पहला ट्रंप-दूसरा पुतिन...यूक्रेन के बहाने बाइडन ने कैसे साधे 1 तीर से 2 निशाने

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सीजफायर तक कुर्स्क पर यूक्रेन को बढ़त बनाए रखने भर की अमेरिकी कोशिश सीजफायर तक कुर्स्क पर यूक्रेन को बढ़त बनाए रखने भर की अमेरिकी कोशिश

नई दिल्ली: रूस-यूक्रेन की लड़ाई जमीन के कब्जे को लेकर शुरू हुई. रूस ने यूक्रेन की कई जगहों पर कब्जा किया तो यूक्रेन ने भी पलटवार किया. यूक्रेन ने अमेरिका और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर रूसी इलाके कुर्स्क की 1000 वर्ग किलोमीटर की जमीन पर कब्जा जमा लिया. अब अमेरिका ने यूक्रेन को रूस के खिलाफ लॉन्ग लेंज के हथियारों के इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है. मगर सवाल यह है कि आखिर जाते-जाते बाइडन प्रशासन ने यह फैसला क्यों लिया. पहले लॉन्ग रेंज वेपन के इस्तेमाल को लेकर ग्रीन सिग्नल क्यों नहीं दिया? डिफेंस एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इसके पीछे की कई वजह हैं. एक वजह यह हो सकती है कि जो बाइडन नहीं चाहते कि जंग खत्म कराने का क्रेडिट डोनाल्ड ट्रंप को मिले. हालांकि, यह फैसला राष्ट्रपति चुनाव से पहले डेमोक्रेट को मजबूत कर सकता था. दूसरी वजह है कि जो बाइडन जाते-जाते रूस पर एक मोरल दबाव बना देना चाहते हैं.

दरअसल, अमेरिका चाहता है कि कुर्स्क क्षेत्र पर तब तक यूक्रेन का कब्जा बरकरार रहे, जबतक जंग खत्म करने के लिए बातचीत यानी नेगोशिएशन की मेज न सज जाए. जानकार मानते हैं कि किसी भी बड़े देश की मोरल हार तब मानी जाती है कि जब कोई छोटा अथवा कमजोर देश बातचीत की मेज उसे नेगोशिएशन के लिए ले आए. हालांकि, रूस इससे इत्तेफाक नहीं रखेगा कि बातचीत में कुर्स्क की जमीन के बदले यूक्रेन पर कब्जे वाली जमीन को छोड़ना पड़े. यूक्रेन ने रूस के कुर्स्क इलाके के 1000 वर्ग किलोमीटर पर कब्जा किया है तो रूस ने यूक्रेन के डोनेस्क पर कब्जा किया हुआ है.

अमेरिका ने क्यों उठाया यह कदम
जानकारों की मानें तो रूस ज्यादा से ज्यादा जमीन कब्जा करने के लिए अपने ऑपेरशन को जारी रखा है. यही वजह है कि अमेरिका कुर्स्क पर यूक्रेनी कब्जे को बरकरार रखने के लॉन्ग रेंज वेपन का एक डर रूस पर डालना चाहता है. रिपोर्ट के मुताबिक, कुर्स्क को यूक्रेनी कब्जे से छुड़ाने के लिए रूस की मदद के वास्ते करीब 11000 उत्तर कोरियाई सैनिक मौजूद हैं. अमेरिका चाहता है कि कुर्स्क पर यूक्रेन का कब्जा बरकरार रहे ताकि फ्यूचर में बातचीत की मेज पर जब इस जंग का फैसला हो तो यूक्रेन के पास नेगोशिएशन के लिए कुछ हो. अमेरिका चाहता है कि जमीन के बदले जमीन की सूरत में रूस जैसे ताकतवर देश की मोरल हार हो. हालांकि, जानकार मानते हैं कि रूस तब तक बातचीत के मेज पर नहीं आएगा, जब तक कि वो उनके कब्जे की जमीन को वापस हासिल ना कर ले.

