पापड़ के खारापन लाने के लिए इस्तेमाल होता है यह पौधे, जानिए प्राचीन विधि

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पापड

पापड बनाने के लिए इस विशेष पोधे

जोधपुर: जिले के केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) ने पापड़ खार तैयार करने की प्राचीन विधि को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है. पापड़ के खारापन लाने के लिए खारा लाणा नामक पौधे का उपयोग किया जाता था. इस पौधे से सोडियम कार्बोनेट तैयार किया जाता था, जिसे आमतौर पर पापड़ खार कहते हैं. सीमित मात्रा में उपलब्ध इस पौधे और विधि को काजरी ने आधुनिक युग में फिर से जीवंत करने का बीड़ा उठाया है.

खारा लाणा की पारंपरिक विधि
यह पौधा मुख्य रूप से राजस्थान के नमकीन मिट्टी वाले क्षेत्रों जैसे सांभर, बाड़मेर और जैसलमेर में पाया जाता था. इसके अलावा, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भी यह सीमित मात्रा में उगता था. पापड़ खार तैयार करने की पारंपरिक विधि में पौधे की डालियों को काटकर गड्ढे में जलाया जाता था. कई दिनों तक जलाने के बाद निकलने वाले लिक्विड को जमाकर शुद्ध खार तैयार किया जाता था.

खारा लाणा का वैज्ञानिक नाम और उपयोगिता
काजरी के विभागाध्यक्ष डॉ. प्रियब्रत सांतरा ने बताया कि इस पौधे का वैज्ञानिक नाम हेलोक्सिलीन रिकर्वम है और यह अमरेन्थेसी परिवार से संबंधित है. यह पौधा नमकीन मिट्टी और पानी में आसानी से उगता है और इसकी पत्तियों में नमक जमा हो जाता है. खारा लाणा से तैयार खार का उपयोग पापड़ बनाने के अलावा सोडियम कार्बोनेट उत्पादों में भी होता है.

बाजार में रासायनिक विकल्प की चुनौती
आजकल पापड़ खार को रासायनिक विधियों से तैयार किया जा रहा है, लेकिन यह पारंपरिक खार की गुणवत्ता को हासिल नहीं कर पाता. अफगानिस्तान में अब भी इस पौधे से खार तैयार किया जाता है और भारत में पापड़ की बड़ी मांग को देखते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यात किया जाता है.

पुनर्जीवित करने के प्रयास
काजरी के वैज्ञानिक सौरभ स्वामी ने बताया कि बीकानेर के विजयनगर क्षेत्र में इस पौधे को दोबारा उगाने का प्रयास किया जा रहा है. यह क्षेत्र नमकीन मिट्टी के लिए जाना जाता है और खारा लाणा के लिए उपयुक्त है. काजरी का यह कदम न केवल इस पारंपरिक विधि को संरक्षित करेगा, बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को भी सहेजने का कार्य करेगा.

राजस्थान की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक
खारा लाणा न केवल पापड़ खार बनाने की पारंपरिक विधि का हिस्सा है, बल्कि यह राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है. काजरी के इस प्रयास से यह पौधा और इससे जुड़ी विधि भविष्य में नई पीढ़ी को राजस्थान की समृद्ध परंपरा से जोड़ने का काम करेगी.

Tags: Jodhpur News, Local18, Rajasthan news

FIRST PUBLISHED :

November 19, 2024, 13:18 IST

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