खटीमा. आपने उत्तराखंड में लगने वाले तमाम मेलों के बारे में सुना होगा लेकिन क्या आपने सिंघाड़ा मेले के बारे में कभी सुना है. थारू जनजाति क्षेत्र के रूप में पहचान रखने वाले खटीमा में भारत-नेपाल सीमा के झनकईया शारदा नदी के तट पर लगने वाले गंगा स्नान मेला लगता है, जिसे सिंघाड़ा मेला भी कहा जाता है. यह मेला हर साल करीब 10 दिनों तक चलता है. घने जंगलों के बीच लगने वाले इस मेले में सिंघाड़ा खरीदने के लिए लोग उत्तराखंड के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल से भी पहुंचते हैं. थारू जनजाति के लोग और किसान प्राचीन वस्तु विनिमय पद्धति को अपनाते हुए धान और अन्य अनाज के बदले सिंघाड़े खरीदते हैं.
उधम सिंह नगर जिले की खटीमा तहसील में भारत-नेपाल सीमा पर कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर सिंघाड़ा मेला लगता है. यह मेला शारदा नदी के तट पर लगता है. करीब 10 दिनों तक घने जंगलों के बीचोंबीच लगने वाले इस मेले में उत्तराखंड के अलावा उत्तर प्रदेश के बरेली, पीलीभीत, शाहजहांपुर समेत कई जिलों से सिंघाड़ा व्यापारी पहुंचते हैं. सिंघाड़े खरीदे भी जाते हैं और वस्तु विनिमय के तहत भी मिलते हैं.
अनाज के बदले सिंघाड़ा
इस मेले में सिंघाड़े खरीदने के लिए नेपाल से भी हजारों की संख्या में लोग आते हैं. सिंघाड़ा मेले में वस्तु विनिमय परंपरा आज भी देखने को मिलती है. नेपाली नागरिक और थारू जनजाति के काश्तकार अनाज के बदले सिंघाड़ा खरीदकर अपने घरों को ले जाते हैं. हर साल लगने वाले इस मेले में लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं. वहीं यहां कुंतलों के हिसाब से सिंघाड़ा बिकता है. सिंघाड़ा व्यापारी मेले में अच्छी बिक्री होने की उम्मीद जता रहे हैं. वहीं वस्तु के बदले दूसरी वस्तु लेने की प्राचीन परंपरा आज भी इस मेले में देखने को मिल रही है, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत और संस्कृति को जीवंत रखे हुए हैं.
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FIRST PUBLISHED :
November 23, 2024, 19:13 IST