क्या है वो माधव फॉर्मूला, जिसके जरिए OBC को साध BJP ने जीता महाराष्ट्र का किला

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हाइलाइट्स

80 के दशक में बीजेपी ने महाराष्ट्र में पैर जमाने के लिए माधव फार्मूले पर अमल शुरू कियामाधव फार्मूले के जरिए बीजेपी ने राज्य में ओबीसी समुदाय में पैठ बनाई बीचे में महाराष्ट्र का ओबीसी भारतीय जनता पार्टी से नाराज भी हुआ लेकिन अब वापस लौट आया

महाराष्ट्र में बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए विधानसभा में जबरदस्त जीत की ओर बढ़ रही है. ऐसा लग रहा है कि सत्तादल 70 फीसदी सीटों पर कब्जा करने के साथ प्रचंड बहुमत हासिल करने की ओर है. माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन की जीत में अन्य पिछड़ा वर्ग यानि ओबीसी ने बड़ी भूमिका निभाई है.उनके वोट एकजुट होकर कांग्रेस की अगुवाई वाले महाविकास अघाड़ी की ओर पड़े हैं. ओबीसी ऐतिहासिक रूप से महाराष्ट्र में एक महत्वपूर्ण मतदाता समूह रहा है.. तो

बीजेपी बरसों से राज्य में ओबीसी वोटों को एकजुट रखते हुए अपनी ओर लाने पर खास ध्यान देती रही है. हालांकि इस रणनीति का उद्देश्य मराठा समुदाय के प्रभाव का मुकाबला करना है, जिसने पारंपरिक रूप से कांग्रेस पार्टी का समर्थन किया है. इसके लिए बीजेपी ने राज्य में माधव फार्मूले पर काम किया है. ये पहल पिछले चुनावों में भी उसके लिए काफी असरदार रही है.

क्या है माधव फार्मूला, जिसे बीजेपी ने साधा
भाजपा 1990 के दशक से ही ओबीसी वोटों को एकजुट करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है. इसके लिए माधव फार्मूला जैसी रणनीतियों का इस्तेमाल किया जाता है, जो माली, धनगर और वंजारी जैसे विभिन्न ओबीसी समुदायों को एकजुट करता है. तो आप समझ गए होंगे कि माधव का मतलब है माली, धनगर और वंजारा. इस ऐतिहासिक जुड़ाव ने ओबीसी के बीच एक मजबूत मतदाता आधार बनाया है, जो ऐसे राज्य में महत्वपूर्ण है, जहां उनकी पर्याप्त जनसंख्या है.

ओबीसी की ओर फिर क्यों लौटी बीजेपी
हालांकि मौजूदा विधानसभा चुनावों में तो लग रहा है कि महाराष्ट्र के मराठा समुदाय का वोट भी बीजेपी की ओर गया है. हालांकि मराठा के बारे में माना जाता रहा है कि वो पारंपरिक तौर पर पारंपरिक रूप से कांग्रेस का समर्थन करता रहा है, इसलिए बीजेपी का ध्यान राज्य में ओबीसी एकीकरण पर रहा है, हालांकि बीच में बीजेपी ने ओबीसी की अनदेखी करने की कोशिश की तो इस समुदाय की नाराजगी भी झेलनी पड़ी.

हरियाणा में भी ये फार्मूला असरदार रहा
ओबीसी वोटों को एकजुट करने की रणनीति हरियाणा में भी बीजेपी के लिए काफी असरदार रही है. हरियाणा में जहां बीजेपी ने गैर-जाट समुदायों पर फोकस किया और उनके मुद्दों पर ध्यान केंद्रीत करने की कोशिश की तो यही काम महाराष्ट्र में किया.

फिर लौट आया ये वोटबैंक
बीजेपी हमेशा से शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के जरिए ओबीसी मतदाताओं के बीच चिंता पर जोर देती रही है. इसके जरिए उसने ओबीसी का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की. तो कहना चाहिए कि महाराष्ट्र में ओबीसी वर्ग हमेशा से उसकी सफलता का बड़ा हिस्सा रहा है.

