पैसा हो तो दुनिया सलाम करती है और अगर ना हो तो...पचास साल बाद 'अमीर गरीब'

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पचास साल पहले साल 1974 में रीलीज़ हुई 'अमीर गरीब' फ़िल्म बॉलीवुड की उन फ़िल्मों में शामिल रही, जिसमें कॉमेडी और सस्पेंस दोनों ही शामिल रहे हैं. मोहन कुमार द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में समाज के अंदर अमीर गरीब के बीच अंतर को बेहतरीन तरीके से फिल्माया गया है, फ़िल्म एक तरफ अमीरों के रुतबे को दिखाती है तो इसमें गरीबों के संघर्ष को देखते दिल पसीज जाता है. बॉलीवुड के स्टार कलाकार देवानंद और हेमा मालिनी ने अपने बेहतरीन अभिनय से तकनीकी रूप से उन्नत इस फ़िल्म को यादगार बना दिया था.

फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड विजेता रह चुके हैं निर्देशक, सस्पेंस का फुल डोज़ देती फ़िल्म

फ़िल्म के निर्देशक मोहन कुमार ने बॉलीवुड को कई हिट फ़िल्में बनाकर दी हैं. मोहन कुमार सफल निर्देशक होने के साथ सफल लेखक भी रहे. उनके द्वारा साल 1963 में लिखी फ़िल्म 'आस का पंछी ' फ़िल्मफ़ेयर में बेस्ट स्टोरी के लिए अवार्ड जीती थी. अमीर गरीब की कहानी भी मोहन कुमार ने ही लिखी थी. तीन अलग-अलग किरदारों की कहानी को समानांतर लेकर चलना और उसमें दर्शकों को 'ये क्या हो गया!' कहने पर मजबूर कर देना मोहन कुमार की ख़ासियत थी. 

बगुला भगत नाम के चोर से शुरू होती फ़िल्म दर्शकों को शरूआत से ही खुद से बांध देती है. दो अलग अलग प्रेम कहानियों के साथ, यह फ़िल्म कई राज़ छुपाए आगे बढ़ती रहती है, इसमें कोई किरदार गरीबों का मसीहा है तो कोई गरीबों का खून चूसता है. चोर पुलिस का खेल देखते भी दर्शकों को यह फ़िल्म बिल्कुल बोर नही करती और फ़िल्म की अपनी समाप्ति तक हर किसी को सस्पेंस का फुल डोज़ देने में कामयाब रही है.

ब्यूटी क्वीन होने के साथ एक्टिंग क्वीन भी रहीं हेमा मालिनी

देवानन्द ने साल 1974 तक बॉलीवुड में 'गाइड' फ़िल्म की वजह से सुपरस्टार का तमगा हासिल कर लिया था और हेमा मालिनी भी 'सीता और गीता' से खुद को बड़ी कलाकार साबित कर चुकी थी. इस फ़िल्म में दोहरी जिंदगी जीना दोनों मुख्य कलाकारों के लिए चुनौती भरा काम था और उसके लिए यही दोनों, निर्देशक को बॉलीवुड में सबसे सही कलाकार लगे. रीयल लाइफ में उम्र का बड़ा फासला होने के बावजूद देवानन्द और हेमा मालिनी के बीच जोड़ी शानदार थी. गायक और चोर का किरदार निभाते देवानंद ने दर्शकों का दिल जीता है.

हेमामालिनी ने अमीर गरीब, समाज के दोनों ही विपरीत तबकों का किरदार निभाते साबित किया कि वह ब्यूटी क्वीन होने के साथ एक्टिंग क्वीन भी हैं. बॉलीवुड में बड़ा नाम रहे प्रेमनाथ के बिना यह फ़िल्म अधूरी थी दौलतराम के किरदार में दिखे प्रेमनाथ ने बॉलीवुड में खलनायक शब्द को इस फ़िल्म से नई परिभाषा दी थी. ईमानदार पुलिस अफसर के रूप में दिखे सुजीत कुमार ने भी अपना किरदार के साथ न्याय किया है. पचास साल पहले भी तकनीकी रूप से हॉलीवुड के करीब थी अमीर गरीब.

आज से पचास साल पहले तकनीक इतनी उन्नत नही हुई थी लेकिन फिर भी अगर हम उस समय को ध्यान में रखते फ़िल्म को देखें तो इसमें कैमरे का प्रयोग बेहतरीन तरीके से किया गया है. कैमरे की सभी पोजिशंस दृश्यों के हिसाब से ली गई हैं लेकिन ग्राफ़िक्स इससे बेहतर हो सकते थे. फ़िल्म कुछ कुछ हॉलीवुड फिल्मों की तरह सालों आगे की तकनीकी दुनिया में ले जाती है, जैसे जिस बेसमेंट में दौलतराम का कीमती सामान रखा गया है बाथरूम से वहां तक पहुंचने का खुफिया रास्ता उस समय के हिसाब से चौंकाता है. बगुला भगत के चोरी किए गए सामान को रखने की जगह और मोनी की मां का पिंजरा इसके अन्य उदाहरण हैं.

संवाद जो समाज का आईना दिखा गए

देवानन्द का बोला संवाद 'पैसा हो तो दुनिया सलाम करती है और अगर ना हो तो पहचानने से भी इंकार कर देती है और प्रेमनाथ का संवाद 'जिंदगी एक जुआ है और इसमें जीत उन्हीं की होती है जो इसे खेलना जानते हैं', हेमा मालिनी का संवाद 'मोहब्बत, अमीरी-गरीबी नहीं देखती, लेकिन दुनिया हमेशा फ़र्क़ देखती है', इस फ़िल्म के कुछ ऐसे संवाद हैं जो आज भी हमारे वास्तविक जीवन से जुड़े हुए हैं. हमारे समाज में अमीर गरीब के बीच की खाई को इनसे बेहतर कोई और संवाद सामने नही ला सकते थे. 

फ़िल्म में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत फ़िल्म की कहानी को तेज गति से आगे बढ़ाने में मदद करता दिखता है, 'तू मेरे प्याले में शराब डाल दे, फिर देख तमाशा.' गीत इसका उदाहरण हैं. एक्शन हो या बगुला भगत से जुड़े राज़ को गहराते दृश्य, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत ने इन दृश्यों को रोमांचकारी बनाने में कोई कसर नही छोड़ी है. 

पायल दिल्ली से हैं और जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता रिसर्च स्कॉलर हैं. वह कई समाचार पत्र- पत्रिकाओं से जुड़ी रही हैं.

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