महाराष्ट्र-झारखंड चुनाव : सियासत के 17 सूत्रधारों ने क्या खोया क्या पाया?

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महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों और झारखंड की 81 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव के नतीजे सामने हैं. महाराष्ट्र में BJP की सुनामी के जरिए महायुति को प्रचंड बहुमत मिला है. जबकि झारखंड की जनता ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले INDIA गठबंधन को अपना आशीर्वाद दिया है. विधानसभा चुनाव 2024 में 17 ऐसे नेता भी रहे, जिनपर सबकी निगाह टिकी हुई थी. देखिए सियासत के 17 सूत्रधारों ने इस चुनाव में क्या पाया और क्या खोया:-

1. देवेंद्र फडणवीस
महाराष्ट्र विधानसभा में कहा था- “समंदर हूं लौटकर आऊंगा.” देवेंद्र फडणवीस लौटकर आए. समंदर ही नहीं, तूफान बनकर लौटे. सारे कयास धरे रह गए. कांटे की टक्कर वाले अनुमान फेल हो गए. महायुति वाले डबल सेंचुरी लगा गए. महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, उसमें फडणवीस सबसे बड़े हीरो बनकर उभरे. जीत के बाद उन्होंने ठीक ही कहा- “विरोधियों का चक्रव्यूह तोड़ा, आधुनिक युग का अभिमन्यु हूं.”

2. एकनाथ शिंदे
महाराष्ट्र के नतीजों से एकनाथ शिंदे खुश हो सकते हैं, क्योंकि जब महायुति को बंपर जीत मिली, तो सरकार की अगुवाई वे ही कर रहे थे. लेकिन अकेले दम पर बीजेपी की सेंचुरी पहले से ही डगमगाती उनकी कुर्सी को और झकझोर गई. बीजेपी के तूफान की आहट विरोधियों के साथ शिंदे ने भी सुनीं. जीत के बाद संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में देवेंद्र फडणवीस और शिंदे के चेहरे का अलग-अलग (विपरित !) भाव बदलते समीकरणों को बखूबी बयां भी कर रहे थे.

3.अजित पवार
महाराष्ट्र चुनाव के वक्त अगर किसी शख्स का सबसे अधिक दांव पर था, तो वे अजित पवार भी थे. कभी प्रखर हिंदुत्ववादी दोनों सहयोगियों के सामने मिसफिट लगे ‘बटेंगे तो कटेंगे' का प्रतिकार कर अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने की जद्दोजेहद में भी दिखे. फिर से सत्ता का हिस्सा हैं, लेकिन समस्या ये है कि अब अकेले बहुमत से चंद कदम दूर बीजेपी पहले की तरह न शिंदे की बाट जो रही है और न ही जूनियर पवार की.

4. उद्धव ठाकरे
पहले बालासाहेब के सिद्धांतों से ही समझौता. फिर सत्ता के लिए निहायत बेमेल गठबंधन. करीब ढाई साल ‘सत्ता शीर्ष' के मजे भी लिए. लेकिन जो कुछ किया उसका संपूर्ण प्रतिफल इस चुनाव में महाराष्ट्र की जनता ने सामने परोस कर रख दिया. अब न पुराने दरवाजे को उनकी वापसी की चाह बाकी रही, न ही पार्टी को बचाने की राह सूझ रही.

5. शरद पवार
सीनियर पवार यानी शरद पवार की राजनीतिक पारी बेमिसाल रही है. पिछले 5 वर्षों में उन्होंने अपने भतीजे अजित पवार के किस मूव को समर्थन दिया और किसे नहीं, ये शायद ही किसी को पता पड़ा. जिसके हाथों में कमान सौंपकर पार्टी को बचा सकते थे, वही उन्हें छोड़ गया. आखिर शरद पवार के फैसले में कहीं तो गलती रही होगी, क्योंकि गलती का नतीजा सामने है. या फिर कहें कि वो तो पवार हैं, पता नहीं जो हो रहा है उसमें उनका कितना हाथ है?

6. राहुल गांधी
झारखंड में हेमंत सोरेन की बांह पकड़कर भी कांग्रेस अपनी जमीन नहीं बढ़ा पाई. महाराष्ट्र के नतीजों से राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर एक बार फिर सवाल गहरे हो गए. बेशक वो वायानाड लोकसभा सीट में अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा की जीत का जश्न मना सकते हैं. लेकिन, पहले हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के नतीजों और अब महाराष्ट्र ने बता दिया कि खरगे जैसे संजीदा और अनुभवी राजनेता का साथ होते हुए भी राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस न अकेले चलना सीख पा रही और न साथियों को साथ लेकर.

7. हेमंत सोरेन
कांग्रेस-RJD जैसे कमजोर सहयोगियों का साथ. एंटी इनकंबेंसी का खतरा. जेल जाने की वजह से साख पर उठ रहे सवाल. हेमंत सोरेन ने इन तीनों ही चुनौतियों को मात देते हुए सबको चौंकाया. वह पहले से भी मजबूत बनकर उभरे. निश्चित ही हेमंत सोरेन झारखंड की राजनीतिक जमीन के अब सबसे बड़े और निर्विवाद नेता हैं.

