विज्ञान की दुनिया में इस समय बड़ी बहस के साथ गहन शोध भी चल रहे हैं. वैज्ञानिक यह जानना चाहते हैं कि आखिर ब्रह्माण्ड के विस्तार की वजह क्या है और उससे भी जरूरी उसके विस्तार की सटीक रफ्तार क्या है. इसके लिए बहुत जरूरी है कि तारों का स्टीकता से अध्ययन कर सकें जो कि असल में बहुत ही मुश्किल काम है. जैसे जैसे उन्नत तकनीक के टेलीस्कोप बन रहे हैं, वैज्ञानिकों की जानकारी बेहतर हो रही है, फिर भी वैज्ञानिक कई रहस्यों से कोसों दूर हैं. ऐसे में उन्होंने पृथ्वी की कक्षा एक आर्टिफिशियल तारा स्थापित करने की योजना पर काम शुरू किया है जो कई रहस्य खोल सकता है.
पृथ्वी की कक्षा में तारा
जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी एक अरब 65 करोड़ रुपये के लैंडोल्ट नासा स्पेस मिशन का नेतृत्व करेगी, जो एक अभूतपूर्व परियोजना है. इसी के जरिए पृथ्वी की कक्षा में जो एक कृत्रिम “तारे” को स्थापित किया जाएगा. यह कृत्रिम तारा वैज्ञानिकों को दूरबीनों को कैलिब्रेट करने और पास के तारों से लेकर दूर की आकाशगंगाओं में दूर के सुपरनोवा विस्फोटों तक तारकीय चमक के माप को बेहतर बनाने के काबिल बनाएगा.
तारों की चमक का महत्व
इस मिशन के जरिए वे ब्रह्मांड के विस्तार की गति और उसमें आने वाल तेजी को समझने सहित प्रमुख खगोल भौतिकी चुनौतियों से निपटा जा सकेगा. वैज्ञानिक यह बात तो पहले से ही जानते हैं कि ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है और इसके विस्तार को मापने के लिए वे तारों की चमक और उनसे हर सेंकेंड निकल रहे फोटोन का अध्ययन करते हैं. इस मिशन के प्रमुख पड़तालकर्ता और फिजिक्स और एस्ट्रोनॉमी के एसोसिएट प्रोफेसर पीटर प्लावचैन के मुताबिक इस तरह के शोधों में सटीक मापन का बहुत नाजुक महत्व है.
यह तारा वास्तव में एक सैटेलाइट होगा जो पृथ्वी की कक्षा में स्थापित होगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
कैसे काम करेगा ये तारा?
इस मिशन के जरिए नासा साल 2029 में एक सैटेलाइट लॉन्च करेगा जो आर्टिफिशियल स्टार की तरह काम करेगा. सैटेलाइट स्पेस से लेजर प्रकाश आकाश से पृथ्वी की ओर भेजेगा जिसकी फोटोन निकलने की दर पहले से ही पता होगी. इन किरणों का धरती के टेलीस्कोप अध्ययन करेंगे जिससे वह यह अंदाजा लगा सकेंगे कि यह चमक किस तरह के तारों की हैं.
मापन में आ सकता है क्रांतिकारी बदलाव
इस तरह से वैज्ञानकों को हमारे असली तारों की चमक का सही अंदाजा हो सकेगा. यह प्रयोग हमारे तारों की चमक के अध्ययन के तरीकों में भी बदलाव ला सकता है और साथ ही दूर के ग्रहों और उनकी चमक, तापमान, आदि की जानकारी हासिल करने में भी मदद कर सकता है. यह खगोलीय मापन में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है.
लैंडोल्ट नासा स्पेस मिशन स्पेस से खास चमक वाली रोशनी पृथ्वी पर भेजेगा, जो एक तारे से आने वाली रोशनी की तरह लगेगी. (तस्वीर: George Mason University)
पृथ्वी की कक्षा में रहेगा स्थिर
यह तारा ( सैटेलाइट) पृथ्वी से 22236 मील की दूरी पर होगा जिसकी रफ्तार पृथ्वी की घूमने की रफ्तार की तरह होगी जिसे वह हमेशा ही अमेरिका के ऊपर होगा. प्लावचैन का कहना है कि इससे कई मूलभूत बदलाव लाने में मदद मिलेगी लेकिन वे बेहतर ही होंगे. सैटेलाइट से अलग- अलग तरह का प्रकाश नियंत्रित तरीके से भेजा जा सकेगा. जिससे मापन तकनीकों को समझने और उन्हें बेहतर करने में मदद मिलेगी.
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इस अभियान के जरिए वेज्ञानिक तारों का विकास, बाह्यग्रहों में जीवन की संभावनाओं, डार्क ऊर्जा संबंधी गणनाएं, आदि पता कर सकेंगे या उनकी जानकारी को बेहतर कर सकेंगे. जाहिर है इससे ब्रह्माण्ड के विस्तार को लेकर कई सवालों के जवाब भी मिल सकेंगे और शायद भी पता चल सकेगा कि क्या इस विस्तार में डार्क ऊर्जा की भी कोई भूमिका है भी या नहीं.
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FIRST PUBLISHED :
November 21, 2024, 19:32 IST