से दूर नागरिक भी वोट दे सके. इस समस्या का समाधान पोस्ट बैलेट या डाकमतपत्र या डाकमत्र के रूप में सामने आता है.
पोस्टल बैलेट की जरूरत
ऐसे बहुत सारे लोग होते हैं जिनके लिए चुनाव में वोट डालना संभव नहीं है. इनमें सबसे प्रमुख वे सैनिक हैं जो देश की सीमा पर तैनात हैं. चाहे युद्धकाल चल रहा हो या ना चल रहा हो, सैनिक अपने गृहनगर पर जाकर वोट नहीं ही दे पाते हैं. पोस्टल बैलेट की धारणा इन्हीं के लिए बनी है. यानी कि पोस्टल बैलेट का उपयोग सबसे ज्यादा इनके ही लिए होता है.
चुनाव में तैनात सरकारी कर्मचारी
पोस्टल बैलेट में सैनिकों के अलावा वे सरकारी कर्मचारी और पुलिस और अन्य सुरक्षा कर्मी भी होते हैं चुनाव में ड्यूटी करते हैं. ये लोग भी अपने क्षेत्र में जा कर वोट नहीं दे पाते हैं. भारत जैसे देश में इनकी संख्या बहुत अधिक होती है और इस लिए इनके लिए भी पोस्टल बैलेट की सुविधा होती है. ऐसा ही कुछ देश से या अपने गृह नगर से बाहर नियुक्त किए गए सरकारी अधिकारी के साथ भी होता है.
क्या होता है डाकमतपत्र
चुनाव आयोग यह पहले ही तय कर लेता है कि किन लोगों को और कितने लोगों को पोस्टल बैलेट देना है. इसके बाद इन्हीं लोगों को कागज में मुद्रित खास मतपत्र भेजा जाता है जो कि पोस्टल बैलेट होता है. यह प्रक्रिया इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांस्मिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम (ईटीपीबीएस) होती है. इस मतपत्र को प्राप्त करने वाला नागरिक अपने पसंदीदा प्रत्याशी को चुन कर इलेक्ट्रॉनिक या डाक से चुनाव आयोग को लौटा देता है.
आजकल पोस्टल बैलेट कागज के अलावा इलेक्ट्रॉनिक भी होते हैं. (फाइल फोटो)
और कैदियों के मामले में क्या है नियम
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के तहत पुलिस की कानूनी हिरासत में और दोषी ठहराए जाने के बाद कारावास की सज़ा काटने वाले व्यक्ति मतदान नहीं कर सकते. ऐसी व्यवस्था से प्रिवेंटिव डिडेंशन में रखे गए व्यक्ति को भी डाकमत्र से वोट डालने को मिल सकता है. लेकिन यहां इस बाद को भी याद रखा जाना चाहिए कि कैदियों को मतदान करने का अधिकार नहीं होता है.
कुछ के लिए पंजीयन जरूरी
वहीं कुछ लोग ऐसे ही हो सकती है जिन्हें इस तरह से आवेदन देने के बाद ही मतदान करने की सुविधा मिल सकती है. दिव्यांग व्यक्ति जो मतदान केंद्र तक नहीं पहुंच सकते और 80 साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग भी पंजीयन करने के बाद ऐसे लोग वोट दे सकते हैं. इनके लिए जरूरी है कि पहले से ही डाकमत्र के लिए इन्होंने पंजीयन करा लिया हो.
कई बार पोस्टल बैलेट चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा देते हैं. (फाइल फोटो)
पहले होती है पोस्टल बैलेट की गिनती
चुनाव आयोग अपनी नियमावली 1961 के नियम 23 में संशोधन कर लोगों को पोल्टल बैलेट या डाक मतपत्र की मदद से चुनाव में वोट डालने की सुविधा देता है. चुनावों में वोटों की गिनती के दौरान सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गिनती शुरू होती है. इसके बाद ईवीएम में दर्ज वोटों की गिनती की जाती है. पोस्टल बैलेट की संख्या कम होती है और ये पेपर वाले मत पत्र होते हैं इसलिए इनकी गिनती भी आसानी से हो जाती है. और इसीलिए इनकी गिनती भी सबसे पहले की जाती है.
जब चुनाव में नतीजा बहुत नजदीकी अंतर से आता है तो ऐसे में अगले चुनाव में पोल्टल बैलेट अहम हो जाते हैं. साल 2018 में मध्य प्रदेश में करीब 10 सीटों में हार जीत के फैसले को प्रभावित किया था. इनमें से ज्यादातर (खास तौर पर राज्य सरकार के चुनाव में) सरकारी कर्मचारी होते हैं. ऐसे में सरकारी कर्मचारियों की नीतियां या उससे संबंधित ऐलान भी असर डालते हैं.
Tags: Jharkhand predetermination 2024, Maharashtra Elections, Vote counting
FIRST PUBLISHED :
November 23, 2024, 09:23 IST