जीरा और राई की बुवाई से पहले कर लें ये काम, बंपर उत्पादन के साथ तगड़ी होगी कमाई

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फसलों का बचा हुआ अवशेष नहीं जलाए 

जयपुर. जीरे की बुवाई का यह सबसे अच्छा समय है. इस समय किसान जीरे की बुवाई करने से अच्छा उत्पादन मिलेगा. कृषि विशेषज्ञ के अनुसार जीरे की बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 4 ग्राम टाइकोडरमा विरिडी प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए. इसके अलावा बुवाई के लिए बीज की मात्रा 12-15 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर रखें. वहीं अधिक उत्पादन के लिए नाइट्रोज 15 किलो, फास्फोरस 20 किलो व पोटाश 15 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से आखिरी जुताई के समय उपयोग कर सकते हैं.

राई की इन किस्मों की कर सकते हैं बुवाई

कृषि विशेषज्ञ के अनुसार राई की बुवाई के लिए आरजेड-19, आरजेड-209, जीसी-4 व आरजेड-223 उन्नत किस्मों का उपयोग करें. बुवाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करें तथा दूसरी सिंचाई 6-7 दिन बाद करें. इसके अलावा जीरे की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडापेंमेथालिन 1 किलो सक्रिय तत्व (4.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के बाद तथा अंकुरण से पहले सावधानी पूर्वक प्रयोग करें. वहीं पपीते की फसल में पण संकुचन एवं मोजेक रोग की रोकथाम के लिए रोग ग्रस्त पौधेको उखाड़ कर नष्ट कर दें. रोग को रोकने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.3 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

पौधों में होने वाले रोग से ऐसे बच्चे

केंकर रोग के प्रबन्धन के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 100 मिलीग्राम एवं कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें. किन्नू के बागों में रोगों व अन्य कारणों से फल गिरने से रोकने के लिए कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्युपी (बाविस्टिन) 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या प्रोपीनेब 70 डब्ल्यूपी (ऐन्ट्रा कॉल) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं. प्रयोग किए जाने वाले घोल में जिब्रेलिक एसिड 20 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना फायदेमंद साबित होगा. फसलों पर रसायन छिड़कते समय मधुमक्खियों को बक्सों के अंदर ही रखें. कीटनाशक छिड़कने के 5 से 6 घंटे बाद मधुमक्खियों को खेतों में ही रहने दें. वहीं फसलों पर घातक कीटनाशक का छिड़काव करने से बचें.

फसलों का बचा हुआ अवशेष नहीं जलाए

खरीफ फसलों का बचा हुआ अवशेष आप जलाने वाले हैं तो ऐसा मत कीजिए. इससे प्रदूषण तो फैलता ही है, फसलों को भी नुकसान पहुंचता है.  धुंध-धुआं के कारण सूर्य की किरणे फसलों तक पूरी तरह नहीं पहुंच पाती, इससे फसलों में प्रकाश संश्लेषण और वाष्पोत्सर्जन की प्रकिया प्रभावित होती है और भोजन बनाने में कमी आती है. इससे फसलों की उत्पादकता व गुणवत्ता प्रभावित होती है. ऐसे में बचे अवशेषों को आप जमीन में मिला दें ताकि मृदा की उर्वकता बढ़े और यह पलवार का भी काम करेंगी, क्योंकि मृदा से नमी का वाष्पोत्सर्जन कम होगा. अवशेषों को सड़ाने के लिए आप 4 कैप्सूल प्रति हेक्टेयर की दर से डीकंपोजर कैप्सूल का उपयोग भी कर सकते हैं.

Tags: Agriculture, Jaipur news, Local18, Rajasthan news

FIRST PUBLISHED :

November 29, 2024, 15:04 IST

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