हाइलाइट्स
लंदन में 1952 में इस स्थिति में हजारों लोग तीन दिनों में मर गए, तब AQI 500 से ज्यादा शो नहीं करता थाAQI का लेवल 999 के ऊपर जाते ही शरीर के लिहाज से बेहद गंभीर स्थितियां शुरू हो जाती हैंऐसे में लोगों को सलाह दी जाती है कि घर से बाहर बिल्कुल नहीं निकलें
दिल्ली और एनसीआर में एक्यूआई (AQI) का स्तर कई स्थानों पर 18 नवंबर को दोपहर एक बजे 999 दिखा रहा था. ये बहुत बहुत खतरनाक स्थिति है. चूंकि कोई भी एक्यूआई मीटर 999 के ऊपर के लेवल को नहीं दिखाता. वैसे आपको बता दें कि 1952 में जब लंदन में भयंकर वायुप्रदूषण के कारण हजारों जानें गईं थीं तब वायु में प्रदूषण का स्तर 500 के ऊपर चला गया था. तब लंदन में दिन में ही वायु प्रदूषण के कारण अंधेरा छा गया था. अस्पताल भर गए थे. तीन दिनों में 10,000 से 15,000 के बीच लोगों की मौत हुई थी. तब माना जाता है कि हवा में लेड का स्तर बहुत खतरनाक हो गया था.
अधिकांश देशों में AQI सीमा 500 पर सीमित है, लेकिन कुछ सिस्टम (जैसे चीन या विस्तारित स्केल) गंभीर प्रदूषण के लिए इसे 999 तक बढ़ा दिया जाता है. 999 का मतलब होता है हेल्थ के लिहाज से गंभीर खतरा.
– दुनियाभर के सारे ही एक्यूआई मीटर ज्यादा से ज्यादा 999 से स्तर के ऊपर की जानकारी नहीं जोड़ते. इसी को खतरनाक मानकर कार्रवाई शुरू कर दी जाती है.
– अमेरिकी AQI सिस्टम में स्तर शायद ही कभी 500 से आगे जाता हैं, ये उनका खतरनाक लेवल माना जाता है.
– चीन का AQI लगातार उच्च प्रदूषण की घटनाओं के कारण 999 तक बढ़ जाता है
– भारत में में एक्यूआई हमेशा ही दीवाली के बाद जाड़ों में 999 तक चला जाता है.
जब AQI 999 पर पहुँच जाता है, तो यह वायु प्रदूषण की आपातकालीन स्थिति को दिखाती है.
यदि वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 999 तक पहुंच जाता है, तो यह वायु प्रदूषण के अत्यधिक खतरनाक स्तर को इंगित करता है. ये सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल को दिखाता है. ऐसे में क्या होता है, जानते हैं
1. मनुष्यों पर स्वास्थ्य प्रभाव
– स्वस्थ व्यक्तियों को भी गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं, जिसमें सांस लेने में कठिनाई, गले में जलन और आंखों में जलन शामिल है.
– दिल के दौरे, स्ट्रोक और श्वसन संबंधी समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है.
कमज़ोर समूह – बच्चे, बुज़ुर्ग लोग और पहले से ही हृदय या फेफड़ों की बीमारी (जैसे अस्थमा या क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज़) वाले लोगों को जानलेवा स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है.
– गर्भवती महिलाओं को भ्रूण के विकास पर प्रभाव सहित जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है.
2. पर्यावरण पर असर
– धुंध या धुंध के कारण दृश्यता कुछ मीटर तक कम हो जाती है.
– कम दृश्यता के कारण यातायात दुर्घटनाएं अधिक होने की आशंका रहती है.
– लंबे समय तक ऐसा होने पर खेती को नुकसान, कृषि उत्पादकता कम हो सकती है.
– वन्यजीवों पर हानिकारक प्रभाव, क्योंकि वे उसी प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं.
3. AQI 999 के कारण
– तीव्र औद्योगिक उत्सर्जन.
– बड़े पैमाने पर वाहनों से होने वाला प्रदूषण
– पराली जलाना या बायोमास जलाना.
– हवा का ठहर जाना, जिससे हवा में जहरीले तत्व घुलने लगते हैं
4. तुरंत उठाए जाने वाले कदम
– घर के अंदर रहें
– सभी बाहरी गतिविधियों से बचें.
– घर के अंदर वायु प्रदूषण को कम करने के लिए खिड़कियों और दरवाज़ों को सील करें.
– अगर उपलब्ध हो तो एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें
– सुरक्षात्मक गियर पहनें- बाहर जाना अपरिहार्य है, तो ठीक से फिट किया गया N95 या P100 मास्क पहनें
5. स्वास्थ्य पर नजर रखें
– खांसी, सीने में दर्द या चक्कर आने जैसे लक्षणों पर नज़र रखें और अगर वे बिगड़ते हैं तो डॉक्टर से सलाह लें.
