ऐसे वक्त में जब भारत में चुनावी राजनीति में कटेंगे, तो बटेंगे और एक रहेंगे, तो नेक रहेंगे, सेफ रहेंगे जैसे नारों की गूंज और प्रतिगूंज जारी है, बांग्लादेश में संविधान से धर्मनिरपेक्षता, बंगाली राष्ट्रवाद और समाजवाद शब्द हटाने की कोशिश शुरू हो गई है. शेख मुजीबुर्रहमान के नाम से राष्ट्रपिता हटाने का प्रस्ताव भी दिया गया है. यह पेशकश किसी और ने नहीं, बल्कि बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने की है.
उनकी दलील है कि चूंकि साल 2022 में हुई जनगणना के हिसाब से बांग्लादेश में मुसलमानों की आबादी 90 फीसदी से ज्यादा है, इसलिए उसे गैर-सेक्युलर और गैर-समाजवादी चोले से मुक्त देश घोषित किया जाना चाहिए. इसका एक सबसे स्पष्ट निहितार्थ तो यही है कि मुस्लिम बहुल समाज में पंथनिरपेक्षता और समाजवाद की अवधारणाओं का कोई अर्थ नहीं होता है और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में आखिरकार उनका कोई भरोसा नहीं होता.
भारत की संविधान सभा ने इस आधार पर प्रस्तावना में सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्द डालने की कोई जरूरत महसूस नहीं की गई. इसका आधार यह था कि बाबा साहेब आंबेडकर समेत सभी संविधान निर्माताओं का मानना था कि भारत की लोकतांत्रिक संरचना के मूल में पंथनिरपेक्षता और समाजवाद का भाव पानी में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की तरह घुला-मिला है, अंतर्निहित है. इसलिए इन अवधारणाओं का उल्लेख अलग से करने की जरूरत नहीं है. हालांकि आजादी के 28-29 साल बाद ही मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्द जुड़वा दिए. लेकिन इन दोनों शब्दों की कोई व्याख्या नहीं की गई.
बहरहाल, बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल ने तो खुलेआम यह पेशकश की है, लेकिन भारत में मुस्लिम हितों के लिए काम करने का दावा करने वाले कथित एनजीओ और रेडिकल उलेमा दबे पांव मुसलमान वोटों के ध्रुवीकरण की साजिश में जुटे हैं. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए वोट 20 नवंबर को डाले जाएंगे और नतीजे 23 नवंबर को सामने आ जाएंगे. इस बार का विधानसभा चुनाव लीक से हटकर राजनैतिक परिदृश्य और समीकरणों की जमीन पर लड़ा जा रहा है. दो फाड़ शिवसेना और एनसीपी आमने-सामने हैं.
सत्तारूढ़ महायुति में शामिल पार्टियों ने चुनाव में पूरी ताकत झौंक रखी है, तो विपक्षी महाविकास अघाड़ी यानी एमवीए भी सभी तरह के राजनैतिक हथकंडे अपना रही है. इस बार जो बात सबसे ज्यादा ध्यान खींच रही है, वह है मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश. लेकिन राजनैतिक पंडितों को इसमें कोई शक नहीं है कि अगर हिंदू वोटों का जवाबी ध्रुवीकरण हो गया, तो महायुति महाराष्ट्र में बहुत धूमधाम से फिर से सत्तारूढ़ होगी.
बीजेपी नेता किरीट सोमैया ने चुनाव आयोग को शिकायत भेज कर आरोप लगाया है कि पूरे महाराष्ट्र में 400 से ज्यादा स्वयंसेवी संगठन यानी एनजीओ महायुति को हराने के लिए मुस्लिम समुदाय के वोटरों को लामबंद करने में लगे हैं. सिर्फ मुंबई में ही 180 से ज्यादा एनसीओ और दूसरे गैर-सरकारी संगठन विशुद्ध धर्म के आधार पर महायुति को सत्ता से बाहर करने की साजिश में लगे हैं. ये सारे के सारे संगठन भ्रामक प्रचार कर मुस्लिम वोटरों के ध्रुवीकरण की कोशिशों में जुटे हुए हैं. ये संगठन राज्य के मुस्लिम बहुल इलाकों और धार्मिक स्थलों में वोटरों को एकजुट करने के लिए अभी तक हजारों कार्यक्रम आयोजित कर चुके हैं और इनकी गतिविधियां लगातार जारी हैं.
मजहबी उलेमा के साथ मिलकर कथित एनजीओ ने लोकसभा चुनाव के दौरान भी इसी तरह की गतिविधियां चला कर मुस्लिम वोटरों को लामबंद किया था. इनकी साजिशों का ही नतीजा था कि महाराष्ट्र में मुस्लिम बहुल इलाकों में मतदान का प्रतिशत पहले के मुकाबले बढ़ा था और इसका फायदा महाविकास अघाड़ी को हुआ था. इसके उलट हिंदू मतदाता एकजुट नहीं हो पाए थे. लेकिन राजनीति के जानकारों का मानना है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में ऐसा नहीं होगा. मुस्लिम वोटरों के ध्रुवीकरण के जवाब में हिंदू वोट भी एकजुट होंगे और इसका सीधा फायदा महायुति को होगा. नतीजतन एमवीए को एकतरफा बंपर जीत हासिल हो सकती है.
