'शिव-विश्व' की जोड़ी भी झारखंड में बदल नहीं पाई भाजपा की तस्वीर!

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झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले नहीं हैं. मेहनत का फल मीठा होता ही हैझारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले नहीं हैं. मेहनत का फल मीठा होता ही है

झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में इंडिया ब्लाक और महायुति (एनडीए) की जीत में सबसे बड़ी भूमिका महिलाओं ने निभाई है. दोनों राज्यों की सरकारों ने महिलाओं के लिए समय रहते जो योजनाएं शुरू कीं, उसी का सुफल उन्हें मिला है. महाराष्ट्र में ‘लाडकी बहना योजना’ और झारखंड में ‘मईयां सम्मान योजना’ की लाभुक बन चुकी महिलाओं ने अपनी-अपनी सरकारों के पक्ष में वोटिंग की. जिन सीटों पर महिलाओं ने ज्यादा वोट डाले, वहां सत्ताधारी गठबंधनों ने अपने-अपने राज्यों में जीत दर्ज की है. मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने सबसे पहले महिलाओं को केंद्रित कर लाडली बहना योजना शुरू की थी. विधानसभा चुनाव में उनकी इस योजना ने बाजी पलट दी थी. उसके बाद महाराष्ट्र और झारखंड ने महिलाओं को ध्यान में रख कर योजनाएं लागू कीं. दोनों का असर विधानसभा चुनाव के नतीजों पर साफ दिख रहा है.

झारखंड में हेमंत-कल्पना ने किया कमाल
झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election 2024) के नतीजे चौंकाने वाले नहीं हैं. मेहनत का फल मीठा होता ही है. हेमंत सोरेन की रणनीति और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की मेहनत का नतीजा है कि झारखंड की सत्ता में इंडिया ब्लाक ने वापसी कर ली है. लोकसभा चुनाव के काफी पहले से ही हेमंत सोरेन ने भाजपा को रोकने के लिए हर संभव कोशिश शुरू कर दी थी. हेमंत ने राज्य का दौरा किया. उन्होंने खतियानी जोहार यात्रा निकाली. हेमंत सरकार की महिलाओं के लिए शुरू की गई महत्वाकांक्षी मईयां सम्मान योजना के प्रचार-प्रसार के लिए मंत्री बेबी देवी और हेमंत की विधायक पत्नी कल्पना सोरेन ने मईयां सम्मान यात्रा निकाली. विधानसभा चुनाव के लिए कल्पना सोरेन और हेमंत ने धुंआधार चुनावी सभाएं कीं. सौ से अधिक सभाएं तो अकेले कल्पना सोरेन ने कीं. हेमंत भी इसी के आसपास रहे.

मईयां योजना हेमंत के लिए विनिंग फैक्टर
हेमंत ने जेल से आने के बाद जन कल्याण की कई योजनाएं शुरू कीं. वे चुनाव के दौरान बताते भी रहे कि झारखंड का शायद ही कोई परिवार ऐसा होगा, जो सरकार की किसी न किसी योजना का लाभुक न हो. मईयां सम्मान योजना के तहत तकरीबन 60 लाख महिलाओं को सरकार ने लाभुक बनाया. स्वास्थ्य और आवास योजनाएं हेमंत सरकार ने लागू कीं. सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन, शिक्षकों और पुलिसकर्मियों के वेतन-भत्ते और सुख-सुविधाओं में बढ़ोतरी की योजनाएं सरकार ने लागू कीं तो कल्पना सोरेन इन योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने की वाहक बनीं. जहां तक चुनाव प्रचार की बात है तो कल्पना सोरेन अपने पति हेमंत सोरेन पर भी भारी पड़ गईं. उन्होंने सौ से अधिक चुनावी सभाओं का रिकार्ड बनाया. दोनों की सभाएं एनडीए नेताओं की कुल सभाओं से अधिक रहीं.

