पुरुष प्रधान समाज में मर्द कैसे बनते हैं भेदभाव का शिकार?

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माना जाता है कि धरती पर सबसे पहला पुरुष एडम (आदव) और पहली महिला ईव (हव्वा) थीं। इन्हीं से इंसानों की बिरादरी आगे बढ़ती चली गई। जब एक विकसित समाज बना तो इसकी कमान पुरुषों ने संभाल ली। आज भी हम एक पुरुष प्रधान समाज में रहते हैं जहां पितृसत्ता हमेशा हावी दिखती है। इस सामाजिक व्यवस्था ने पुरुषों को सुपरमैन बना दिया और महिलाओं को अबला। मर्दों पर कमाने की, परिवार चलाने की, फैसले लेने की और हमेशा स्ट्रॉन्ग दिखने की जिम्मेदारी थोप दी गई। इन जिम्मेदारियों के बीच पुरुष इतना मजबूत सोच लिया गया कि उसके साथ ही भेदभाव होने लगा। आज 19 नवंबर है और यह दिन International Men’s Day के तौर पर मनाया जा रहा है। कैसे समाज पुरुषों के साथ भेदभाव करता है, इसके बारे में सोचा है? 

बचपन से दबाए जाते हैं लड़कों के एहसास
मनोचिकित्सक मुस्कान यादव कहती हैं कि हमारे घर में लड़कियां पापा की परी होती हैं और लड़के मां के लाडले होते हैं। एक बच्चे के लिए उनके पैरेंट्स ही जिंदगी के सबसे पहले टीचर होते हैं। अक्सर घरों में लड़की के मुकाबले लड़कों को ज्यादा आजादी दी जाती है। लड़के देर रात तक बाहर घूम सकते हैं, बनियान में बालकनी में खड़े हो सकते हैं, दोस्तों के साथ बाहर घूम सकते हैं लेकिन लड़कियों को घर में ही ढके-छुपे तरीके से रखा जाता है क्योंकि वह घर की इज्जत होती हैं। लड़कों की परवरिश ही ऐसी की जाती है कि उन्हें दिमाग से बड़ा बनाया जाए। पैरेंट्स उसमें अपना संवरा हुआ भविष्य देखते हैं। बचपन से ही उसके दिमाग में यह डाल दिया जाता है कि पापा के बाद परिवार उसने ही संभालना है। जब लड़का किसी बात पर रोता है तो तुरंत उसे कह दिया जाता है कि लड़के नहीं रोते। जबकि लड़के भी इमोशनल होते हैं, उन्हें भी एहसास होता है लेकिन समाज उनके इमोशन को बचपन से ही दबाता चला आ रहा है। 

भारत में पुरुषों के मुकाबले अधिकतर कानून महिलाओं के लिए बनाए गए (Image-Canva)

ना पढ़ने पर सुनाए जाते हैं ताने
समाज में अक्सर लड़कों को ‘अलादीन का चिराग’ समझ लिया जाता है। यानी उससे जो चीजें खरीदने को बोली जाएंगी, वह खरीद देगा। यही वजह है कि स्कूल-कॉलेज में जब लड़कों के अच्छे नंबर नहीं आते हैं तो खुद पैरेंट्स और टीचर्स ही उन्हें यह बात सुना देते हैं कि पढ़ोगे नहीं तो नौकरी नहीं मिलेगी और फिर तुमसे कोई लड़की शादी भी नहीं करेगा। वहीं, लड़कियां अगर कम नंबर भी लाएं तो उन्हें कभी यह ताना नहीं सुनाया जाता है क्योंकि मां-बाप उनके लिए ऐसा लड़का तलाश करते हैं जो अच्छा-खासा पैसा कमाता हो, अच्छी नौकरी करता हो। जब लड़का शादी के लायक हो जाता है तो लड़की वाले सबसे पहले उससे यही सवाल करते हैं कि कमाते कितना हो? अगर वह अच्छा नहीं कमाता तो शादी होनी मुश्किल हो जाती है। यही रूल रिलेशनशिप में भी है। अगर लड़के के पास पैसा हो तो लड़कियां उसके साथ डेट करने में दिलचस्पी दिखाती हैं।    

