अपनी दो भक्तों के साथ बलात्कार और एक पत्रकार की हत्या के जुर्म में 20 साल की सजा काट रहे गुरमीत राम रहीम सिंह एक बार फिर चर्चा में हैं. वजह वही पुरानी. पैरोल. रहीम ने फिर 20 दिन की पैरोल मांगी है. 2 सितंबर को 21 दिन की रिहाई काट कर वह वापस जेल गया ही है कि फिर से रिहाई की अर्जी लगा दी है.
यह अनुरोध ऐसे समय आया है जब हरियाणा में विधानसभा चुनाव के लिए पांच अक्तूबर को मतदान होना है. चुनाव आयोग ने राज्य सरकार से पूछा है कि ऐसी कौन सी इमरजेंसी आ गई कि रहीम को अभी पैरोल देना जरूरी है. रहीम के प्रवक्ता का कहना है कि साल खत्म होने को है, अगर पैरोल नहीं ली तो 21 दिन ‘लैप्स’ हो जाएंगे.
नियम के खिलाफ नहीं, पर दुरुपयोग तो नहीं?
रहीम का बार-बार बाहर आकर, इस तरह से ‘सजा काटना’ नियमों के एकदम खिलाफ नहीं है, फिर भी कई सवाल जरूर खड़े करता है. सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या यह नियमों का दुरुपयोग नहीं है? अगर है तो क्या यह सरकार और न्यायपालिका में लोगों का विश्वास बने रहने देगा?
पैरोल या फर्लो की व्यवस्था इसलिए की गई है, ताकि समाज के सामने जेल सिस्टम का एक मानवीय चेहरा पेश किया जा सके. लेकिन, जब इस व्यवस्था का इस रूप में उपयोग या कहें दुरुपयोग सामने आने लगा है तो इस पर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं. शायद यही कारण रहा कि 2020 में केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को इसके उपयोग को लेकर एक एडवाइजरी जारी की गई थी.
केंद्र की एडवाइजरी- पैरोल हक नहीं, रियायत
2020 में केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से राज्यों को जारी की गई एडवाइजरी में कहा गया था कि ‘पैरोल पर रिहाई किसी कैदी के असीमित अधिकारों में नहीं आता. यह एक रियायत है.‘ गृह मंत्रालय ने यह भी कहा था कि गंभीर अपराधों के लिए सजा काट रहे कैदियों को बिना ठोस वजह के यह रियायत बार-बार नहीं मिलनी चाहिए. राज्यों से पैरोल देने की प्रक्रिया की समीक्षा करने के लिए भी कहा गया था. केंद्र की इस एडवाइजरी के बाद भी राम रहीम को लगातार पैरोल और फर्लो मिलती रही है. 2022 और 2023 में तीन-तीन बार में राम रहीम ने पूरे 91 दिनों की रिहाई काटी और 2024 में भी 71 दिन जेल के बाहर रहने के बाद बाकी बचे 20 दिन के लिए अर्जी लगा दी है.
चार साल में 255 दिन जेल से बाहर
रहीम बीते चार साल में आठ महीने से भी ज्यादा (255 दिन) बाहर ही रहा है. हरियाणा में अक्सर हर चुनाव के वक्त वह पैरोल या फर्लो लेकर बाहर आ ही जाता है. इस बार तो एक महीने के भीतर ही वह दूसरी बार बाहर आना चाह रहा है.
राम रहीम पैरोल या फर्लो लेकर कब-कब और कितने समय के लिए जेल से बाहर रहा, उसका ब्योरा ये है:
24 अक्तूबर, 2020: एक दिन की इमरजेंसी पैरोल
21 मई, 2021: एक दिन की इमरजेंसी पैरोल
7-28 फरवरी, 2022: 21 दिन की फर्लो
17 जून-18 अगस्त, 2022: 30 दिन की पैरोल
15 अक्तूबर-25 नवंबर, 2022: 40 दिन की पैरोल
21 जनवरी-3 मार्च, 2023: 40 दिन की पैरोल
20 जुलाई-20 अगस्त, 2023: 30 दिन की पैरोल
21 नवंबर-13 दिसंबर, 2023: 21 दिन की फर्लो
19 जनवरी-10 मार्च, 2024: 50 दिन की पैरोल
13 अगस्त- 2 सितंबर, 2024: 21 दिन की फर्लो
राम रहीम के प्रवक्ता का कहना है कि नियम के मुताबिक एक साल में 91 दिन की पैरोल/फर्लो ली जा सकती है. चूंकि साल खत्म होने को है, इसलिए बचे हुए 21 दिन की पैरोल नहीं ली तो ‘लैप्स’ हो जाएगा.
