महाराष्ट्र चुनाव में इतनी बड़ी हार क्या राहुल गांधी का पर्सनल फेल्योर है?

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नई दिल्ली:

Maharashtra predetermination results analysis: महाराष्ट्र और झारखंड में हुए विधानसभा के चुनावों के परिणाम लगभग साफ हो गए हैं. महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति ने बंपर जीत ने विपक्ष को चारों खाने चित्त कर दिया है. बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई और विपक्ष को पिछली बार से भी कम सीटें मिलती दिख रही हैं. बीजेपी की महाराष्ट्र इकाई और केंद्रीय नेतृत्व इस जीत से जहां उत्साह में है वहीं विपक्ष ने इतनी बड़ी हार की कल्पना तक नहीं की होगी. बीजेपी की इतनी बड़ी जीत पर एनडीटीवी समूह के एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया ने कहा कि यह ऐतिहासिक है. बीजेपी डॉमिनेंट पार्टी बनी है जो वह बनना चाहती थी.. मराठा और गैर-मराठा वोट बीजेपी एक साथ लाई है. यह लगभग असंभव था. स्ट्राइक रेट 85-90 के पास होगा और वोट शेयर 50 पर्सेंट जाएगा. विकास और महिला वोट बैंक ने कमाल किया है. इतनी बड़ी विजय तो बीजेपी ने भी नहीं सोची थी. 

कौन मुख्यमंत्री बनेगा यह सवाल गठबंधन में असर नहीं डालेगा

इस चुनाव में बीजेपी इतनी सीटों पर जीत रही है कि उसे अपने दोनों साथियों में एक की ही जरूरत दिखती है. आगे क्या होगा. इस बारे में पुगलिया ने कहा कि बीजेपी लंबी दूरी की राजनीति करती है. दोनों दलों को मिलाकर चलेगी. अपने साथियों के साथ बीजेपी का अच्छा तालमेल होगा. सत्ता का संतुलन बना रहेगा. कौन मुख्यमंत्री बनेगा यह सवाल गठबंधन में असर नहीं डालेगा. बीजेपी की सबसे बड़ी जीत है.सबसे ज्यादा सीट हैं. तीसरी बार 100 का आंकड़ा पार किया है.  50  प्रतिशत के वोट शेयर में 30 प्रतिशत बीजेपी का है. इससे बीजेपी का सीएम पद पर हक बनता है. 

ये हार राहुल गांधी के लिए एक सबक

यह जीत क्या कहती है इस बारे में संजय पुगलिया ने एनडीटीवी पर कहा कि यह हार कांग्रेस पार्टी और खासतौर पर राहुल गांधी के लिए एक सबक है. पुगलिया ने कहा कि राहुल गांधी को यह समझना चाहिए कि पार्टी चुनाव कैसे हार गई. उन्होंने कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़ा चेहरा राहुल गांधी के चुनाव प्रचार के तरीके पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्होंने जनता से कौन सा वादा किया जिससे जनता उनसे जुड़े.

जमीन पर नहीं सोशल मीडिया पर एक्टिव रही कांग्रेस

उन्होंने कहा कि राहुल गांधी और कांग्रेस सोशल मीडिया में ज्यादा एक्टिव दिखी. जमीनी स्तर पर लोगों के बीच पार्टी कम दिखी. सोशल मीडिया में ट्रोल की भूमिका से ज्यादा कुछ भी पार्टी और राहुल गांधी ने नहीं किया. संजय पुगलिया ने कहा कि महाराष्ट्र के परिणामों ने कांग्रेस पार्टी को सबक सिखाया है. उन्होंने  कहा कि विदर्भ में कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन अब पार्टी वहां पर भी जनता से दूर हो गई है. 

झारखंड में भी कांग्रेस हारी

पुगलिया ने कहा  कि झारखंड में भले ही इंडिया गठबंधन जीता हो लेकिन यहां पर भी कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन कोई अच्छा नहीं रहा है. उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता वायनाड के उपचुनाव पर ज्यादा ध्यान दे रहे थे जबकि पार्टी वहां काफी मजबूत थी. उन्होंने मानना है कि इस बार का यह चुनाव परिणाम राहुल गांधी के नेतृत्व के बिखरने का सबूत है. पूरे चुनाव में राहुल गांधी ने केवल अदाणी-अंबानी किया. 