मर्द को दर्द होता है
करंट बायोलॉजी नाम के जनरल में एक स्टडी छपी जिसमें साफ कहा गया कि पुरुषों को दर्द होता है और वह महिलाओं से ज्यादा इसे महसूस करते हैं लेकिन कुछ कह नहीं पाते। लैंकेस्टर विश्वविद्यालय में दुनियाभर के मनोचिकित्सकों ने भी इस पर एक स्टडी की। यह स्टडी रिलेशनशिप के ऊपर थी। इसमें सामने आया कि खराब रिश्ता पुरुषों को मानसिक रूप से सबसे ज्यादा परेशान करता है और वह इमोशनली टूट जाते हैं। अपना दर्द लड़के किसी से जाहिर भी नहीं कर पाते हैं। रिलेशनशिप में ब्रेकअप के बाद लड़के जल्दी से नया रिश्ता नहीं जोड़ पाते। 

दुनिया में 80 देश अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाते हैं (Image-Canva)

पुरुषों की भी होती है बॉडी शेमिंग
बॉडी शेमिंग की बात होती है तो हमेशा मन में लड़कियों का ख्याल आता है लेकिन हम जिस सोसाइटी में रहते हैं, वहां मर्द भी बॉडी शेमिंग का शिकार होते हैं, लेकिन उनके बारे में कभी बात नहीं होती है। अगर लड़का सांवला हो तो बचपन से उस पर कमेंट किए जाते हैं। अगर वह शोबिज में हो तो उन्हें देखकर तुरंत रिजेक्ट कर दिया जाता है। लड़का छोटी हाइट का हो या पेट निकला हो तो हर कोई उनका मजाक बनाता है। लड़का गंजा हो तो लड़कियां उसे देखना भी पसंद नहीं करतीं। इस पर कई ड्रामे और मूवी भी बन चुकी हैं। आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘बाला’ पुरुषों की बॉडी शेमिंग पर ही थी। उर्दू में लिखी गई नॉवेल और ड्रामा ‘पारिजाद’ भी पुरुषों के इस भेदभाव पर बना। बॉलीवुड के जाने माने प्रोड्यूसर करण जौहर, एक्टर राजकुमार राव, विजय वर्मा, नवाजुद्दीन सिद्दिकी, अर्जुन कपूर जैसे सेलिब्रिटी भी बॉडी शेमिंग झेल चुके हैं। 

महिलाओं को पुरुषों ने ही संवारा
कहते हैं कि हर कामयाब पुरुष के पीछे महिला का हाथ होता है लेकिन हर कामयाब महिला के पीछे पुरुष का भी हाथ होता है। लड़कियों को स्टाइलिश और खूबसूरत बनाने के पीछे पुरुष ही रहे। महिलाओं को फैशनेबल कपड़े पहनना बहुत पसंद है और उनकी फैशनेबल ड्रेसिंग की शुरुआत इंग्लैंड के चार्ल्स फ्रेडरिक वर्थ ने की। चार्ल्स को फादर ऑफ फैशन डिजाइनर कहा जाता है। महिलाओं को ज्वेलरी भी खूब भाती है। ज्वेलरी डिजाइनिंग का श्रेय एंड्रयू ग्रिमा को जाता है। वह महिलाओं की पसंद को समझ गए थे। उन्होंने ज्वेलरी डिजाइनिंग में नए डिजाइन बनाकर क्रांति ला दी थी। वहीं लड़कियां जो खूब सारा मेकअप करती हैं, उसे भी मैस फैक्टर नाम के पुरुष ने बनाया। वह एक उद्यमी के साथ-साथ ब्यूटीशियन भी थे। उन्होंने ही सबसे पहले महिलाओं के लिए मेकअप प्रोडक्ट बनाए और मेकअप शब्द को पॉपुलर बनाया। उन्हें फादर ऑफ मेकअप नाम दिया गया।   

Tags: Marriage ceremony, Mental Health Awareness, New fashions, Parenting tips, Relationship, Social Welfare

FIRST PUBLISHED :

November 19, 2024, 14:23 IST

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