8. कल्पना सोरेन
जेल जा रहे हेमंत सोरेन की कुर्सी पत्नी कल्पना सोरेन के पास जाने के पूरे आसार थे, लेकिन कहते हैं कि खुद कल्पना सोरेन ने इससे मना किया. परिवार ने सीनियर चंपाई सोरेन को सत्ता सौंपने का जोखिम उठाया. घर में भी बगावत हुई. सोरेन की भाभी सीता सोरेन भी बीजेपी में चली गईं. ऐन चुनाव से पहले चंपाई ने भी मुंह मोड़ लिया. इससे ऐसा लगा कि हवा का रुख उल्टी दिशा में है. मगर चुनाव के नतीजों ने हेमंत सोरेन के साथ पार्टी की रणनीतिकारों में शुमार कल्पना का कद भी बढ़ा दिया. जीत के बाद पहली प्रतिक्रिया में झलक रहा कल्पना सोरेन का आत्मविश्वास इसकी तस्दीक भी कर गया.

9. चंपाई सोरेन
जनाब सोच रहे होंगे कि किस घड़ी में पाला बदल किया. जेल जाने पर हेमंत सोरेन ने सीएम की कुर्सी दी. इज्जत बख्शी. हेमंत लौटे तो स्वाभाविक था, वो कुर्सी वापस लेंगे. अगर चंपाई सोरेन संजीदगी से साथ बने रहते, तो नई सरकार में नंबर-दो हो सकते थे. अब वापस विधायक तो बन गए, लेकिन इससे ज्यादा और कुछ हाथ नहीं लगेगा.

10. हिमंता बिस्वा सरमा
झारखंड के नतीजे बीजेपी के प्रदेश सह प्रभारी हिमंता को मंथन के लिए मजबूर करेंगे. घुसपैठियों का जो मुद्दा उन्होंने उठाया, उसे झारखंड के वोटरों ने नकार दिया. आने वाले समय में ऐसे ‘अति वाले नैरेटिव' पर जाने से पहले खुद हिमंता और बीजेपी को सोचना जरूर पड़ेगा.

11. मोहन यादव
मध्य प्रदेश के नतीजे फिफ्टी-फिफ्टी रहे. बुधनी में बीजेपी, विजयपुर में कांग्रेस जीती. लेकिन लोकसभा चुनाव में 29-0 के बाद सीएम मोहन यादव के लिए ये नतीजे निराश करने वाले रहे. विजयपुर में मंत्री की हार पर मोहन यादव यकीनन निजी तौर पर परेशान होंगे. बुधनी का कम मार्जिन भी उनके लिए चिंता का सबब जरूर होगा.

12. रामनिवास रावत
विजयपुर हार कर रावत मंत्री की कुर्सी से सीधे शून्य पर पहुंच गए. कांग्रेस छोड़कर विधायकी गंवाने के बाद अब रावत के लिए मंत्री पद पर रहना भी संभव नहीं रह गया. इस नतीजे का गंभीर असर संभवत: रामनिवास के पूरे राजनीतिक करियर पर पड़ने वाला है, लेकिन ये संदश तमाम दलबदलुओं के लिए भी है.

13. शिवराज सिंह चौहान
झारखंड में बतौर बीजेपी प्रभारी कामयाबी से बहुत दूर रह गए. चुनाव के बाद कॉन्फिडेंट थे, लेकिन नतीजों ने उनका भरोसा डिगा दिया. एमपी में भी अपनी बुधनी सीट पर पार्टी को बमुश्किल जीत दिला सके. ऐसे में ये नतीजे निजी तौर पर शिवराज सिंह जैसे कद्दावर नेता के लिए बिल्कुल भी अच्छे नहीं कहे जाएंगे.

14. रमाकांत भार्गव
कांटे के मुकाबले में बुधनी की सीट निकाल ले गए, लेकिन बुधनी के वोटर्स ने संदेश दे दिया कि उनके लिए शिवराज की जगह कोई नहीं ले सकता. ऐसे में भार्गव के मुकाबले भविष्य में जूनियर शिवराज यानी कार्तिकेय की मांग बुधनी में जोर पकड़ सकती है. भार्गव की इस सीट पर ये अंतिम पारी हो सकती है.

15. जीतू पटवारी
लोकसभा चुनाव में पार्टी की 29-0 से हार के बाद नेतृत्व क्षमता पर कई सवाल थे, लेकिन तब समर्थकों ने कम समय मिलने की बात कहकर पटवारी का बखूबी बचाव भी किया था. अब दो विधानसभा सीटों के नतीजे पटवारी का आत्मविश्वास जरूर बढ़ाएंगे. भोपाल में पार्टी दफ्तर पर मने जश्न में लहराते जीतू पटवारी के पोस्टर उन पर भरोसे की तस्दीक भी कर गए.

16. योगी आदित्यनाथ
यूपी में 7-2 का स्कोर योगी आदित्यनाथ के लिए बंपर चुनावी तोहफा है. घर और बाहर से विरोध के बावजूद ‘कटेंगे तो बंटेंगे' पर कायम योगी आदित्यनाथ ने दोनों मोर्चे पर विरोधियों को चित किया है. इन उपचुनावों ने तय कर दिया है कि आने वाले समय में यूपी में कम-से-कम घर के अंदर से तो उनके लिए कोई चुनौती नहीं है.

17. प्रियंका गांधी 
प्रियंका गांधी ने 4 लाख से अधिक वोटों से जीत के साथ शानदार चुनावी पारी की शुरुआत की. ऐसे वक्त में जब राहुल की लीडरशिप पर तमाम सवाल हैं, पार्टी में प्रियंका को आगे लाने की मांग तेज हो सकती है. इन सबके बीच अगर सत्ता के दो केंद्र बने तो कांग्रेस के अंदर जो कन्फ्यूजन दिखता है वह और गहरा हो सकता है.

(अश्विनी कुमार NDTV इंडिया में कार्यरत हैं.)

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