झरिया में दशकों से सुलग रही धरती.
धनबाद: झारखंड के धनबाद को ‘कोयला नगरी’ के नाम से भी जाना जाता है. धनबाद के झरिया में देश का बड़ा कोयला भंडार है. लेकिन, यह इलाका आजकल एक और कारण से सुर्खियों में है. यहां की खदानें सुलग रही हैं. इन खदानों में लगी आग दशकों से बुझी नहीं है और लगातार फैल ही रही है. यहां सालों से उठता धुआं न केवल पर्यावरण के लिए खतरा है, बल्कि यहां रहने वालों के जीवन को भी नरक बना चुका है. ऐसे में यहां के लोगों का सवाल है… झरिया की आग कब बुझेगी?
झारखंड में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. ऐसे में झरिया का मुद्दा भी फिर सुलगने लगा है. यहां लगी आग का मामला कोई नया नहीं है. सबसे पहले इस आग की सूचना 1916 में मिली थी. तब से यह बिना रुके आग जल रही है. यह आग मुख्य रूप से भूमिगत कोयला भंडार में स्वतः दहन के कारण लगती है. अत्यधिक गर्मी और दबाव की स्थिति में कोयला जलने लगता है, जिससे यह आग फैलती है. धीरे-धीरे यह आग आसपास की जमीन को भी चपेट में ले रही है, जिससे इस क्षेत्र में रहना बेहद मुश्किल हो गया है.
प्रयासों को मुंह चिढ़ाती चुनौती
इस आग को रोकने के लिए कई सरकारी और निजी संस्थाओं ने समय-समय पर प्रयास किए हैं. आग बुझाने के लिए खदानों में पानी भरने, अग्निरोधक सामग्री का इस्तेमाल करने और खदानों को सील करने जैसी योजनाएं शुरू की गईं. लेकिन, कोई भी प्रयास इस आग को पूरी तरह से रोकने में सफल नहीं हो पाया. झरिया की आग को बुझाना एक तकनीकी और आर्थिक चुनौती है, जिसके लिए पुरजोर प्रयासों की आवश्यकता है. हालांकि, सरकार और अन्य संस्थाओं की ओर से निरंतर काम हो रहा है, फिर भी इस आग पर पूरी तरह से नियंत्रण नहीं पाया जा सका है. आग की वजह से निकलने वाले धुएं और गैस के कारण स्थानीय निवासियों का जीवन दूभर हो गया है.
स्थानीय लोगों का जीवन संकट में
झरिया क्षेत्र के निवासियों को हर दिन धुएं और विषैली गैस का सामना करना पड़ता है. यह उनके स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है. यहां के स्थानीय राम पासवान ने लोकल 18 को बताया, “हमें रोज़ कोयले से निकलने वाले धुएं और गैस के कारण सांस लेने में समस्या होती है. तरह-तरह की बीमारियों ने हमें जकड़ लिया है. आप मेरे शरीर को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि मैं कितना कमजोर हो गया हूं. यहां का जीवन बहुत कठिन है.”
कोई नहीं जानता… कब क्या हो जाए
साथ ही वहां आस-पास रहने वाले कुछ अन्य लोग बताते हैं, ”स्वास्थ्य समस्याओं के अलावा, यहां पानी की समस्या भी है. आग की वजह से जमीन के नीचे कुआं खोदना या चापाकल लगाना संभव नहीं है. कभी-कभी सप्लाई का पानी आता है और कभी नहीं. जिस दिन पानी नहीं आता, उस दिन हमें काफी मुश्किल होती है. कुआं या चापाकल लगाने का कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि जमीन के नीचे सिर्फ आग ही आग है. यहां रहना हमारी मजबूरी है. चारों तरफ आग और धुआं है. कोई नहीं जानता कि हमारा घर कब इस आग की चपेट में आ जाएगा.”
जमीन बंजर, जीवन दुष्कर
झरिया की आग न केवल स्थानीय निवासियों के लिए समस्या है, बल्कि यह एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या भी है. आग से निकलने वाली गैस और धुआं वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है. स्थानीय पर्यावरण और आसपास के वन्य जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. इस आग के कारण जमीन का बड़ा हिस्सा बंजर हो चुका है, जिससे खेती और अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए भूमि का उपयोग असंभव हो गया है.
ऊपर घर… नीच आग
सरकार की ओर से पुनर्वास के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अब तक योजनाओं का क्रियान्वयन पूरी तरह सफल नहीं हो सका. हजारों लोग अब भी इस आग के बीच हैं, जहां उनके घरों के नीचे निरंतर आग जल रही है. उनके जीवन पर हर दिन खतरा मंडरा रहा है. इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान निकालना जरूरी है, ताकि लोगों को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित किया जा सके और उनके जीवन को बचाया जा सके.
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FIRST PUBLISHED :
October 18, 2024, 06:10 IST