पीलीभीत : उत्तर प्रदेश का पीलीभीत जिला आज इको टूरिज्म के क्षेत्र में देश-दुनिया में शोहरत बटोर रहा है. लेकिन प्राकृतिक खूबसूरती के साथ ही साथ पीलीभीत में ऐतिहासिक और धर्मिक पर्यटन के लिए अपार संभावनाएं हैं. पीलीभीत में ब्रिटिश काल से लेकर रोहिल्ला शासन काल समेत हजारों साल पुरानी धरोहरें मौजूद हैं. हाल ही में राज्य पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से जारी अधिसूचना के तहत पीलीभीत के इलाबांस देवल मंदिर को संरक्षित इमारतों की सूची में शामिल किया गया है.
इलाबांस देवल मंदिर काफी अधिक प्राचीन है औरअपने आप में खासा ऐतिहासिक महत्व रखता है. विशेष तौर पर यह मंदिर लोध राजपूत समाज के लोगों के मेले के रूप सबसे अधिक प्रसिद्ध है. हर साल यहां 2 बार बड़े मेले का आयोजन होता है. पहला मेला हिन्दू कैलेंडर के चैत्र माह में लगता है. वहीं दूसरा मेला आषाढ़ मास में लगाया जाता है. इस दौरान पीलीभीत के साथ ही साथ बरेली समेत कई जिलों से भक्त यहां आते हैं.
11 वीं सदी का है मंदिर
लंबे अरसे तक इलाबांस देवल मंदिर को केवल मेले के लिहाज से ही महत्वपूर्ण माना जाता था. लेकिन बीते सालों में मंदिर में लगे शिलापट से इसके इतिहास का खुलासा हुआ. पीलीभीत में ही रहने वाले शिवम कश्यप का कुछ साल पहले यहां लगने वाले मेले में जाना हुआ. जहां उनकी नजर मंदिर पर लगे शिलापट पर पड़ी. उन्हें शिलापट की लिपि सामान्य से कुछ अलग लगी ऐसे में उन्होंने इस पर अपने स्तर पर शोध करना शुरू किया. जिसमे उन्हें इससे जुड़े कुछ ऐसे साक्ष्य मिले जिसमें मंदिर का इतिहास 11वीं सदी के कालांतर का बताया गया. एपिग्राफिया इंडिका में भी इस मंदिर का जिक्र किया गया है.
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने जारी की अधिसूचना
हाल ही में उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अधिसूचना जारी करते हुए बीसलपुर तहसील क्षेत्र में स्थित इलाबांस देवल मंदिर के लगभग 57,000 स्क्वायर फीट क्षेत्र को संरक्षित स्मारक के रूप में शामिल किया है.
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FIRST PUBLISHED :
October 23, 2024, 13:33 IST