गांव में चौपाल लगाकर लोगों को समझाते हुए किशन सिंह भाटी
कुलदीप छंगाणी/ जैसलमेर: जैसलमेर में आज भी कई गांवों में मृत्यु भोज और “रेवान प्रथा” जैसी कुप्रथाएं प्रचलित हैं, जिनके सामाजिक और आर्थिक दुष्परिणाम अक्सर देखने को मिलते हैं. इन प्रथाओं को खत्म करने के लिए जैसलमेर के सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक किशन सिंह भाटी ने एक विशेष मुहिम शुरू की है.
सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर प्रभाव
मृत्यु भोज के दौरान बड़ी मात्रा में भोजन का आयोजन और “रेवान प्रथा” के अंतर्गत शोक के समय नशे की वस्तुओं का आदान-प्रदान गांव के लोगों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है. किशन सिंह भाटी ने देखा कि ये परंपराएं न केवल समाज को आर्थिक रूप से कमजोर कर रही हैं, बल्कि नशे की लत और व्यर्थ के खर्चों के कारण परिवारों पर अनावश्यक बोझ भी डाल रही हैं.
जागरूकता अभियान की शुरुआत
भाटी ने अपने राजकीय कार्यकाल के दौरान इन कुप्रथाओं के दुष्परिणामों को गहराई से अनुभव किया. विशेष रूप से जैसलमेर के गांवों में, जहां मृत्यु भोज और “रेवान प्रथा” में अफीम और अन्य नशीले पदार्थों का प्रयोग किया जाता था, जिसने उन्हें झकझोर दिया. राजकीय सेवा से निवृत्त होने के बाद, उन्होंने अपने गांव और आसपास के इलाकों में जागरूकता अभियान चलाने का निश्चय किया.
उन्होंने गांव-गांव जाकर बुजुर्गों और ग्रामीणों के साथ बैठकें कीं, और उन्हें इन कुप्रथाओं के दुष्परिणामों के बारे में बताया. इसके साथ ही, उन्होंने ग्रामीणों से समर्थन प्राप्त करने के लिए हस्ताक्षर अभियान भी चलाया.
सकारात्मक बदलाव की शुरुआत
किशन सिंह भाटी का यह प्रयास रंग लाने लगा, और धीरे-धीरे लोग उनके अभियान से जुड़ने लगे. समाज में एक सकारात्मक बदलाव आया, और आज जैसलमेर के कई गांवों में इन प्रथाओं को त्यागने के लिए लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं.
भाटी की यह पहल न केवल समाज सुधार का प्रतीक बनी, बल्कि ग्रामीणों के जीवन में वास्तविक परिवर्तन लाने का उत्कृष्ट उदाहरण भी साबित हो रही है. उनका साहसिक कदम यह दर्शाता है कि सही मार्गदर्शन और दृढ़ निश्चय से सामाजिक कुप्रथाओं को समाप्त किया जा सकता है. किशन सिंह भाटी का योगदान समाज के लिए एक प्रेरणादायक मिसाल है, जिसने ग्रामीण समुदायों में चेतना का संचार किया है.
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FIRST PUBLISHED :
September 29, 2024, 18:39 IST