उद्धव ठाकरे भी पिछड़ गए

चुनाव परिणामों पर एनासिस करते हुए पुगलिया ने कहा कि शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बाला साहेब की लिगैसी को खराब कर दिया. अब उद्धव भी प्रांतवाद, एंटी डेवेलेपमेंट  स्टैंड पर राजनीति कर रहे हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि ऐसे में आगे की राजनीति कैसे करेंगे. इस चुनाव में शिवसेना यूबीटी को लोगों ने जमींदोज कर दिया है. 

विपक्ष की एंटी डेवलेपमेंट नीति की हार

चुनाव में एमवीए के पर्फॉरमेंस पर बात करते हुए संजय पुगलिया ने कहा कि ये चुनाव परिणाम राहुल गांधी की पर्सनल फेल्योर हैं. ये विपक्ष की एंटी डेवलेपमेंट नीति की हार के तौर पर देखा जा सकता है. पुगलिया का मानना है कि जब तक राहुल गांधी के हाथ में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व है तब तक पार्टी टूटती रहेगी. ऐसे हालातों में 2029 का चुनाव तो पार्टी को भूल ही जाना चाहिए. 

कांग्रेस पार्टी कॉर्पोरेट दुश्मन की तरह चुनाव लड़ी

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में विपक्ष की ओर लड़ाई में कोई दिखा तो वह शरद पवार की एनसीपी रही. उद्धव ठाकरे बिखर गए हैं. कांग्रेस पार्टी कॉर्पोरेट दुश्मन की तरह चुनाव लड़ रही थी. ऐसे में पार्टी लोगों की भावना से जैसे दूर ही दिखी. लोगों के मुद्दे पार्टी के पास दिखाई ही नहीं दिए. इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी तो एंटी डेवलेपमेंट का चेहरा ही बन गए.

पवार (शरद) के नेतृत्व वाली राजनीति का आखिरी अध्याय  

राज्य के चुनाव परिणाम और रुझान तो यह बता रहे हैं कि यह चुनाव पवार (शरद) के नेतृत्व वाली राजनीति का आखिरी अध्याय है. विपक्ष यह चुनाव कॉर्पोरेट दुश्मनी की वजह से हार रहा है. कांग्रेस का कैडर ढीला था. पिछले कई सालों से ऐसा लग रहा है  कि कांग्रेस पार्टी जमीन पर लोगों के बीच चुनाव कम लड़ रही है जबकि सोशल मीडिया पर ज्यादा चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस पार्टी के पास जनता का मूड सझने का कोई तरीका नहीं है. कांग्रेस पार्टी लोकसभा में बदले माहौल का फायदा नहीं उठा पाई. यही कारण था कि वे हरियाणा में हारे और महाराष्ट्र में इतनी बुरी स्थिति में पहुंच गए. 

कांग्रेस के स्थानीय नेता होंगे निशाने पर

पुगलिया का मानना है कि एक बार फिर कांग्रेस पार्टी में हार का ठीकरा स्थानीय नेताओं पर फोड़ दिया जाएगा. केंद्रीय नेतृत्व हार की जिम्मेदारी में पीछे रहेगा. 

चुनाव परिणाम से क्या मैनडेट मिला

इस चुनाव परिणाम से क्या मैनडेट मिलता है, सवाल के जवाब में संजय पुगलिया ने कहा कि लोकसभा चुनाव के नतीजों को विपक्ष भुना नहीं पाया. उनके पास मौका था और वे फेल हो गे. कुछ कुछ राज्य में काम कर पा रहे हैं जहां पर स्थानीय नेताओं को कुछ करने का मौका मिला है. यह कहा जा सकता है कि रीजनल पार्टियां अभी भी अपना काम कर रही हैं और लोगों के बीच मौजूद हैं. राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस नाकाम है. लोकतंत्र में विपक्ष को मजबूत होना चाहिए लेकिन राहुल गांधी फेल साबित हुए हैं. 

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