Sarna Dharam Code: झारखंड में विधानसभा चुनाव के साथ ही यहां आदिवासियों की लंबे समय से चली आ रही एक मांग फिर उठने लगी है. आदिवासी अपने लिए एक अलग धर्म के तौर पर पहचान चाहते हैं. बड़े वोट बैंक को देखते हुए झारखंड में सक्रिय सभी राजनीतिक दल इस मुद्दे को हवा देते रहे हैं. तमाम प्रमुख दलों ने अपने चुनावी घोषणापत्र में सरना धर्मकोड की वकालत की है. चुनाव प्रचार में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरना धर्म कोड के मामले पर विचार करेगी और उचित निर्णय लेगी. लेकिन असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा तो अमित शाह से भी एक कदम आगे निकल गए. उन्होंने कहा कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो वो सरना कोड लागू करेगी. कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने भी इस मुद्दे पर अपने विचार रखे हैं, जिससे यह चुनावी बहस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया.
झारखंड में 27 फीसदी आबादी आदिवासी
झारखंड में लगभग 27 फीसद आबादी आदिवासी अथवा जनजातीय समुदाय की है. अब तक आदिवासियों के बारे में यह मान्यता रही है कि आदिवासी कोई धर्म नहीं बल्कि जीवन पद्धति है. झारखंड, बिहार, ओडिशा, बंगाल और छत्तीसगढ़ में मुख्यरूप से आदिवासी समुदायों के लोग इसका पालन करते हैं. आदिवासी समुदाय की ज्यादातर आबादी हिंदू धर्म की मान्यताओं व संस्कारों के करीब है. इनके पूजा-पाठ के विधि-विधान और रहन-सहन आदि की परंपराएं भी सनातन हिंदू धर्म के अनुरूप हैं. ये भी आदि काल से हिंदुओं के आराध्य देवी-देवताओं की पूजा करते रहे हैं. पेड़-पौधे और पहाड़ों की ये भी ये पूजा करते हैं.
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क्या है सरना, क्यों पड़ा ये नाम
इनका प्रतीक चिह्न लाल और सफेद रंग का झंडा है. इसे सरना झंडा भी कहा जाता है. इसी तरह आदिवासियों के पूजा स्थल को भी सरना कहा जाता है, जहां वे अपनी मान्यताओं के अनुसार विभिन्न त्योहारों के मौके पर एकत्रित होकर पूजा-अर्चना करते हैं. लंबे समय से सरना को मानने वाले झारखंड का आदिवासी समुदाय भारत में अपनी विशिष्ट धार्मिक पहचान को आधिकारिक मान्यता दिए जाने की मांग कर रहा है. इन बातों से यह तो समझ आ गया होगा कि सरना धर्म कोड आदिवासी समुदाय से जुड़ा हुआ है. ऐसा कहा जाता है कि सरना धर्म जाति, लिंग, वर्ग का भेदभाव नहीं करता है. यह सभी को एक नजर से देखते हैं और एक-दूसरे का भरपूर सम्मान करते हैं.
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जनगणना में हो सरना धर्म का कॉलम
आदिवासी समुदाय की मांग है कि भारत में होने वाली जनगणना में अन्य समुदायों के धर्मों की तरह सरना धर्म का भी कॉलम बनाया जाए. जब आदिवासी समुदाय के लोग फॉर्म भरें तो वह उस फॉर्म में सरना धर्म का उल्लेख कर सकें. जिस तरह दूसरे धर्म के लोग फॉर्म में धर्म के कॉलम में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई इत्यादि लिखते आ रहे हैं. साल 2020 में झारखंड विधानसभा में सर्वसम्मति के साथ सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग वाला प्रस्ताव पास हो चुका है और उसे केंद्र सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था.
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झारखंड में कुल 32 जनजातियां
झारखंड में कुल 32 जनजातियां हैं, जिनकी आबादी करीब 86,45,042 है. इनमें से आठ आदिम जनजातियां भी हैं. झारखंड में रहने वाली प्रमुख जनजातियां ये हैं, संथाल, खड़िया, गोंड, कोल, कांवर, सबर, असुर, बैगा, बंजारा और बाथुडी. झारखंड में आदिवासी आबादी के मामले में जनजातियां देश में चौथे नंबर पर हैं. झारखंड में आदिवासी आबादी का ज्यादातर हिस्सा गांवों में रहता है. गुमला जिले में आदिवासी आबादी का अनुपात सबसे ज्यादा है. संथाल जनजाति की आबादी झारखंड की कुल जनजाति आबादी का 31.86 फीसदी है. मौजूदा समय में, देश में छह धर्मों – हिंदू धर्म, इस्लाम, ईसाई धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म को धार्मिक समुदाय के रूप में मान्यता देने वाले कानून हैं. ऐसा ही कानून आदिवासी समाज सरना को लेकर भी चाहता है.
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FIRST PUBLISHED :
November 19, 2024, 16:20 IST