नई दिल्ली. पिछले पांच वित्तीय वर्षों में हाई वैल्यू वाले (₹500 और ₹2000) के जाली नोटों की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज की गई है. आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, ₹500 के जाली नोटों में 300% और ₹2000 के नोटों में 166% की वृद्धि हुई है. विशेष रूप से, ₹500 के जाली नोटों की संख्या 2021-22 में दोगुनी होकर 79,669 मिलियन पीस (एमपीसी) तक पहुंच गई. ₹2000 के जाली नोट, जिन्हें मई 2023 में वापस लेने की घोषणा की गई थी वह 2022-23 में काफी बढ़े. बता दें कि नवंबर 2016 में नोटबंदी का प्रमुख उद्देश्य नकली नोटों को बैंकिंग सिस्टम से बाहर करना था.
आरबीआई के अनुसार, ₹2000 के करीब 98% नोट वापस आ चुके हैं, जबकि ₹6,970 करोड़ मूल्य के नोट अभी भी प्रचलन में हैं. आरबीआई ने जब 2000 के नोट को सर्कुलेशन से बाहर करने का ऐलान किया था तब इकोनॉमी में चल रहे 2000 रुपये के नोटों की कुल वैल्यू 3.56 लाख करोड़ रुपये थी. 2000 रुपये के नोट जमा करने या बदलने की सुविधा हर बैंक व पोस्ट ऑफिस में मिल रही थी.
इकोनॉमी पर क्या होता है इसका असर?
जाली नोटों की वास्तविक मात्रा सरकारी आंकड़ों से अधिक हो सकती है. यह समस्या कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है, जो अब तक केवल जाली नोटों का एक छोटा हिस्सा ही पकड़ पाई हैं. जाली नोट न केवल औपचारिक वित्तीय प्रणाली को कमजोर करते हैं, बल्कि समानांतर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देते हैं. ये नकली नोट बाजार में नकदी की आपूर्ति बढ़ाकर मांग को बढ़ाते हैं. मांग बढ़ने का नतीजा यह होता है कि महंगाई भी बढ़ने लगती है.
समाधान की आवश्यकता
यह आंकड़े एक स्पष्ट संदेश देते हैं कि जाली नोटों पर लगाम लगाने के लिए अधिक प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है. सरकार और आरबीआई को कड़े कानूनों के साथ-साथ जागरूकता अभियान चलाने की दिशा में काम करना होगा.
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FIRST PUBLISHED :
November 29, 2024, 18:38 IST