6th Gen Fighter Jet: मौजूदा वर्ल्ड ऑर्डर में दुनिया में दो सबसे ताकतवर मुल्क हैं. एक है अमेरिका और दूसरे नंबर है चीन. ये दोनों देश अपने-अपने हिसाब से दुनिया को चलाना चाहते हैं और इस कारण इनके बीच इस वक्त जबर्दस्त टकराव चल रहा है. व्यापार की दुनिया से लेकर जंग के मैदान तक दोनों देश एक दूसरे के खिलाफ रणनीति बनाने में लगे हुए हैं. विचारों के स्तर पर भी दोनों मुल्क दुनिया के दो छोर पर बैठे हुए हैं. ऐसे में भविष्य में इन दोनों मुल्कों के बीच किसी भी टकराव से दुनिया में तबाही तय मानी जा रही है.
आज बात करते हैं हथियारों की होड़ की. वैसे तो अमेरिका आज भी दुनिया की सबसे बड़ा सैन्य ताकत है. उसके पास एक से बढ़कर घातक हथियार हैं. वह दुनिया के हथियार बाजार का सबसे बड़ा लीडर है. लेकिन, उसकी इस बादशाहत को चीन ने कड़ी चुनौती दी है. बीते दिनों चीन ने कुछ ऐसा करने का दावा किया जिससे कि अमेरिका की नींद उड़ गई है. उसने एक ऐसा हथियार बनाने का दावा किया है जिसको विकसित करने का विचार अमेरिका ने इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उसके पास पैसे नहीं थे.
अमेरिका के पास पैसे की कमी
अब आपको अजीब लग रहा होगा. अमेरिका और पैसे की कमी पच नहीं रही है. लेकिन, यह 100 फीसदी सच है. चीन ने पिछले दिनों 6ठीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने का दावा किया. अभी भारत और दुनिया की कई बड़ी ताकतें 4.5वीं पीढ़ी तक पहुंच पाई हैं. कई देश अमेरिका, चीन और रूस जैसे देशों के पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान उड़ा रहे हैं. ऐसे में चीन का छठवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान बनाने का दावा किसी के गले नहीं उतर रहा है. लेकिन, चीन ने इसका वीडियो जारी किया है. उसका कहना है कि यह छठवीं पीढ़ी का विमान हालांकि अभी प्रोटोटाइप है यानी इसको अभी सेना को नहीं दिया जा सकता. इस पर शोध कार्य चल रहा है. जानकारों का कहना है कि किसी भी स्थिति में छठवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान के ऑपरेशनल होने में अभी कम से कम 20 साल लग जाएंगे. चीन ने इस छठवीं पीढ़ी के विमान को बैदी (BaiDi) या व्हाइट इंपेरर नाम दिया है.
दबाव में अमेरिका
दूसरी तरफ अमेरिका की बात कहते हैं. अमेरिका इस मामले में अभी काफी पीछे है. रिपोर्ट के मुताबित चीन के इस दावे से अमेरिका की नींद उड़ गई है. इससे दुनिया के हथियार बाजार में चीन ने एक मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर ली है, जो अमेरिका के लिए किसी भी स्थिति में ठीक नहीं है. अमेरिका ने छठवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने के लिए नेक्स्ट जेनरेशन एयर डोमिनेंस (NGAD) नाम से एक प्रोग्राम शुरू किया था. लेकिन, भारी खर्च के कारण उसने यह प्रोग्राम को बीच में ही रोक दिया. अब जानकारों का कहना है कि चीन के दावे ने अमेरिका के लिए शर्मिंदगी पैदा कर दी है. उनका कहना है कि चीन के दावे से तुरंत कोई खतरा पैदा नहीं हुआ है लेकिन, उसने अमेरिकी बादशाहत पर मनोवैज्ञानिक चोट की है. तीसरी दुनिया के देश जो अमेरिका से बड़े पैमाने पर हथियार खरीदते हैं, उनके बीच चीन के इस दावे से गलत संदेश गया है. अब इससे एक सवाल पैदा हो गया है कि क्या अमेरिका अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमानों में चीन से पिछड़ जाएगा? इससे तीसरी दुनिया के देश हथियारों की अपनी जरूरत के लिए चीन की ओर आकर्षित हो सकते हैं.
दुनिया में हाहाकार
जानकार बताते हैं कि ‘व्हाइट इंपेरर’ के जरिए चीन ने दुनिया में हाहाकार मचा दिया है. इस वक्त भारत राफेल जैसे 4.5 पीढ़ी के विमान पर निर्भर है. वहीं पांचवीं पीढ़ी में अमेरिका के पास एफ-35 और रूस के पास सुखई एसयू-57 लड़ाकू विमान हैं. ऐसे में आने वाले वक्त में यह देखना दिलचस्प होगा कि चीन की इस चुनौती को अमेरिका किस तरह लेता है. क्या वहां आने वाली नई ट्रंप सरकार NGAD के कितने पैसे देती है. क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप कट्टर चीन विरोधी नेता हैं. अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चल रहे हैं.
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FIRST PUBLISHED :
November 19, 2024, 12:01 IST