असल में मुस्लिम समुदाय के ध्रुवीकरण की साजिश का पता मराठी मुस्लिम सेवा संघ नाम के संगठन के पत्रक से चलती है. यह भी हम देख चुके हैं कि मुस्लिम समुदाय के ज्यादातर वोटर विकास के मुद्दों पर वोट नहीं डालते, बल्कि उनका इकलौता एजेंडा बीजेपी को हराना ही होता है.
यानी एनडीए की केंद्र और राज्य सरकारें भले ही बिना भेदभाव के मुस्लिमों का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए कितने भी विकास के काम करें, लेकिन उनके वोट बीजेपी समेत एनडीए की पार्टियों को नहीं मिलते. लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद अब राजनैतिक गलियारों की हलचलों की जानकारी रखने वाले कह रहे हैं कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी हिंदू वोट एकतरफा महायुति के पाले में ही जाएगा. हिंदुओं का वोट प्रतिशत भी इस बार बढ़ेगा.
जानकारी के मुताबिक मराठी मुस्लिम सेवा संघ के पैंफलेट में मुस्लिम वोटरों से पूछा जा रहा है कि क्या वे सैकड़ों बेगुनाह मुसलमानों की लिंचिंग करवाने वालों को वोट करेंगे? क्या वे मुसलमानों से अलीगढ़ छीनने वालों को वोट करेंगे? क्या वे मुसलमानों पर समान नागरिक संहिता थोपने वालों को वोट करेंगे? क्या वे मदरसों को खत्म करने का इरादा रखने वालों को वोट करेंगे? क्या वे वक्फ के खिलाफ वालों को वोट करेंगे? क्या वे सीएए, एनआरसी थोपने वालों को वोट करेंगे? क्या वे मुस्लिम बेटियों के सिरों से हिजाब खींचने वालों को वोट करेंगे? क्या वे मस्जिद में घुस कर मारने वालों के साथ खड़े होने वाली पार्टियों को वोट करेंगे? क्या वे बुलडोजर से मुसलमानों की बस्तियां उजाड़ने वालों को वोट करेंगे?
पत्रक में महाविकास अघाड़ी को वोट देकर कामयाब बनाने की अपील की गई है. जाहिर है कि संगठन के पत्रक में जो सवाल उठाए गए हैं, हकीकत में वे सच्चाई से कोसों दूर हैं.
साथ ही महाराष्ट्र डेमोक्रेटिक फोरम नाम की संस्था भी इस काम में लगी है. फोरम के को-ऑर्डिनेटर शाकिर शेख का दावा था कि सिर्फ मुंबई में ही करीब नौ लाख नए वोटर रजिस्टर्ड हुए थे. नतीजतन लोकसभा चुनावों में मुंबई के शिवाजी नगर, मुंबादेवी, बायकुला और मालेगांव सेंट्रल जैसे इलाकों में 60 प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग हुई. जाहिर है कि लोकतंत्र और संविधान को बचाने का थोथा प्रचार कर रहा इंडी ब्लॉक और उसके स्टार प्रचारक इस तरह की कोशिशों को हवा दे कर लोकतंत्र और संविधान की खिल्ली ही उड़ा रहे हैं. सांप्रदायिक आधार पर वोटरों को लामबंद करना भारतीय लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है.
मुंबई के मशहूर संस्थान टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) में हाल ही में किए गए सर्वे के मुताबिक महाराष्ट्र में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों का असर लगातार बढ़ रहा है. इन अवैध घुसपैठियों ने राज्य के सामाजिक-आर्थिक ढांचे पर दबाव तो डाला ही है, साथ ही राजनैतिक परिदृश्य भी बदला है. रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि कुछ राजनैतिक पार्टियां और संगठन वोट के लिए अवैध घुसपैठियों का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसी पार्टियां और संगठन उनके फर्जी वोटर आईडी और दूसरे पहचान पत्र बनवाने में मदद कर रहे हैं.
वैसे हिंदू वोटरों में ध्रुवीकरण की नींव इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार ने इमरजेंसी के दौरान 1976 में डाल दी थी. मुस्लिम तुष्टीकरण की धुन में विपक्ष की लगभग गैर-मौजूदगी में इंदिरा सरकार ने 42वां संविधान संशोधन पास कर जब संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्द जोड़े थे, तभी यह साफ हो गया था कि प्रतिक्रिया स्वरूप किसी न किसी दिन हिंदू वोट भी ध्रुवीकृत होगा और अब लगता है कि वह दौर स्वत:स्फूर्त ही आ गया है.
महाराष्ट्र में एक ओर मुस्लिम वोटरों के ध्रुवीकरण की कोशिशें महाविकास अघाड़ी के पक्ष में की जा रही हैं, तो दूसरी ओर मुस्लिम हितों की राजनीति करने वाली एआईएमआईएम ने भी चुनावी मैदान में ताल ठोक रखी है. चुनावी पंडित मानते हैं कि एमवीए की कोशिशों पर प्रतिक्रिया सौ फीसदी होगी. साथ ही असदुद्दीन ओवैसी भी एमवीए का ही खेल बिगाड़ेंगे. लिहाजा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे भारतीय राजनीति में ताजा हवा की नई खिड़कियां खोलने वाले साबित हो सकते हैं.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
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FIRST PUBLISHED :
November 17, 2024, 17:22 IST