उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन के चलते फलों के उत्पादन में कमी आयी है
Dehradun News: देशभर में जलवायु परिवर्तन पर रिसर्च करने वाली क्लाइमेट ट्रेंड्स की सीनियर इंगेजमेंट लीड गुंजन जैन ने लोक ...अधिक पढ़ें
- News18 Uttarakhand
- Last Updated : September 29, 2024, 14:57 IST
देहरादून. उत्तराखंड में कंक्रीट के बढ़ते जंगल के अलावा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के चलते जलवायु में परिवर्तन देखा जा रहा है. जलवायु परिवर्तन के चलते राज्य में बागवानी क्षेत्र में कमी आयी है. राज्य में अखरोट, सेब, आलूबुखारा और नाशपाती आदि का उत्पादन पहाड़ी इलाकों में खूब की जाती थी क्योंकि यहां ठंडी जलवायु हुआ करती थी लेकिन बीते कुछ सालों में जलवायु में परिवर्तन और बढ़े तापमान के चलते फलों के उत्पादन में कमी देखी गई है. पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर रिसर्च करने वाले संगठन ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ ने इसी साल शोध किया जिसमें पाया गया कि साल 2016 से 2017 में उत्तराखंड के 25 हजार दो सौ हेक्टेयर क्षेत्र में सेब का उत्पादन होता था जो साल 2022-03 में 11 हजार 327 हेक्टेयर तक सिकुड़ गया, इसका मतलब यह है कि सब के उत्पादन में 30% की कमी आई. वहीं नींबू के उत्पादन में 50 फीसद तक सिकुड़ गया. इस तरह फलों की खेती सिकुड़ती जा रही है.
सही जलवायु न होने से उत्पादन में कमी
देशभर में जलवायु परिवर्तन पर रिसर्च करने वाली क्लाइमेट ट्रेंड्स की सीनियर इंगेजमेंट लीड गुंजन जैन ने लोकल 18 को जानकारी देते हुए कहा कि हॉर्टिकल्चर और फ्रूट प्रोडक्शन में क्लाइमेट चेंज का असर देखने के लिए मिल रहा है. पहले पहाड़ के सर्द इलाकों में लीची, आड़ू जैसे स्टोन फ्रूट, सेब, नाशपाती जैसे फलों का उत्पादन बहुत मात्रा में होता था जिसका क्षेत्र अब घटता जा रहा है क्योंकि तापमान में वृद्धि हो गई है. उन्होंने बताया कि पहाड़ी इलाकों में इन फलों को अनुकूल वातावरण की जरूरत होती है. ऐसे फलों को पकने के लिए न्यूनतम 7 डिग्री टेम्परेचर की जरूरत होती है.
तापमान ज्यादा होने के चलते उत्पादन में कमी देखी जा रही है औऱ यही वजह है कि लोग बागबानी से दूर हो रहें हैं. प्रोडक्शन में वैराइटी के साथ- साथ गुणवत्ता भी नहीं मिल पा रही है. उत्तराखंड में 2016-17 में 1 लाख 77 हजार 323 हेक्टेयर बागवानी का क्षेत्र था जबकि 2020-22 में यह सिमटकर 81 हजार 692 हेक्टेयर जा पहुँचा है और लगातार इसका दायरा काम होता जा रहा है. उन्होंने कहा कि मौसम में बदलाव के चलते अलग-अलग प्रजातियों के फलों का उत्पादन भी नहीं हो पा रहा है. साल 2024 में 1227.2 मिमी बारिश हुई है जो की सामान्य मानसूनी बारिश से 1137 मिमी से आठ फीसद ज्यादा है. इस तरह दिन प्रतिदिन जलवायु परिवर्तन के प्रभाव फसलों, फलों के उत्पादन के साथ ग्लेशियर, पहाड़ों और यहां तक कि मानव स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है.
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FIRST PUBLISHED :
September 29, 2024, 14:57 IST