सोलापुर जिले के एक छोटे से गांव अक्कलकोट के अमोल नागनाथ गोटे ने अपनी कला से यह साबित कर दिया कि कड़ी मेहनत और लगन से कुछ भी संभव है. गरीबी और चुनौतियों के बीच पले-बढ़े अमोल ने पत्थर तराशने की कला सीखकर न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारी, बल्कि अपनी एक अलग पहचान भी बनाई. अमोल आज पत्थरों से विट्ठल रुक्मिणी की मूर्तियां बनाते हैं, मंदिर निर्माण करते हैं और ग्राहकों की पसंद के अनुसार नक्काशी का बेहतरीन काम करते हैं.
पारिवारिक संघर्ष से शुरू हुआ सफर
अमोल का परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था. घर चलाना मुश्किल हो रहा था, लेकिन अमोल ने हालात के आगे हार नहीं मानी. 10वीं तक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अपने पिता के साथ पत्थर तराशने का काम शुरू किया. अमोल ने एक साल के भीतर पत्थर तराशने की सभी बारीकियां सीख लीं. उनके हुनर ने उनके परिवार को धीरे-धीरे आर्थिक स्थिरता की ओर बढ़ने में मदद की.
कोल्हापुर में सीखी तुलसी वृंदावन की कला
अमोल ने अपने काम को और बेहतर बनाने के लिए कोल्हापुर का रुख किया. वहां उन्होंने दो सप्ताह तक तुलसी वृंदावन बनाने की कला सीखी. तुलसी वृंदावन की मांग ने उनके काम को और अधिक पहचान दिलाई. आज वे अपनी मेहनत और कला के दम पर प्रतिदिन लगभग पंद्रह सौ रुपये कमाते हैं. शारीरिक मेहनत करने पर यह कमाई दो से तीन हजार रुपये तक पहुंच सकती है.
कला से मिली नई पहचान
पत्थर तराशने की कला ने अमोल गोटे को न केवल आर्थिक रूप से मजबूत बनाया, बल्कि उन्हें समाज में एक नई पहचान भी दी. वे न सिर्फ पत्थरों से खूबसूरत मूर्तियां बनाते हैं, बल्कि उनका काम मंदिर निर्माण और अन्य धार्मिक कार्यों में भी सराहा जा रहा है. उनकी कला इतनी बेहतरीन है कि ग्राहक उनकी नक्काशी और डिजाइन के कायल हैं.
युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा
अमोल का मानना है कि कला सीखना किसी भी युवा के लिए जीवन बदलने वाला कदम हो सकता है. उन्होंने युवाओं को संदेश दिया है कि यदि नौकरी नहीं मिल रही है, तो किसी कला को सीखें और उसे अपना रोजगार बनाएं. उनका कहना है कि शिक्षा के साथ-साथ हुनर भी बेहद जरूरी है. वे खुद अपनी कला के माध्यम से यह साबित कर चुके हैं कि मेहनत और लगन से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है.
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FIRST PUBLISHED :
November 29, 2024, 17:42 IST