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अमेरिका रूस पर मेंटल प्रेशर बना रहा?
सेकेंड वर्ल्ड वॉर यानी दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से यह पहला मौका है, जब रूसी जमीन पर किसी दूसरे देश के सैनिक मौजूद हैं. कुर्स्क पर यूक्रेन की पकड़ मजबूत बनाए रखने के लिए ही अमेरिका ने लंबी दूरी के हथियारों के इस्तेमाल की मंजूरी दी है. यह एक तरह से रूस पर मेंटल प्रेशर बनाने की अमेरिकी कोशिश है. हाईब्रिड वॉरफेयर के दौर में नॉन कॉन्ट्रैक्ट वॉर पर ज्यादा जोर दिया जाता है. यानी लॉन्ग रेंज वेपन और ड्रोन का इस्तेमाल सबसे ज्यादा. यूक्रेन अब तक अमेरीकी और उसके सहयोगी के बूते ही जंग में बना हुआ है. अब लॉन्ग रेंज के मिसाइल इस जंग का दायरा भी बढ़ा सकती है, जिसकी संभावना रूस ने भी जताई है.

रूस देगा करारा जवाब
रूसी विदेश विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जाखारोवा ने अमेरिका के इस कदम पर रूस की मंशा साफ की है. उन्होंने कहा कि हमें नहीं पता कि इस खबर में कितना दम है, मगर एक बात साफ है कि कीव सरकार की हारों को देखते हुए उसके पश्चिमी संरक्षक रूस के खिलाफ शुरू किए गए हाइब्रिड युद्ध को और बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं ताकि मॉस्को पर रणनीतिक हार डालने जैसे भ्रमपूर्ण लक्ष्य को हासिल कर सके. लेकिन ये सब रूस के स्पेशल मिलेट्री ऑपरेशन को प्रभावित नहीं कर सकता. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 25 अक्टूबर को साफ तौर से कहा था कि नाटो की ओर से लॉन्ग रेंज के हथियारों का इस्तेमाल करने की इजाजत का असल मतलब होगा परमाणु अटैक. रूस ने ऐसी स्थिति में परमाणु हमले की धमकी दी है. पुतिन ये जोर देकर कहा कि बिना नाटो की मदद से यूक्रेन खुद से इस तरह के हमले नहीं कर सकता.

अमेरिकी बूट्स ऑन ग्राउंड?
करीब तीन साल से रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी है. रूस के पास यूक्रेन के मुकाबले खुद के इतने संसाधन हैं कि वो अकेले इस जंग को लड़ रहा है लेकिन यूक्रेन अमेरिकी और उसके सहयोगियों के साथ है. हांलाकि अमेरिकी प्रशासन पहले इस बात को साफ कर चुका है कि बूटस् ऑन ग्राउंड नहीं होगा यानी अमेरिका खुद लड़ाई में सीधे तौर पर अपने सैनिकों को नहीं उतरेगा. हालांकि, पिछले तीन साल से अमेरिका और अन्य नाटो सदस्य देश हर तरह से यूक्रेन की मदद कर रहे हैं. एफ-16 , आर्टेलरी गन, शेल, एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल और ना जाने किन-किन हथियारों से यूक्रेन की मदद की जा रही है. अब अमेरिका ने लॉन्ग रेंज के हथियार के इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है. अमेरिका इन मिसाइलों की सप्लाई तो यूक्रेन को पहले से ही कर रहा था लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं किया गया. अब इस्तेमाल पर भी अमेरिका ने ग्नीन सिग्नल दे दी.

यूक्रेन की बढ़ी ताकत पर रूस भी है तैयार
अमेरिका के इस कदम के बाद अब यूक्रेन के पास वह ताकत हो गई कि वह इस मिसाइल के जरिए रूस के अंदर तक मार कर सकता है. ATACMS यानी कि आर्मी टैकटिकल मिसाइल सिस्टम की रेंज 300 किलोमीटर है और ये एक बैलिस्टिक मिसाइल है. इसकी स्पीड को पकड़ पाना और उसे नष्ट करना रूस के लिए ये सबसे बड़ी चुनौती होगी. हालांकि, रूस के पास हाइपरसोनिक मिसाइल सिस्टम भी है जो कि इसकी काट है. हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकन फर्स्ट की नीती पर चलते हैं कि आखिर अमेरिका को फायदा क्या हो रहा है. इन तीन साल में तो अमेरिका ने लाखों करोड़ों डॉलर दिया है, मगर उसे अब तक कुछ हासिल नहीं हुआ और पूरा यूक्रेन तबाह हो गया. ऐसे में माना जा रहा है कि बातचीत का रास्ता आने वाले दिनों में खुल सकता है.

Tags: Joe Biden, Russia ukraine war, US News, Vladimir Putin, World news

FIRST PUBLISHED :

November 19, 2024, 11:40 IST

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