नई दिल्ली/रियो डी जेनेरियो/बीजिंग:
भारत और चीन ने लगभग पांच वर्षों के अंतराल के बाद सीमा मुद्दे पर अपने विशेष प्रतिनिधियों की बैठक शीघ्र बुलाने का निर्णय लिया है. पूर्वी लद्दाख में दो टकराव वाले स्थानों से अपने सैनिकों को वापस बुलाने के कुछ सप्ताह बाद दोनों देश सीधी उड़ान तथा कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा फिर से शुरू करने के करीब पहुंच गए हैं.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच सोमवार देर रात रियो डी जेनेरियो में जी-20 शिखर सम्मेलन के इतर हुई बातचीत में भारत-चीन संबंधों में अगले कदमों पर प्रमुखता से चर्चा हुई, जिसका उद्देश्य संबंधों को स्थिर करना था.
विदेश मंत्रालय के अनुसार, दोनों मंत्रियों ने महसूस किया कि यह जरूरी है कि ध्यान संबंधों को स्थिर करने, मतभेदों को दूर करने और अगले कदम उठाने पर केंद्रित होना चाहिए. पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर देपसांग और डेमचोक में सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद दोनों पक्षों के बीच यह पहली उच्च स्तरीय बातचीत थी.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों मंत्रियों ने माना कि सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों की वापसी से शांति और सौहार्द बनाए रखने में मदद मिली है. उसने कहा, ‘‘चर्चा भारत-चीन संबंधों में अगले कदमों पर केंद्रित थी. इस बात पर सहमति बनी कि विशेष प्रतिनिधियों और विदेश सचिव-उपमंत्री तंत्र की बैठक जल्द ही होगी.''
मंत्रालय ने कहा, ‘‘जिन कदमों पर चर्चा की गई उनमें कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करना, सीमा पार की नदियों पर आंकड़े साझा करना, भारत और चीन के बीच सीधी उड़ानें और मीडियाकर्मियों की परस्पर आवाजाही शामिल थे.''
विशेष प्रतिनिधियों (एसआर) की 22वें दौर की वार्ता 21 दिसंबर, 2019 को नयी दिल्ली में आयोजित की गई. वार्ता के लिए भारत के एसआर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल हैं, जबकि चीनी पक्ष का नेतृत्व विदेश मंत्री वांग यी कर रहे हैं.
कोविड-19 महामारी के मद्देनजर भारत और चीन के बीच सीधी उड़ानें और कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा निलंबित कर दी गयी थी. विदेश मंत्रालय के अनुसार, बैठक में जयशंकर ने वांग को बताया कि भारत प्रभुत्व स्थापित करने के लिए एकतरफा दृष्टिकोण के खिलाफ है और वह अपने संबंधों को अन्य देशों के चश्मे से नहीं देखता है.
विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘‘वैश्विक स्थिति और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर विदेश मंत्री ने कहा कि भारत और चीन के बीच मतभेद और समानताएं दोनों हैं. हमने ब्रिक्स और एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) ढांचे में रचनात्मक रूप से काम किया है.''
इसके मुताबिक, जयशंकर ने कहा कि भारत बहुध्रुवीय एशिया सहित बहुध्रुवीय विश्व के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध है. बयान में कहा गया, ‘‘जहां तक भारत का सवाल है, इसकी विदेश नीति सिद्धांतबद्ध और सुसंगत रही है, जो स्वतंत्र विचार और कार्य पर आधारित रही है. हम प्रभुत्व स्थापित करने के लिए एकतरफा दृष्टिकोण के खिलाफ हैं. भारत अपने रिश्तों को दूसरे देशों के चश्मे से नहीं देखता.''
बयान में कहा गया कि विदेश मंत्री वांग यी ने जयशंकर के साथ सहमति जताते हुए कहा कि भारत-चीन संबंधों का विश्व राजनीति में विशेष महत्व है. विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘उन्होंने (वांग) कहा कि हमारे नेताओं ने कजान में आगे के रास्ते पर सहमति जताई थी. दोनों मंत्रियों ने महसूस किया कि यह जरूरी है कि संबंधों को स्थिर करने, मतभेदों को दूर करने और अगले कदम उठाने पर ध्यान केंद्रित किया जाए.''
जयशंकर ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स' पर कहा, ‘‘हमने भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में हाल में सैन्य वापसी में हुई प्रगति पर गौर किया. साथ ही द्विपक्षीय संबंधों में अगले कदमों पर विचारों का आदान-प्रदान किया. वैश्विक स्थिति पर भी चर्चा की.''
