क्या गम है जो छिपा रहे हैं.. फडणवीस को लड्डू खिलाते शिंदे का चेहरा बता गया हाल-ए-दिल!

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एकनाथ शिंदे को उद्धव ठाकरे और उनके नेताओं ने गद्दार से लेकर न जाने क्या-क्या कहा...ऐसे अपशब्द कि लिखना भी मर्यादा के खिलाफ है. एकनाथ शिंदे हर बात पर यही कहते रहे कि उद्धव ठाकरे शिवसेना को अपनी पुश्तैनी जायदाद की तरह समझते हैं. वो कार्यकर्ताओं को अपना नौकर समझते हैं. उद्धव ठाकरे तो इस बार चुनावी सभाओं में सत्ता में आने पर शिंदे को जेल भेजने तक की बात कह रहे थे. ये बातें शिंदे अब तक भूले नहीं हैं.

जीत के बाद अब क्या टेंशन

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ऐसे में खुद शिंदे और उनके साथ आए लाखों शिवसैनिकों और विधायकों, सांसदों में भी हर पल एक सवाल तो उठता ही था कि क्या उन्होंने उद्धव का साथ छोड़कर कोई गलती तो नहीं की? असली शिवसेना कौन है और असली शिवसैनिक कौन है? बालासाहेब ठाकरे के विचारों पर कौन चल रहा है? क्या जनता उद्धव ठाकरे को छोड़कर एकनाथ शिंदे को बालासाहेब ठाकरे की विरासत सौंपेगी. वो विरासत जिसे राज ठाकरे तक न ले सके. जवाब जनता ने दिया और एकनाथ शिंदे की झोली भर दी. फिर भी आज एकनाथ शिंदे उतने खुश नहीं दिखे.

133 ने दूरी बढ़ाई 

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कारण भाजपा 133 तक पहुंच गई है. देवेंद्र फडणवीस ने उनकी मुश्किल समय में मदद की. कुर्सी तक सौंप दी ताकी वो उद्धव के सामने खड़े हो सकें. अब 133 का आंकड़ा एकनाथ शिंदे को कुर्सी पर दावा करने से रोक रहा है. वो खुश तो हैं, लेकिन उन्हें पता है कि अब मुख्यमंत्री की कुर्सी उनसे दूर जा चुकी है. वो चाहकर भी दावा नहीं कर सकते, फिर भी वो निराश नहीं दिखे. कारण अब वो अपने दम पर बालासाहेब के सपनों को पूरा कर रहे हैं.

अजित पवार को क्या मिला?

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इधर, अजित पवार को भी महाराष्ट्र की जनता ने जीवनदान दे दिया. वो खुद अपनी सीट तक जीत पाने का दावा नहीं कर पा रहे थे. अंत समय तो उन्होंने यहां तक कह दिया कि परिवार के सदस्य के चुनाव लड़ने के कारण कोई भी फैसला आ सकता है. लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी के प्रदर्शन ने सहयोगी दलों के साथ-साथ खुद उनका भी आत्मविश्वास घटा दिया था. आज जब वो आए तो फडणवीस की तरह ही खुश दिखे. वचन दिया कि वो अपने सहयोगी दलों के साथ रहेंगे. चाचा शरद पवार की परछाई से आज अजित पवार की खुद की पहचान बन गई और साफ हो गया कि अजित पवार ने शरद पवार का स्थान लगभग ले लिया है. एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने खास तौर पर कहा कि इस चुनाव ने तय कर दिया है कि शिवसेना और एनसीपी किसकी है.

फडणवीस समुंदर की तरह लौटे?

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वहीं फडणवीस अपनी आदत के अनुसार शांत पर जोरदार दिखे. न तो अधिक उत्साह और न ही अपने साथियों को छोटा साबित करने का कोई अवसर उन्होंने दिया. सबसे बड़ी पार्टी का नेता होने के बाद भी एकनाथ शिंदे को पूरा सम्मान दिया. फड़णवीस ने कहा, "फर्जी कहानी प्रचारित करने और धर्म के आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के विपक्ष के प्रयासों को जनता ने विफल कर दिया. मतदाताओं, भाजपा टीम और पार्टी नेताओं के समर्थन के कारण विपक्ष के 'चक्रव्यूह' को तोड़ने में हम सफल हुए." उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई विवाद नहीं है और महायुति के नेता मिलकर इस मुद्दे पर फैसला करेंगे." देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र की विधानसभा में एक बार उद्धव ठाकरे को कहा था,' मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बना लेना, मैं समुंदर हूं, लौट कर वापस आउंगा'. आज 132 सीटे लाकर उन्होंने सच में जोरदार वापसी की है. मतलब सब कुछ तय है और बस इसे सही तरीके से अल में लाया जाएगा ताकी तीनों दलों के कार्यकर्ताओं का मनोबल कम न हो.   

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