बेशक यूपी में लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने ओबीसी समुदाय के वोट गंवाए, ये असर कुछ हद तक महाराष्ट्र में भी लोकसभा चुनावों के दौरान दिखा लेकिन अब नहीं है. उनका ये वोटबैंक उनके पास लौट आया लगता है. उसने विधानसभा चुनावों में महायुति गठबंधन के पक्ष में झुकाव दिखाया है.

40 पहले बीजेपी ने इसी से जमाया पैर
1980 के दशक में बीजेपी ने पारंपरिक रूप से कांग्रेस और मराठा राजनीति के वर्चस्व वाले महाराष्ट्र में पैर जमाने के लिए माधव फार्मूला का सहारा लिया. पार्टी का उद्देश्य मुख्यधारा की राजनीति से हाशिए पर महसूस करने वाले समुदायों पर ध्यान केंद्रित करके ओबीसी मतदाताओं को आकर्षित करना था. यह वसंतराव भागवत और गोपीनाथ मुंडे जैसे नेताओं द्वारा शुरू की गई एक व्यापक सामाजिक इंजीनियरिंग रणनीति का हिस्सा था.

तब ओबीसी नाराज हुआ था
2014 के चुनावों के दौरान इस फॉर्मूले को फिर से महत्व मिला जब मुंडे के नेतृत्व में भाजपा ने इन समुदायों को सफलतापूर्वक एकजुट किया. पार्टी ने धनगर समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का वादा करके ओबीसी भावनाओं का लाभ उठाया, हालांकि यह वादा पूरा नहीं हुआ, जिससे ओबीसी मतदाताओं में कुछ असंतोष पैदा हुआ.

जब बीजेपी ने मराठा नेताओं के करीब जाने लगी
2014 में अपनी चुनावी सफलता के बाद भाजपा ने अपने खेमे में और अधिक मराठा नेताओं को शामिल करना शुरू कर दिया, जिसने अनजाने में ओबीसी नेताओं को दरकिनार कर दिया. इन समुदायों के बीच उपेक्षा की धारणा पैदा कर दी. तब ओबीसी नेताओं ने पार्टी के भीतर अपने घटते प्रभाव के बारे में चिंता भी जाहिर की.

तब फिर ओबीसी फार्मूले को जिंदा किया
बाद के चुनावों में असफलताओं के मद्देनजर, विशेष रूप से 2024 के लोकसभा चुनावों में, जहां मराठा आरक्षण जैसे मुद्दों के कारण ओबीसी समर्थन डगमगा गया, भाजपा ने फिर माधव फॉर्मूले को थामा और उसे फिर से जिंदा किया. पार्टी अब कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से ओबीसी समुदायों के साथ फिर से जुड़ने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है.

अब फिर क्या किया बीजेपी ने
हाल की कार्रवाइयों में अहमदनगर का नाम बदलकर अहिल्यानगर करने, धनगर समुदाय द्वारा पूजे जाने वाले ऐतिहासिक व्यक्तियों को सम्मानित करने जैसे प्रस्ताव शामिल हैं. भाजपा यह भी सुनिश्चित कर रही है कि पार्टी के भीतर प्रमुख नेतृत्व की भूमिकाएं ओबीसी नेताओं के पास हों, जैसे कि चंद्रशेखर बावनकुले को राज्य अध्यक्ष नियुक्त करना.

और अब विधानसभा चुनाव बता रहे हैं कि बीजेपी ने ओबीसी समुदाय को फिर से अपनी ओर लाने में सफलता हासिल कर ली है. माधव फार्मूले ने महाराष्ट्र में फिर बीजेपी को वो ताकत दे दी है, जिसकी उसको तलाश थी.

Tags: Maharashtra bjp, Maharashtra Elections, OBC Politics

FIRST PUBLISHED :

November 23, 2024, 14:01 IST

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