यहां एक महीने बाद मनाई जाती है दिवाली
शिमला. हिमाचल प्रदेश देवभूमि है, यहां का रहन-सहन, खान-पान और संस्कृति अपने आप में अनोखी है. हिमाचल प्रदेश के हर क्षेत्र की अपनी अलग संस्कृति है, इसलिए हिमाचल प्रदेश को विविध संस्कृतियों का राज्य भी कहा जाता है. चंबा से लेकर सिरमौर तक, किन्नौर से लेकर लाहौल स्पीति और कांगड़ा तक, सभी क्षेत्र अपने आप में एक समृद्ध संस्कृति को संजोए हुए हैं. इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों की संस्कृति इतनी अलग है, जो बाहरी लोगों के लिए किसी अचंभे से कम नहीं है.
ऐसा ही एक त्यौहार हिमाचल प्रदेश के दूर दराज क्षेत्र जिला सिरमौर में मनाया जाता है. दरअसल, पूरे देश में एक नवंबर को धूमधाम से दिवाली का त्यौहार मनाया गया. लेकिन, जिला सिरमौर के एक बड़े भूभाग में दिवाली का त्यौहार एक महीने के बाद 30 नवंबर को मनाया जाना है, जिसे बूढ़ी दिवाली कहा जाता है.
क्या है मान्यता
यूं तो बूढ़ी दिवाली मनाने को लेकर कई प्रकार की कहानियां प्रचलित है. लेकिन, इनमें एक सबसे प्रचलित कहानी है. ऐसा माना जाता है कि पिछड़ा क्षेत्र होने के कारण और अयोध्या से दूरी अधिक होने के कारण, इस क्षेत्र में भगवान राम के अयोध्या पहुंचने की खबर देरी से पहुंची थी. यहां लोगों को एक माह बाद भगवान राम के अयोध्या पहुंचने की खबर मिली थी. लोगों को लगा कि भगवान राम इसी अमावस के दिन अयोध्या पहुंचे हैं और लोगों ने एक माह बाद की अमावस को दीवाली के रूप में मनाया. यह परंपरा कई हजार वर्षों से चली आ रही है.
चार दिनों तक मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली
जिला सिरमौर और जिला शिमला के कुछ हिस्सों में चार दिनों तक दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है. बूढ़ी दिवाली पर भी इसी परंपरा का निर्वहन किया जाता है. चार दिनों को छोटी दिवाली, बड़ी दिवाली, भ्यूंरी और जोंदोई के रूप में मनाया जाता है. पहले दो दिनों में रात के समय मशालें जलाई जाती हैं और आखिर के 2 दिनों में लोग गांव के सांझें आंगन में एकत्रित होकर पारंपरिक गीतों पर झूमते हैं. इस दौरान गांव से ब्याही हुई बेटियां भी अपने माइके पहुंचती है. चार दिनों में आस्था और लोक परंपरा की झलक देखने को मिलती है.
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FIRST PUBLISHED :
November 29, 2024, 17:19 IST