पक्काकोट.
सनन्दन उपाध्याय/बलिया: बलिया जिले में एक ऐसी धरोहर है, जिसका न केवल इतिहास रोचक है बल्कि यह देश की एक महत्वपूर्ण पहचान है. यह वही पुरातात्विक प्राचीन विरासत है, जहां से भारत के तीसरे बंदरगाह की जानकारी मिली थी. इसे पक्काकोट के नाम से जानते हैं. कभी इसी रास्ते महात्मा बुद्ध उरुवेला-बोधगया से सारनाथ-मृगदाव गए. पुरातत्वविद् इतिहासकार डाॅ.शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं कि बलिया विरासत में दर्ज इतिहास के अनुसार पक्काकोट 2500 साल पहले बिजनेस का बड़ा केंद्र हुआ करता था. बरसात में पहले लोग इधर सिक्के चुनने आते थे. उन्होंने बताया कि बलिया जिले की इस पुरातात्विक विरासत का काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय संस्कृति व पुरातत्व विभाग की टीम प्रो.सीताराम दुबे के निर्देशन में अनुज भारद्वाज, सुशील कुमार राय, डाॅ.संतोष कुमार सिंह, रामबदन, शिवकुमार प्रजापति इत्यादि ने 2010- 2015 में सर्वेक्षण और आंशिक उत्खनन किया था.
यहीं से मिली थी भारत के तीसरे बंदरगाह की जानकारी
इस दौरान इस पक्ककोट से अनेक प्राचीन वस्तुओं के साथ कई ऐसी दुर्लभ वस्तुएं भी मिली, जो प्राचीन जीवनशैली व सभ्यता आदि का प्रमाण थी. बताया कि इस दौरान मध्य गंगा घाटी में नावपत्तन के भी कई सबूत मिले, जो अपने आप में काफी महत्वपूर्ण हैं. यहीं से सम्पूर्ण भारत के तीसरे नौकाघाट की जानकारी मिली थी. जो पक्काकोट की संपन्नता और समृद्धि को भी दर्शाती है.
5 हजार साल पहले के मिलते हैं पुख्ता सबूत
उस समय पानी के रास्ते ही दूर के देशों में व्यापार करने की भी अच्छी व्यवस्था बनाई गई थी. जलमार्ग के रास्ते ही हर सामान का अधिक मात्रा में आवागमन होता था. 5,000 साल पहले भी यहां के लोग खेती व पशु पालन करने की जानकारी पा लिए थे. क्योंकि, खुदाई में मिले साक्ष्य के मुताबित पशुपालन आदि के पुख्ता प्रमाण मिलते हैं.
इस विरासत पर शासन प्रशासन की नजरें हो इनायत
वर्तमान सरकार विरासत से विकास का अभियान चला रही है, लेकिन बलिया की इस प्राचीन विरासत पर बहुत तेज गति से अवैध अतिक्रमण हो रहा है, लोग पुरातात्विक महत्व के टीले से कीमती पुरावशेषों के साथ-साथ इसके अवशेष ईंट निकालकर इस टीले पर मकान बनाकर रह रहे हैं. जिससे यह पुरातात्विक स्थल विलुप्त होने की स्थिति मे आ रहा है. इस पर अब सरकार को ध्यान देने जरूरत पड़ी है.
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FIRST PUBLISHED :
November 29, 2024, 15:07 IST