एनडीए ने भी हर तरह से कोशिश की थी
वर्ष 2019 में मात खाने के बाद भाजपा ने इस बार एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखने की नीति तो अपनाई, लेकिन उसकी दो चूकों ने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया. झारखंड में भाजपा की जमीन तो इसकी स्थापना के वक्त से ही रही है. घुमा-फिरा कर भाजपा सर्वाधिक समय झारखंड की सत्ता में रही भी है. 2014 में मोदी लहर ने झारखंड में भाजपा की जमीन और पुख्ता कर दी थी. पर, 2014 की एक चूक भाजपा के लिए नुकसानदायक बन गई, जिसका दंश 2024 में लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक भाजपा को भोगना पड़ा है. अव्वल तो 2014 में रघुवर दास को सीएम बना कर भाजपा ने बड़ी भूल की. भाजपा आदिवासी सेंटीमेंट को समझ नहीं पाई. विपक्षी इंडिया ब्लाक ने रघुवर दास को गैर आदिवासी और बाहरी बता कर आदिवासियत के लिए उन्हें खतरे के रूप में पेश किया. पत्थलगड़ी पर रघुवर दास के कदम को आदिवासी विरोधी माना गया. एसपीटी एक्ट पर रघुवर दास को खतरे के रूप में तत्कालीन विपक्ष ने पेश किया. इसमें भाजपा की एक और चूक ने आग में घी का काम किया.

फेल हो गया ‘रोटी, बेटी, माटी’ का नारा
भाजपा ने चुनाव की घोषणा के पहले से ही अपने दो दिग्गजों को चुनाव प्रभारी बना कर झारखंड भेजा. इनमें केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को संगठन और मध्य प्रदेश में चुनाव का लंबा तजुर्बा है. मध्य प्रदेश में जब यह माना जा रहा था कि कांग्रेस के सामने भाजपा टिक नहीं पाएगी, तब मामा के नाम से मशहूर शिवराज ने ‘लाडली बहना योजना’ का ऐसा दांव चला कि कांग्रेस का खेल ही बिगड़ गया. कम से कम तीन विधानसभा चुनाव में शिवराज की रणनीति का कमाल मध्य प्रदेश में लोग देख चुके हैं. इसी तरह भाजपा ने असम के सीएम हिमंता विश्व सरमा पर भरोसा कर झारखंड की जिम्मेदारी सौंपी. दोनों की युगलबंदी में तैयार हुई रणनीति अच्छी रही, लेकिन भाजपा की गलतियों के कारण कारगर नहीं हो पाई.

हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से भड़के ट्राइबल
इसी साल जनवरी के आखिरी दिन हेमंत सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीम ने जमीन घोटाले में गिरफ्तार कर लिया. भाजपा को उम्मीद थी कि हेमंत सोरेन को भ्रष्टाचारी ठहरा कर वह जनता की सहानुभूति हासिल कर लेगी. पर, दांव उल्टा पड़ गया. हेमंत सोरेन को इस केस में पांच महीने का वक्त जेल में गुजारना पड़ा. इंडिया ब्लाक के नेता, खासकर हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने इसे आदिवासियों के खिलाफ भाजपा की साजिश करार देते हुए लोकसभा चुनाव में प्रचारित किया. नतीजा यह हुआ कि 2014 से लोकसभा में दो सीटों पर अटके इंडिया ब्लाक ने इस बार पांच सीटें जीत लीं. संयोग से ये सभी सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटें थीं. यह इंडिया ब्लाक के पक्ष में आदिवासी उभार का इशारा था. बाद में हेमंत सोरेन जमानत पर जेल से रिहा हो गए. जमानत के वक्त हाईकोर्ट ने जो टिप्पणी की, वह इंडिया ब्लाक के आरोपों को पुख्ता करने वाली थी. भाजपा के सपने पर इन्हीं वजहों से पानी फिर गया.

Tags: Jharkhand news

FIRST PUBLISHED :

November 23, 2024, 15:07 IST

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