डोदरा: “अगर किसी का इरादा पक्का हो तो वह हर मुश्किल का सामना कर अपना लक्ष्य हासिल कर सकता है.” इसी सोच को साकार करते हुए वडोदरा के सनफारमा इलाके की रहने वाली गरिमा व्यास ने हाल ही में एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया है. उन्होंने साबित कर दिया कि कठिनाई चाहे जैसी हो, अगर ठान लिया जाए, तो कोई भी लक्ष्य दूर नहीं रहता.
गोवा में रिकॉर्ड-breaking प्रदर्शन
गोवा के पणजी में भारतीय पैरालंपिक समिति द्वारा आयोजित 24वीं राष्ट्रीय पैरा तैराकी चैम्पियनशिप में गरिमा व्यास ने शानदार प्रदर्शन किया. उन्होंने 100 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक व्यक्तिगत स्पर्धा में 3.26 मिनट का समय निकाला और राष्ट्रीय रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीता. इसके अलावा, उन्होंने 50 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक में रजत पदक और 4×100 फ्रीस्टाइल रिले और 4×100 मेडल रिले टीम स्पर्धाओं में दो कांस्य पदक भी जीते.
गरिमा की सफलता की यात्रा
यह चौथी राष्ट्रीय चैंपियनशिप थी, जिसमें गरिमा ने कुल सात स्वर्ण, दो रजत और दो कांस्य पदक अपने नाम किए हैं. इसके अलावा, राज्य स्तर पर भी उन्होंने छह स्वर्ण पदक जीते हैं. गरिमा वडोदरा स्थित सामा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में गुजरात खेल प्राधिकरण के मुख्य कोच विवेक सिंह बोरलिया से प्रशिक्षण प्राप्त करती हैं.
दुर्घटना के बाद की नई शुरुआत
गरिमा की सफलता की कहानी और भी प्रेरणादायक है. 2016 में एक दुर्घटना में रीढ़ की हड्डी की चोट के कारण उन्हें कमर के नीचे संवेदना खोनी पड़ी थी. इससे पहले, वह एक राज्य स्तरीय बास्केटबॉल खिलाड़ी थीं. हालांकि, इस दुर्घटना के बाद उन्होंने तैराकी में अपनी नई यात्रा की शुरुआत की और कम समय में ही कई उपलब्धियां हासिल की. गरिमा गुजरात की एकमात्र तैराक हैं जिनके पास रीढ़ की हड्डी में चोट के बावजूद पैरा स्विमिंग में अंतरराष्ट्रीय लाइसेंस है, और उन्हें विश्व और एशिया रैंकिंग में भी स्थान प्राप्त है.
कड़ी मेहनत और भविष्य के लक्ष्य
गरिमा ने अपनी सफलता के पीछे की कहानी को साझा करते हुए कहा, “मैं अपनी शारीरिक शक्ति का उपयोग करके देश के लिए अपने सपनों को साकार करना चाहती हूं.” वह प्रतिदिन 6 से 8 घंटे तैराकी प्रशिक्षण और फिजियोथेरेपी के लिए समर्पित रहती हैं. उनका अगला लक्ष्य 2026 एशियाई पैरा खेलों के लिए क्वालीफाई करना और वहां एक पदक जीतना है.
परिवार का समर्थन और गर्व
गरिमा की मां, केजल पंड्या ने कहा, “पैराप्लेजिक होने के बावजूद गरिमा अब ज्यादातर काम खुद ही करती है. हमें गर्व है कि हमारी बेटी अपने सपनों को पूरा कर रही है और भविष्य में भारत का नाम रोशन करेगी.” गरिमा की सफलता यह साबित करती है कि दृढ़ संकल्प, समर्पण और सही सपोर्ट सिस्टम से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है. उनकी यह यात्रा दिव्यांग एथलीटों के लिए एक प्रेरणा बन गई है.
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FIRST PUBLISHED :
November 18, 2024, 13:46 IST