सरदार पटेल की कौन सी बात मान लेते तो शायद बच जाती महात्मा गांधी की जान

11 hours ago 1

Last Updated:January 30, 2025, 11:55 IST

Gandhiji Death Anniversary: गांधीजी की प्रार्थना सभा के पास जब जनवरी 1948 में विस्फोट हुआ तो तत्कालीन गृह मंत्री वल्लभ भाई पटेल ने उन्हें सुरक्षा को लेकर एक आग्रह किया लेकिन महात्मा गांधी ने उसे खारिज कर दिया. ...और पढ़ें

सरदार पटेल की कौन सी बात मान लेते तो शायद बच जाती महात्मा गांधी की जान

हाइलाइट्स

  • 30 जनवरी 1948 को बिरला हाउस में नाथूराम गोडसे ने की थी गांधीजी की हत्या
  • गोडसे ने पिस्तौल से उन पर तीन फायर करके ले ली थी उनकी जान
  • सरदार पटेल ने उनकी सुरक्षा बढ़ा दी थी, क्योंकि हमले की आशंका बढ़ गई थी

काश..महात्मा गांधी ने तत्कालीन गृह मंत्री और सहयोगी वल्लभ भाई पटेल की सलाह मान ली होती तो शायद उनकी हत्या को बचाया जा सकता था. जनवरी 1948 में जब पहली बार गांधीजी की प्रार्थना सभा में विस्फोट हुआ तो सरदार पटेल उनके पास पहुंचे और उन्हें गुजारिश की कि ये काम उनकी सुरक्षा को लेकर करने दिया जाए. गांधीजी ने इसे सिरे से खारिज कर दिया.

ओडिया में लिखी गई गांधीजी की जीवनी “गांधी मानुष” (लेखक शरत कुमार महांति) को साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत किया था. फिर इसका हिंदी में भी अनुवाद हुआ. इसमें जाने माने ओडिया साहित्यकार शरत महांति लिखते हैं, जब पहली बार 20 जनवरी को गांधीजी की सभा में बम विस्फोट हुआ तो पटेल ने उनकी सुरक्षा में बदलाव कर दिया था.

सुरक्षा में 55 लोग तैनात कर दिए गए

कुल मिलाकर उनकी सुरक्षा में 55 लोग तैनात कर दिये गए. इस टीम की अगुवाई पहले जहां एक हेडकांस्टेबल करता था तो अब ये जिम्मेदारी एक सब इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी को दे दी गई.

पटेल चाहते थे कि गांधीजी की प्रार्थना सभा या उनसे मिलने जो भी पहुंचे, उसकी समुचित तलाशी ली जाए. लेकिन गांधीजी ने इससे साफ मना कर दिया था.

उनका तर्क था कि मेरी प्रार्थना में आने वाले किसी भी शख्स की तलाशी का मतलब होगा ईश्वर के कार्य में अड़ंगेबाजी. ईश्वर की प्रार्थऩा में आने वाले किसी भी व्यक्ति की तलाशी क्यों की जानी चाहिए. गांधीजी की इस बात के सामने पटेल निरुत्तर हो गए. यही वो पहलू भी था, जिसने नाथूराम गोडसे को पिस्तौल के साथ गांधीजी तक पहुंचने का रास्ता उपलब्ध करा दिया.

गांधी ने कहा था हिंदू ही होगा उनका हत्यारा

“द लाइफ एंड डेथ ऑफ महात्मा गांधी” के लेखक राबर्ट पेन ने लिखा, हत्या से कुछ दिनों पहले गांधीजी मौत के बारे में काफी बातें करने लगे थे. उन्होंने अंदाज लगा लिया था कि कोई हिंदू उनकी हत्या कर सकता है. उन्होंने उन्हीं दिनों कहा, ‘उनकी खुद की मौत हत्यारों के हाथों हो सकती है, जो हिंदू ही होना चाहिए, क्योंकि मुसलमानों को उनकी हत्या से कोई फायदा नहीं मिलने वाला.’

जीवन के इस मोड़ पर जब देश के बंटवारे के बाद वो हत्याओं और रक्तपात से घिरे खड़े थे. भारत के भविष्य का रास्ता उन्हें नजर नहीं आ रहा था, तब मोक्ष उनके दिमाग में काफी हद तक हावी होता जा रहा था.