6. क्या हो जाना चाहिए ऐसे में
– सरकारें आपातकाल की घोषणा कर सकती हैं
– वाहनों के उपयोग को प्रतिबंधित कर सकती हैं
– स्कूलों को बंद कर सकती हैं
– उत्सर्जन को कम करने के लिए उद्योगों को बंद कर सकती हैं.
7. गंभीर खतरे क्या होंगे
-बीमारी और मृत्यु दर में वृद्धि हो जाएगी.
क्या होता है AQI, कैसे करता है काम?
– AQI यानि Air Quality Index या हिंदी में कहें तो वायु गुणवत्ता सूचकांक ऐसा नंबर होता है जिससे हवा की गुणवत्ता पता लगाया जाता है. इससे भविष्य में होने वाले वायु प्रदूषण का भी अंदाज हो जाता है.
AQI को कितनी कैटेगरी में बांटा गया है?
– देश में AQI को स्तर और रीडिंग के हिसाब से 06 कैटेगरी में बांटा गया है.
– 0-50 के बीच AQI का मतलब अच्छा यानि वायु शुद्ध है
– 51-100 के बीच मतलब वायु की शुद्धता संतोषजनक
– 101-200 के बीच ‘मध्यम
– 201-300 के बीच ‘खराब’
– 301-400 के बीच बेहद खराब
– 401 से 500 के बीच गंभीर श्रेणी
देश में प्रदूषण के कितने कारक तय किए गए हैं?
– AQI को 08 प्रदूषण कारकों के आधार पर तय करते हैं. ये PM10, PM 2.5, NO2, SO2, CO2, O3, और NH3 Pb होते हैं. 24 घंटे में इन कारकों की मात्रा ही हवा की गुणवत्ता तय करती है.
इसमें NO2, SO2, CO2, O3 और NH3 क्या होते हैं?
– SO2 का मतलब सल्फर ऑक्साइड, ये कोयले और तेल के जलने उत्सर्जित होती है, जो हमारे शहरों में प्रचुर मात्रा में है.
– CO2 यानि कार्बन ऑक्साइड रंगीन होता है, इसमें गंध होती है, ये जहरीला होता है. प्राकृतिक गैस, कोयला या लकड़ी जैसे ईंधन के अधूरे जलने से उत्पन्न होता है. गाड़ियों से होने वाला उत्सर्जन कार्बन ऑक्साइड का एक प्रमुख स्रोत है.
– NO2 का मतलब नाइट्रोजन ऑक्साइड, जो उच्च ताप पर दहन से पैदा होती है. इसे निचली हवा की धुंध या ऊपर भूरे रंग के रूप में देखी जा सकती है.
– NH3 कृषि प्रक्रिया से उत्सर्जित अमोनिया है.साथ ही इसकी गैस कूड़े, सीवेज और औद्योगिक प्रक्रिया से उभरने वाली गंध से भी उत्सर्जित होती है।
– O3 मतलब ओजोन का उत्सर्जन
पीएम 2.5 क्या है?
पीएम 2.5 हवा में घुलने वाला छोटा पदार्थ है. इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है. पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर ही धुंध बढ़ती है. विजिबिलिटी का स्तर भी गिर जाता है.
पीएम 10 क्या है?
पीएम 10 को पर्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) कहते हैं. इन कणों का साइज 10 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास होता है. इसमें धूल, गर्दा और धातु के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं. पीएम 10 और 2.5 धूल, कंस्ट्रक्शन और कूड़ा व पराली जलाने से ज्यादा बढ़ता है.
कितना होना चाहिए पीएम-10 और 2.5?
– पीएम 10 का सामान्य लेवल 100 माइक्रो ग्राम क्यूबिक मीटर (एमजीसीएम) होना चाहिए.
पीएम 2.5 का नॉर्मल लेवल 60 एमजीसीएम होता है. इससे ज्यादा होने पर यह नुकसानदायक हो जाता है.
वायु प्रदूषण का असर शरीर पर सीधे क्या होता है?
– आंख, गले और फेफड़े की तकलीफ बढ़ने लगती है. सांस लेते वक्त इन कणों को रोकने का हमारे शरीर में कोई सिस्टम नहीं है. ऐसे में पीएम 2.5 हमारे फेफड़ों में काफी भीतर तक पहुंचता है. पीएम 2.5 बच्चों और बुजुर्गों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. इससे आंख, गले और फेफड़े की तकलीफ बढ़ती है. खांसी और सांस लेने में भी तकलीफ होती है. लगातार संपर्क में रहने पर फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है.
क्या प्राकृतिक स्रोतों से भी प्रदूषण होता है?
– इसमें धूल, बंजर भूमि से उड़ने वाली धूल, पशुओं द्वारा भोजन के पाचन मीथेन गैस उत्सर्जित होती है. इसीलिए अक्सर कहा जाता है कि दुधारू पशु ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करते हैं
– पृथ्वी की पपड़ी नष्ट होने से रेडियोधर्मी क्षय से उत्पन्न रेडॉन गैसों से
– जंगल की आग से पैदा होने वाले गैस और उससे निकलने वाली कार्बन गैसों से
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FIRST PUBLISHED :
November 18, 2024, 14:50 IST