साइंटिस्ट बार बार अपनी रिसर्च में कहते रहे हैं कि हमारा सौरमंडल कुछ ज्यादा ही अनोखा और असामान्य है. उन्होंने अब तक सैकड़ों तारे और ग्रहों के सिस्टम की स्टडी की है, लेकिन एक भी ऐसा सिस्टम नहीं मिला है जो हमारे सौरमंडल से जरा सा भी मिलता हो. सौरमंडल के अध्ययन ने भी ऐसे रोचक फैक्ट्स दिए हैं जो कहीं और शायद ही दिख पाएं. एक रोचक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि अगर हमारे सौरमंडल में मंगल और बहस्पति के बीच कोई सुपरअर्थ जैसा भी ग्रह होता तो हमारी पृथ्वी पर जीवन कभी संभव नहीं होता. इस रिसर्च के बारे में सबसे दिलचस्प बात यही है कि आखिर शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कैसे?
सिम्यूलेशन- एक बहुत ही ताकतवर उपकरण
वैज्ञानिक लंबे समय से सौरमंडल और आकाश के किए गए अवलोकनों के आधार पर से अब तक हासिल की गई जानकारी के आधार पर कई कम्प्यूटर प्रोग्राम बनाते हैं जो बताते हैं कि किसी तारे के आसपास ग्रह कैसे बन सकते हैं. इसके बाद उसमें जानकारी डालने पर उन्हें नतीजे मिलते हैं. इसी को सिम्यूलेशन कहते हैं. इस तरह उन्होंने कई सिम्यूलेशन मॉडल कम्प्यूटर पर विकसित किए. जैसे एक मॉडल ऐसा भी बनाया कि क्या होगा अगर कुछ अरब साल पहले की पृथ्वी से कोई ग्रह टकराता. ऐसे ही एक अध्ययन के आधार पर वे चंद्रमा के पैदा होने की कहानी बना सके.
इस रिसर्च में नया सिम्यूलेशन
अमेरिका के प्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑप टेक्नोलॉडजी के प्लैनेटरी साइंटिस्ट्स एमिली सिम्पसन और हॉर्र्ड चेन ने नए सिम्यूलेशन के जरिए ये रोचक नतीजे हासिल किए हैं. उन्होंने अपने सिम्यूलेशन पहले ये हालात बनाए कि अगर हमारे सौरमंडल में मंगल और बृहस्पति के बीच किसी तरह का सुपरअर्थ ग्रह होता तो क्या होता.
मंगल और बृहस्पति के बीच एक ग्रह के होने की संभावना थी, अगर ऐसा होता तो पृथ्वी कुछ और ही होती. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
क्यों चुने ऐसे हालात?
इस जानकारी के आधार पर उन्होंने अपना सिम्यूलेशन चलाया तो उन्हें जो नतीजे बहुत दिलचस्प थे. लेकिन उससे पहले यह समझना जरूरी है कि उन्होंने इसी हालात क्यों चुना? सुपर अर्थ ऐसे ग्रहों को कहा जाता है जो आकार में पृथ्वी से बड़े लेकिन नेप्च्यून से छोटे होते हैं. इस तरह के बाह्यग्रह हमारी गैलेक्सी के कई तारों के सिस्टम में आमतौर पर बहुत देखने में मिलते हैं. लेकिन वैज्ञानिकों के लिए यह हैरानी का विषय है कि आखिर ऐसा ग्रह हमारे सौरमंडल में क्यों नहीं है.
सिम्यूलेशन के नतीजे
यही वजह है कि शोधकर्ताओं ने इसी विषय को चुना कि अगर हमारे सौरमंडल में ऐसा ग्रह होता तो क्या होता. उन्होंने सिम्यूलेशन के जरिए उन तमाम हालात का पता लगा जो मंगल और बृहस्पति के बीच पृथ्वी के भार के 10 से 20 गुना भारी ग्रह के होने से पैदा होते. सिम्यूलेशन के नतीजों में उन्होंने पाया कि ऐसे भारी ग्रह के गुरुत्व का सौरमंडल के पृथ्वी सहित बाकी अंदरूनी ग्रहों की कक्षा पर बहुत बुरा असर डालता.
सुपरअर्थ के होने से पृथ्वी पर जीवन का संतुलन जरूर गड़बड़ा जाता. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
क्या होता पृथ्वी का
चेन के मुताबिक, सुपर अर्थ का गुरुत्व खिंचाव इन छोटे ग्रहों को टेढ़ी मेढ़ी कक्षा में खींच लेता. इससे पृथ्वी पर चरम जलवायु बदलाव के देखने को मिलते, जिसमें ग्लोबल वार्मिंग के तीव्र दौर देखने को मिलते जिससे पृथ्वी की जीवन पनपने और कायम रखने की क्षमता पर बहुत बुरा असर होता. उन्होंने पाया कि हमारे सौमंडल में ऐसा ना होना दुर्लभ सौभाग्य की बात है. सुपरअर्थ ना होने पर ही हमारा ग्रह जलवायु को लंबे समय तक कायम रख सका.
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यह स्टडी कई लिहाज से बहुत अहम साबित हो सकती है. इससे सुपरअर्थ वाले ग्रहों के सिस्टम के ग्रहों की आवासीयता पर सवाल उठते हैं यानी क्या ऐसे सिस्टम के छोटे ग्रहों में वाकई जीवन पनप सकता है या नहीं, क्योंकि अगर ऐसा ग्रह आवासीय दायरे में भी हुआ तो सुपरअर्थ का गुरुत्व वहां जीवन पनपने नहीं देगा.
FIRST PUBLISHED :
November 29, 2024, 08:01 IST