‘मैं कर्तव्य का पालन करते हुए मरूं’

नोआखली में आजादी के पहले जब दंगों में हिंसा हुई तो गांधीजी वहां पहुंचे. हर सुबह करीब साढ़े सात बजे गांधी जी की यात्रा शुरू हो जाती थी, यानि वो पैदल ही एक गांव से दूसरे गांव चल देते थे. कई बार उनके पैरों से खून भी निकलने लगता था. फरवरी 1947  में उनकी यात्राएं अधिकाधिक जोखिम भरी होती चली गईं. गांवों, जंगलों की हवाओं तक में मौत का आभास होता था. इन्हीं दिनों उन्होंने अपने मित्र को पत्र लिखा, “मैं कहना चाहूंगा कि मैं अपने कर्तव्य का पालन करते-करते मरूं.”  

डरावने सपने आ रहे थे 

आजादी के बाद कोलकाता में शांति स्थापित करके गांधी जी जब दिल्ली पहुंचे तो ये मुर्दों, बेघरों और लुटे हुए लोगों का शहर बन चुकी थी. उन्हें बिड़ला हाउस में ठहराया गया. इन दिनों डरावने सपने उन्हें परेशान करने लगे थे. राबर्ट पेन लिखते हैं, “सपनों में वो अपने आपको हिंसक युवाओं की भीड़ के बीच खड़ा पाते.” एक बार उन्होंने सपने में बा को देखा, वो उनके कमरे में ही थीं और उन्हें घूर रही थीं.

मेरी मृत्यु वीरतापूर्वक हो

9 जनवरी 1948 को गांधी जी दिल्ली, पंजाब और अन्य जगहों पर हुए नरसंहार पर अपनी जिम्मेदारी की बातें कर रहे थे, “मैं ही उत्तरदायी हूं, ईश्वर ने मुझे शायद जानबूझकर अंधेरे में रखा, अब जीवन के अंतिम पड़ाव पर मुझे रोशनी दिखा रहा है, मेरी भगवान से प्रार्थना है कि मेरी मृत्यु वीरतापूर्वक हो, यदि ऐसा हुआ तो वो मेरी जीत होगी.”

साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत गांधीजी की ओडिया जीवनी ” गांधी मानुष” (लेखक शरत कुमार महांति) में भी लिखा गया कि जनवरी 1948 में गांधीजी को बराबर खौफनाक सपने आने लगे थे. अक्सर वो मनु से इसका जिक्र करते थे.

 तुम क्या करोगी अगर कोई मुझे गोली मार दे

जनवरी के तीसरे हफ्ते में जब गांधी सुबह प्रार्थनासभा कर रहे थे तभी वहां एक विस्फोट हुआ. भीड़ में डर और घबराहट फैलने लगी. उन्होंने धमाके से डर गईं मनुबेन से कहा, “तुम तब क्या करोगी अगर कोई सचमुच तुम्हें या मुझे आकर गोली मार दे.”  पुलिस ने उस विस्फोट के लिए मदन लाल पाहवा नाम के युवक को गिरफ्तार किया, उसके पास से हथगोला भी मिला.

गांधी जी को आभास हो गया था कि ये उन्हें मार डालने का असफल प्रयास था. उन्हीं दिनों पूरे दिन गांधी जी के साथ रहने वाले बृजलाल चांदीवाला ने लिखा, “मैंने ध्यान दिया कि गांधी जी दिन पर दिन जीवन के प्रति अपनी रुचि खोते जा रहे थे.” 

वह मानते थे कि उनकी रक्षा का जिम्मा ईश्वर का है

जीवन के आखिरी दिनों में गांधी जी कई स्तरों पर जी रहे थे. वो जानते थे कि किसी भी क्षण फिर हमला हो सकता है. हालांकि उन्हें विश्वास था कि उनकी रक्षा का जिम्मा स्वयं ईश्वर का है. वो ये भी मानते थे कि उनकी मृत्यु का आदेश स्वयं ईश्वर की ओर से ही आएगा. उनकी मृत्यु जीवन को सुशोभित करने वाली होगी.

गांधीजी की प्रार्थनासभा, जो वह नियमित रूप से रोज किया करते थे. (फाइल फोटो)

जब हत्या हुई तो बिल्कुल वैसा ही हुआ

विस्फोट के दो दिन बाद यानि 22 जनवरी को उन्होंने प्रार्थना सभा के बाद मनुबेन को पास बिठाया. उन्होंने कहा, “मेरी कामना है कि मैं हत्यारों की गोलियां झेलता हुआ तुम्हारी गोद में मरूं,मेरे मुंह से राम-नाम का जाप हो रहा हो और चेहरे पर मुस्कुराहट हो.”