यह माना जाता है कि दोनों पक्ष विभिन्न वार्ता तंत्रों को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया में हैं, जिसमें सीमा विषय पर विशेष प्रतिनिधि वार्ता भी शामिल है, जैसा 23 अक्टूबर को रूसी शहर कजान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच हुई बैठक में तय किया गया था.
डेमचोक और देपसांग में पीछे हटने के लिए दोनों पक्षों के बीच 21 अक्टूबर को सहमति बनने के कुछ दिनों बाद, भारतीय और चीनी सेनाओं ने यह प्रक्रिया पूरी कर ली, जिससे दोनों टकराव स्थलों पर चार साल से अधिक समय से चल रहा गतिरोध लगभग समाप्त हो गया.
दोनों पक्षों ने लगभग साढ़े चार वर्षों के अंतराल के बाद इन क्षेत्रों में गश्त गतिविधियां भी पुनः शुरू कीं. वार्ता में अपने प्रारंभिक वक्तव्य में जयशंकर ने 23 अक्टूबर को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी और शी के बीच हुई बैठक का उल्लेख किया.
उन्होंने कहा, ‘‘कजान में हमारे नेता 21 अक्टूबर की सहमति को ध्यान में रखते हुए हमारे संबंधों में अगले कदम उठाने पर आम सहमति पर पहुंचे. मुझे यह जानकर खुशी हुई कि जमीनी स्तर पर उस सहमति का कार्यान्वयन योजना के अनुसार आगे बढ़ा है.''
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘हमारे नेताओं ने निर्देश दिया है कि विदेश मंत्रियों और विशेष प्रतिनिधियों को जल्द से जल्द मिलना चाहिए. इस दिशा में कुछ प्रगति हुई है, कुछ चर्चाएं हुई हैं.'' विदेश मंत्री ने अपनी टिप्पणी में भारत-चीन संबंधों के महत्व पर भी ध्यान दिलाया.
उन्होंने कहा, ‘‘सबसे पहले मैं यह कहना चाहता हूं कि जी-20 के दौरान आपसे मिलना बहुत अच्छा रहा. जैसा कि आपने उल्लेख किया, हमने हाल ही में ब्रिक्स के दौरान भी एक-दूसरे से मुलाकात की थी. और दोनों मंचों पर हमारा योगदान अंतिम परिणामों को आकार देने में उल्लेखनीय था.''
वहीं, बीजिंग से मिली खबरों के मुताबिक, वांग ने जयशंकर के साथ अपनी बैठक में कहा कि भारत और चीन को प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति चिनफिंग के बीच रूस में शिखर सम्मेलन में बनी महत्वपूर्ण सहमति को क्रियान्वित करना चाहिए.
सरकारी समाचार एजेंसी ‘शिन्हुआ' ने वांग-जयशंकर बैठक पर आधिकारिक बयान का हवाला देते हुए बताया कि दोनों पक्षों को दोनों नेताओं द्वारा बनाई गई महत्वपूर्ण सहमति को लागू करना चाहिए, एक-दूसरे के हितों का सम्मान करना चाहिए, संवाद एवं संचार के माध्यम से आपसी विश्वास को बढ़ाना चाहिए, मतभेदों को ईमानदारी व निष्ठा के साथ निपटाना चाहिए तथा द्विपक्षीय संबंधों को जल्द से जल्द प्रगति के रास्ते पर वापस लाना चाहिए.
सूत्रों ने बताया कि सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भारतीय और चीनी सेनाएं देपसांग और डेमचोक में एक-एक दौर की गश्त कर रही हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों ने एलएसी पर सैनिकों की तैनाती बरकरार रखी है और अब ध्यान तनाव को समग्रता में कम करने पर होगा.
इस समय क्षेत्र में एलएसी पर दोनों पक्षों के लगभग 50,000 से 60,000 सैनिक तैनात हैं. उन्होंने बताया कि तनाव कम करने के लिए कई स्तरों पर बातचीत चल रही है.
भारत और चीन के बीच 21 अक्टूबर को देपसांग और डेमचोक में सेनाओं की वापसी के समझौते पर पहुंचने के बाद सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा था कि भारतीय सेना ‘‘विश्वास'' बहाल करने का प्रयास कर रही है और इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए दोनों पक्षों को “एक दूसरे को आश्वस्त” करना होगा.
समझौते पर हस्ताक्षर होने के दो दिन बाद मोदी और शी ने रूसी शहर कजान में वार्ता की. पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद पांच मई, 2020 को पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध शुरू हो गया था.