धनबल, साइकिल और फर्जी वोटिंग...जानें 50 साल पहले कैसे होते थे चुनाव

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50 साल पहले कैसे होते थे चुनाव

रूपांशु चौधरी, हजारीबाग: भारतीय लोकतंत्र में चुनावों का एक अलग महत्व रहा है, और आजादी के बाद से देश में चुनाव कराने की परंपरा निरंतर जारी है. आज जहां आधुनिक तकनीक और संसाधनों के चलते चुनावी प्रक्रिया सरल हो गई है, वहीं 50 साल पहले चुनाव एक लंबी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया होती थी. हजारीबाग के 81 वर्षीय रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. यमुना प्रसाद, जो 1960 के दशक से चुनावों में भाग लेते आ रहे हैं, बताते हैं कि उस दौर के चुनाव आज के मुकाबले काफी अलग हुआ करते थे. आइए जानते हैं, 50 साल पहले के चुनावों की कहानी और जनता के मुद्दों की स्थिति.

जनता का चुनावी मुद्दा: जाति और समुदाय था मुख्य आधार
आज जहां चुनावी मुद्दे विकास, रोजगार और शिक्षा के इर्द-गिर्द घूमते हैं, वहीं 50 साल पहले के चुनावों में जनता का ध्यान इन मुद्दों पर बहुत कम होता था. उस समय के चुनावी मुद्दे जाति और समुदाय के आधार पर तय होते थे. डॉ. यमुना प्रसाद बताते हैं कि 1960 और 1970 के दशक में अधिकांश लोग उम्मीदवार की जाति देखकर ही वोट डालते थे. पिछड़ी और दलित जनता चुनाव के प्रति जागरूक नहीं थी, और अधिकतर लोग एक ही पार्टी, कांग्रेस, को वोट देते थे. हजारीबाग में राजा कामाख्या नारायण सिंह का प्रभाव इतना था कि लोग उनके कहने पर ही वोट डाल देते थे.

साइकिल पर निकलता था नेताओं का काफिला
आज जहां चुनाव प्रचार के लिए बड़े-बड़े काफिले और महंगी गाड़ियां इस्तेमाल होती हैं, वहीं 50 साल पहले स्थिति बिल्कुल अलग थी. उस समय के नेता साइकिल पर घूम-घूम कर गांव-गांव जाकर वोट मांगते थे. डॉ. यमुना प्रसाद बताते हैं कि उस दौर में धनबल का दिखावा आज के मुकाबले बहुत कम था. नेता पोस्टर और पर्चों के जरिए प्रचार करते थे. धीरे-धीरे साइकिल की जगह मोटरसाइकिल ने ली, और अब कारों का जमाना आ गया है. लेकिन तब चुनाव प्रचार का साधन साइकिल ही हुआ करता था, जो सरल और सस्ता तरीका था.

फर्जी वोटिंग थी आम बात
उस समय के चुनावों में फर्जी वोटिंग बहुत ज्यादा होती थी. मतदाता अक्सर झुंड बनाकर वोट डालने जाते थे, लेकिन जब वे मतदान केंद्र पर पहुंचते, तो उन्हें पता चलता कि कोई और उनका वोट पहले ही डाल चुका है. यह स्थिति खासतौर पर बिहार में अधिक थी, जहां फर्जी वोटिंग आम बात थी. आज के मुकाबले तब सुरक्षा के इंतजाम भी कम थे, जिससे इस तरह की घटनाएं ज्यादा होती थीं.

बैलट पेपर से वोटिंग और 4 दिन तक चलती थी गिनती
वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के जरिए वोटिंग होती है, जिससे गिनती का काम तेजी से होता है. लेकिन 50 साल पहले बैलट पेपर के जरिए वोटिंग होती थी, और गिनती की प्रक्रिया बेहद धीमी होती थी. डॉ. यमुना प्रसाद बताते हैं कि चुनाव की गिनती में 3 से 4 दिन का समय लग जाता था. कार्यकर्ता 4 दिनों का खाना लेकर गिनती केंद्र पहुंचते थे. बैलट पेपर पर उम्मीदवार के नाम और उनके चुनाव चिन्ह होते थे, और मतदाता मोहर लगाकर वोट डालता था. गिनती की धीमी गति और संसाधनों की कमी के कारण चुनावी प्रक्रिया बेहद लंबी खिंच जाती थी.

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FIRST PUBLISHED :

October 22, 2024, 17:57 IST

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