इन शब्दों की अनेक व्याख्याएं की जा सकती हैं पर जो बात तय थी, वो ये कि मृत्यु के समय गांधी जी अपनी प्यारी पोती को पास और साथ देखना चाहते थे, जो मृत्यु के समय उन्हें सुकून दे रही हो, अपनी शुभेच्छा दे रही हो. गांधी जी हत्या हुई तो बिल्कुल ऐसा ही हुआ-जैसे वो पहले से जानते रहे हों कि क्या होना है.

हत्यारे के प्रति मेरे मन में कोई घृणा या क्रोध नहीं होना चाहिए 

हत्या से एक हफ्ते पहले उन्होंने राजकुमारी अमृत कौर से कहा, यदि मुझे किसी सनकी की गोलियों से ही मरना है तो मुझे ये हंसते हुए करना होगा, उसके प्रति मेरे मन में कोई घृणा या क्रोध नहीं होना चाहिए. मेरे हृदय और होठों पर ईश्वर विराजमान होना चाहिए. यदि कुछ होता है तो तुम एक भी आंसू नहीं बहाओगी.”

हत्या से ठीक एक दिन पहले पहले की रात जब मनुबेन उनके सिर की मालिश कर रही थीं, तब गांधी जी ने फिर मृत्यु के बारे में चर्चा की. उन्होंने कहा, “मृत्यु का क्षण ही ये सिद्ध करेगा कि वो वास्तव में महात्मा हैं या नहीं.”

गांधी जी बहुत गंभीरता से कह रहे थे, “यदि मैं किसी लंबी बीमारी या किसी छोटी सी चोट से मर जाऊं तो तुम चिल्ला चिल्लाकर पूरे संसार को बता देना कि मैं एक झूठा महात्मा था. अगर पहले जैसा विस्फोट दोबारा होता है या कोई मुझे गोली मार देता है और उसकी गोलियां मैं अपनी वस्त्र विहीन छाती पर झेलता हूं, मेरे मुंह से आह के स्थान पर  राम का नाम निकले, केवल तब तुम समझना कि मैं सच्चा महात्मा हूं.” गांधी जी ने ये शब्द रात को दस बजे कहे और एक घंटे बाद सो गए.

क्या पता कल जीवित रहूं या नहीं 

31 जनवरी यानी हत्या के दिन उन्होंने सुबह साढ़े दस बजे के बाद सचिव से कहा, “सारे महत्वपूर्ण कागज ले आओ, मैं आज ही उनका जवाब दूंगा, क्या पता कल जीवित रहूं या नहीं.” गांधी जी कुछ ही घंटे में चौथी या पांचवीं बार अपने निकट आती मृत्यु की ओर इशारा कर रहे थे.  शाम जब काठियावाड़ से कुछ कांग्रेस नेता उनसे मिलने आए तो उन्होंने कहा, “उन्हें कहो कि प्रार्थना सभा के बाद वो सैर में मेरे साथ बातचीत कर सकते हैं. अगर तब तक मैं जीवित रहा तो…”

पांच बजे जब वो प्रार्थना सभा की ओर चले तभी हरे स्वेटर पर खाकी जैकेट पहने एक व्यक्ति औरों को धक्का देता आगे आया, उसके कारण मनुबेन के हाथ से चश्मा, जपमाला , नोटबुक और पीकदान गिर गया. वो गांधी जी के सामने झुका. फिर एक के बाद एक तीन धमाकों की आवाज हुई. तीनों गोलियां गांधीजी को लगीं. उनके मुंह से हे राम, हे राम, हे राम  निकल रहा था. जब गांधी गिर रहे थे तो उनके हाथ नमस्कार की मुद्रा में जुड़े हुए थे.

Location :

Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh

First Published :

January 30, 2025, 11:55 IST

homeknowledge

सरदार पटेल की कौन सी बात मान लेते तो शायद बच जाती महात्मा गांधी की जान

*** Disclaimer: This Article is auto-aggregated by a Rss Api Program and has not been created or edited by Nandigram Times

(Note: This is an unedited and auto-generated story from Syndicated News Rss Api. News.nandigramtimes.com Staff may not have modified or edited the content body.

Please visit the Source Website that deserves the credit and responsibility for creating this content.)

Watch Live | Source Article