मार्गशीर्ष अमावस्या पर आएंगे पितर, इस विधि से करें तर्पण, होगी उन्नति

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मार्गशीर्ष अमावस्या को अहगन अमावस्या भी कहते हैं. मार्गशीर्ष अमावस्या 1 दिसंबर रविवार को है. इस दिन पितर धरती पर आते हैं और अपने वंश से उम्मीद करते हैं कि वे उनके लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध, दान आदि करेंगे, ताकि वे तृप्त हों और उनकी मुक्ति का मार्ग मिले. जो लोग अपने पितरों के लिए ये सभी कार्य करते हैं, उनके पितर खुश होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं. तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव के अनुसार, पितृ लोक पितरों को जल की कमी होती है, इसलिए अमावस्या को पितरों के लिए ​तर्पण करते हैं, ताकि वे जल से तृप्ति होकर प्रसन्न हों. आइए जानते हैं कि मार्गशीर्ष अमावस्या पर पितरों के लिए तर्पण करने की सही विधि और मंत्र क्या हैं?

मार्गशीर्ष अमावस्या मुहूर्त 2024
मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि का प्रारंभ: 30 नवंबर, शनिवार, सुबह 10 बजकर 29 मिनट से
मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि का समापन: 1 दिसंबर, रविवार, सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर
सुकर्मा योग: प्रात:काल से लेकर शाम 04:34 बजे तक
अनुराधा नक्षत्र: सुबह से लेकर दोपहर 02:24 बजे तक
ब्रह्म मुहूर्त: 05:08 ए एम से 06:02 ए एम तक
तपर्ण का समय: ब्रह्म मुहूर्त से 11:50 बजे तक.

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पितरों के लिए तर्पण की सामग्री
मार्गशीर्ष अमावस्या को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके साफ कपड़े पहन लें. उसके बाद तांबे, कांसा, सोना या चांदी का कोई एक बर्तन लें. मिट्टी या लोहे के बर्तन का उपयोग न करें. काला तिल, गंगाजल, अक्षत्, सफेद फूल, कुशा आदि की व्यवस्था कर लें.

पितरों के लिए तर्पण की विधि
1. कुशा के अग्र भाग से देवताओं का, मध्य भाग से मनुष्यों का और आगे या मूल भाग से पितरों का तर्पण करते हैं.

2. गायत्री मंत्र पढ़कर अपनी चोटी या शिखा बांध लें. फिर दाएं हाथ की अनामिका में दो कुशों की और बाएं ​हाथ की अनामिका में 3 कुशों की पवित्री पहन लें. उसके बाद हाथ में कुशा, जल, अक्षत् लेकर संकल्प करें. फिर तांबे के पात्र में जल, अक्षत् डालकर कुशा को आगे रखकर पात्र को दाएं हाथ में लेकर बाएं हाथ से ढंककर नीचे लिखे मंत्र को पढ़ें और आपने पितरों का आह्वान करें.

ओम आगच्छन्तु मे पितर इमं गृह्णन्तु जलां​जलिम्।

3. अब आप पितरों के लिए तर्पण देने के लिए दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं. फिर जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाएं. गमच्छे को दाएं कंधे पर रखें.

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4. बाएं घुटने को जमीन पर लगाकर बैठ जाएं. अर्घ्य देने वाले पात्र में काला तिल छोड़ दें. उसके बाद कुशा को बीच से मोड़कर उसकी जड़ और आगे के हिस्से को दाएं हाथ में तर्जनी और अंगूठे के बीच में रखें.

5. आपके हाथ में अंगूठे और तर्जनी के बीच वाले हिस्से में पितृ तीर्थ होता है. उस जगह से जल अर्पित करें. आपको 3-3 अंजलि जल अर्पित करना है.

तर्पण का महत्व
तर्पण में अपने प्रत्येक पितर को 3-3 अंजलियों से जल अर्पित करने से जन्म से लेकर तर्पण के दिन तक के किए गए पाप उसी क्षण मिट जाते हैं. जो लोग तर्पण नहीं करते हैं, ब्रह्मादिदेव और पितृगण उनके शरीर के रक्तपान करते हैं. कहने का अर्थ है कि व्यक्ति के शरीर से खून शोषित होता है. गृहस्थ जीवन में रहने वाले व्यक्ति को ​तर्पण जरूर करना चाहिए.

Tags: Dharma Aastha, Religion

FIRST PUBLISHED :

November 30, 2024, 08:56 IST

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