बाल विवाह मुक्त अभियान से जुड़ा उत्तराखंड
देहरादून: हाल ही में केंद्र सरकार ने बाल विवाह को रोकने के लिए ‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ की शुरुआत की है. उत्तराखंड में भी इसकी तैयारियां भी शुरू हो गयी हैं. साल 2029 तक देशभर को पूरी तरह से बाल विवाह मुक्त बनाने का संकल्प लिया गया है. उत्तराखंड की कई संस्थाओं ने भी इसके लिए कमर कस ली है. इसी क्रम में उत्तराखंड की ‘समर्पण सोसाइटी फॉर हेल्थ रिसर्च एंड डेवलपमेंट’ भी काम कर रही है. ये संगठन बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए काम कर रहे 250 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठनों के देशव्यापी गठबंधन ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन’ का सहयोगी संगठन है.
बाल-विवाह खत्म करने के लिए कर रहे हैं काम
ये सभी संगठन उत्तराखंड के सभी जिलों में बाल विवाह जैसी कुरीतियों को खत्म करने के लिए काम कर रहे हैं. समर्पण सोसाइटी के प्रोग्राम मैनेजर शांति प्रसाद पोखरियाल ने कहा कि बाल विवाह न केवल सामाजिक बुराई है बल्कि अपराध भी है. बाल विवाह के कारण कई बच्चे पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते, जिस कारण उनका सामाजिक और मानसिक विकास नहीं हो पाता है. बाल विवाह बच्चों के सबसे बड़े शोषण में से एक है. इस कुप्रथा से न सिर्फ बच्चे का बचपन खत्म हो जाता, बल्कि यह पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी के दुष्चक्र को भी जन्म देती है, जिससे देश का आर्थिक विकास प्रभावित होता है.
शुरू किया पोर्टल
27 नवंबर को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने “बाल विवाह मुक्त भारत अभियान” की शुरुआत की. इसके साथ ही एक पोर्टल भी लॉन्च किया जिसका नाम स्टॉप चाइल्ड मैरिज है. इस पर ऐसे मामलों की ऑनलाइन शिकायत की जा सकेगी. उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार के अभियान के तहत सभी पंचायतों और स्कूलों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ दिलाई जाएगी.
सरकार के इस अभियान में उत्तराखंड के एनजीओ जुड़कर इस बुरी रीत को खत्म करने की जंग छेड़ेंगे. उन्होंने बताया कि समर्पण समिति बाल विवाह के साथ-साथ भिक्षावृत्ति, बाल मजदूरी और बाल शोषण पर काम करती है जिसका पंजीकरण साल 2001 में किया गया था. राज्य में तीन जगह शेल्टर भी हैं जहां नाबालिकों को रखा जाता है.
उत्तराखंड में आज भी बाल विवाह के मामले
समर्पण समिति की स्टेट हेड मानसी मिश्रा ने बताया कि सिर्फ बिहार, असम, झारखंड और राजस्थान में ही नहीं उत्तराखंड में भी बाल विवाह के मामले सामने आए हैं. उन्होंने कहा कि चकराता, पिथौरागढ़, पौड़ी, देहरादून और हरिद्वार में ऐसे मामले हुए हैं. हाल ही में देहरादून में 3 ऐसी शादियां उन्होंने रूकवाई थी. शादी जैसे सामुदायिक आयोजन में जाकर उसे रुकवाना बहुत बड़ा चुनौती का काम है. हम चाइल्ड मैरिज प्रोटेक्शन ऑफिसर्स के सहयोग से नाबालिग के जीवन को बचाने में कामयाब होते हैं.
बाल विवाह से बचपन बचाने की जरूरत
बचपन बचाओ आंदोलन के समन्वयक गजेंद्र नौटियाल ने कहा कि बाल विवाह निषेध कानून 2006 में बाल विवाह को जगन्य अपराध बताया गया है. इस कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति 18 वर्ष से कम उम्र की महिला और 21 वर्ष से कम उम्र के पुरुष का विवाह करवाता है तो उस पर दंडनीय कार्रवाई की जाएगी. बाल विवाह करने वाले पुरुष को 10 साल तक की सजा और 1 लाख रुपए तक का जुर्माना देना होता है. या दोनों ही सजाएं मिल सकती हैं. उन्होंने कहा कि बाल विवाह होने पर दोनों पार्टनर्स की मानसिक और शारीरिक स्तिथि खराब होती है.
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FIRST PUBLISHED :
November 30, 2024, 09:32 IST