दो मर्डर और बलात्कार का दोषी है राम रहीम
राम रहीम पर दो महिलाओं के साथ बलात्कार और दो लोगों की हत्या का जुर्म साबित हुआ है. उसे 2017 में अपने आश्रम की दो साध्वियों के साथ बलात्कार के जुर्म में 20 साल की सजा सुनाई गई थी. 2019 में उसे इस रेप का खुलासा करने वाले पत्रकार की हत्या के आरोप में उम्र कैद सुनाई गई. 2021 में डेरा के पूर्व मैनेजर रंजीत सिंह की हत्या के जुर्म में राम रहीम को फिर से उम्रकैद की सजा सुनाई गई. रंजीत सिंह उन दो में से एक साध्वी के भाई थे, जिनके साथ राम रहीम ने बलात्कार किया था.
ये है हरियाणा का कानून
हरियाणा में अच्छे आचरण के आधार पर कैदियों को अस्थायी तौर पर रिहाई देने से जुड़ा जो कानून है, उसके मुताबिक किसी सजायाफ्ता कैदी को साल में 91 दिन की रिहाई मिल सकती है. 70 दिन पैरोल पर और 21 दिन फर्लो पर मुजरिम को जेल से बाहर जाने की छूट है.
पैरोल और फर्लो में अंतर
पैरोल और फर्लो में अंतर समझ लीजिए. फर्लो सजायाफ्ता कैदी के जेल में अच्छे आचार-व्यवहार के आधार पर दी जाने वाली अस्थायी रिहाई है. इसकी सीमा साल में 21 दिन की है। फर्लो पर कैदी जितने दिन बाहर रहेगा, वह उसकी सजा में गिना जाएगा.
पैरोल पर बाहर रहने की अवधि एक साल में अधिकतम 70 दिन है और यह सजा की मियाद में घटाई नहीं जाती. पैरोल सजा शुरू होने के एक साल बाद ही ली जा सकती है. अगर कैदी की उम्र 65 साल (महिला) या 70 साल (पुरुष) से ज्यादा है तो एक साल के भीतर भी विचार किया जा सकता है.
नियमों के मुताबिक इमरजेंसी पैरोल की भी व्यवस्था है. यह किसी नजदीकी संबंधी की मृत्यु पर या कैदी या उसका कोई करीबी रिश्तेदार बहुत गंभीर रूप से बीमार हो, तब दी जाती है. सजायाफ्ता कैदी को किसी खास कारण से पुलिस कस्टडी में जेल से बाहर ले जाया जाता है, तब भी इमरजेंसी पैरोल दी जा सकती है.
वैसे, 2023 में हरियाणा में सौ में से 48 कैदियों ने पैरोल या फर्लो के नाम पर मिलने वाली ‘रियायत’ का फायदा उठाया. जो 52 प्रतिशत सजायाफ्ता कैदी बाहर नहीं गए, वे पैरोल या फर्लो पाने के दायरे में नहीं आते थे या फिर बाहर जाना ही नहीं चाहते थे. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक 2022 में देश की जेलों में कुल 5,73,220 कैदी थे। इनमें से 4,34,302 ऐसे थे, जिनके केस का फैसला ही नहीं हुआ था. मतलब करीब 24 फीसदी कैदी ही सजायाफ्ता थे. बाकी विचाराधीन कैदी थे. इनमें से हजारों पांच साल से भी ज्यादा समय से जेल में थे. इन्हें राम रहीम की तरह बार-बार बाहर आने का मौका नहीं मिलता है.
राम रहीम के पैरोल पर विवाद क्यों
राम रहीम का बार-बार जेल से बाहर आना और चुनाव के माहौल में आना लगातार विवाद का विषय रहा है. मुजरिम बन जाने के बाद भी रहीम के अनुयायियों की संख्या काफी है. खास कर हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्सों में. यही कारण है कि राजनीतिक दलों और नेताओं को आज भी रहीम से काफी उम्मीदें रहती हैं.
राम रहीम ने 2014 के विधानसभा चुनाव में एक तरह से खुल कर भाजपा का समर्थन किया था. उसी चुनाव के बाद पहली बार हरियाणा में भाजपा की अपनी सरकार बनी थी. राम रहीम को बार-बार रिहाई भी भाजपा सरकार में ही मिलती रही है. ऐसे में आरोप लगता है कि राम रहीम को बार-बार और खास कर चुनाव के वक्त जेल से बाहर आने के मौके देकर हरियाणा की सरकार अपनी पार्टी को फायदा पहुंचाती रही है.
वैसे, राम रहीम के संपर्क में भाजपा के अलावा अन्य पार्टियों के नेता भी देखे गए हैं.
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FIRST PUBLISHED :
September 29, 2024, 21:03 IST