बरवां धाम.
बस्ती: बरवां धाम अपने आप में धार्मिक प्रतिष्ठा का एक अलग ही आयाम रखता है. यूं ही बरवां मंदिर को बरवां धाम नहीं कहा जाता. बरवां धाम के मंदिर में भोलेनाथ का शिवलिंग स्थापित है, जिनको स्थानीय लोग न्यायाधीश बाबा भोलेनाथ भी कहते हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि यह शिवलिंग बहुत ही प्राचीन है, मंदिर परिसर में कुल पांच मंदिर एवं चार धर्मशालाएं बनी हुई हैं. यहां जनपद के अलग-अलग हिस्सों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.
मंदिर का धार्मिक इतिहास
बरवां निवासी 80 वर्षीय दयाराम ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि पहले मंदिर परिसर एवं अगल-बगल विशाल जंगल हुआ करता था, इन्हीं जंगलों के बीच में एक पतजुग नामक वृक्ष के नीचे पहली बार शिवलिंग को देखा गया. जब शिवलिंग दिखाई पड़ा तब क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया. इस चर्चा को सुनकर उस समय के बस्ती शुगर मिल के मालिक नारंग एवं उनकी पत्नी यह देखने के लिए गए कि वह पत्थर है या शिवलिंग. जंगल में जाते वक्त नारंग की पत्नी के पैरों में ठोकर लग गई, जिस बात से नाराज होकर नारंगी पत्नी ने कहा कि आप भी ईंट पत्थर देखने चले आते हैं. दूसरे दिन सुबह नारंग 15-20 मजदूरों के साथ आकर शिवलिंग को उखाड़ने की कोशिश करने लगे, लेकिन जितनी खुदाई करते वह और नीचे की तरफ मोटा एवं बढ़ता हुआ चला जाता. एक समय ऐसा आया कि खुदाई से पानी निकलने लगा, लेकिन शिवलिंग का आगे कोई छोर दिखाई नहीं दिया. इस वाक्य से हतप्रभ होकर नारंग ने मिट्टी को डालने के लिए कहा और उस स्थान पर शिव जी का मंदिर बनवा दिया.
क्या है मान्यता
लोग बताते हैं कि बरवां धाम के भोले बाबा की कोई झूठी कसम नहीं खाता. यदि कोई झूठी कसम खा ले तो उसका सत्यनाश हो जायेगा. इसीलिए लोग इनको न्यायाधीश भोले बाबा भी कहते हैं. दयाराम ने बताया कि एक बार कुछ युवकों ने मंदिर से घंटे की चोरी कर ली, पंचायत बुलाई गई परंतु पंचायत में भी उन लोगों ने चोरी से इनकार कर दिया, जबकि सब लोगों का शक इन्हीं लोगों पर था. उन्होंने भोलेनाथ की कसम भी खा ली. उसके बाद युवक को कोढ़ लग गया. दूसरा युवक की बीमारी के कारण मृत्यु हो गई. इसीलिए बरवां धाम की कोई झूठी कसम नहीं खाता.
जानें कब लगता है मेला
दयाराम बताते हैं कि बाबा धाम में मेले का आयोजन साल में दो बार किया जाता है. फाल्गुन में शिवरात्रि एवं सावन में कावड़ के समय विशालकाय मेला का आयोजन होता है. जनपद के कोने-कोने से लोग बाबा धाम के भोले बाबा का दर्शन करने के लिए आते हैं.
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FIRST PUBLISHED :
November 18, 2024, 12:52 IST
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