Buniyadi School
पूर्वी चंपारण. बिहार के पूर्वी चंपारण में 13 नवंबर 1917 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के द्वारा देश के पहले बुनियादी विद्यालय की स्थापना की गई थी. बापू ने चंपारण यात्रा के दौरान इस स्कूल की शुरूआत की थी. अब यह विद्यालय अब अपनी पहचान और अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है. किसी मसीहा का इंतजार है, जो इस ऐतिहासिक स्कूल का कायाकल्प कर सके. जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर इस विद्यालय की स्थापना के लिए गांव के शिव गुलाम बख्शी ने अपना मकान दान में दिया था.
संकट में है देश का पहला बुनियादी विद्यालय
देश के पहले बुनियादी स्कूल में महात्मा गांधी ने बच्चों को पढ़ाने के लिए अपने छोटे पुत्र देवदास गांधी, मुंबई से बबन गोखले, उनकी पत्नी अवंतिका बाई गोखले, साबरमती आश्रम से छोटेलाल और सुरेंद्र जी को शिक्षक के रूप में बुलाया था. इस विद्यालय में ना केवल शिक्षा दी जाती थी, बल्कि गांधी जी ने यहां स्वरोजगार की शिक्षा भी दी थी. गांधी जी स्वयं छह माह तक यहां रहे. इस दौरान उन्होंने स्थानीय लोगों में देशभक्ति का जज्बा भरने के साथ-साथ अंग्रेजों के खिलाफ नील की खेती का विरोध करने के लिए प्रेरित किया था. गांधी जी के आदेश पर ही खेनालाल को विद्यालय का आदेशपाल नियुक्त किया गया था. उनके पोते सोनालाल अब इस विद्यालय में नाइट गार्ड का काम करते हैं.
बापू से जुड़ी धरोहरों की हो रही है उपेक्षा
सोनालाल ने लोकल 18 को बताया कि जिस कुंए का पानी गांधी जी पीते थे और जहां वे स्नान करते थे, उसकी सफाई आज तक नहीं हो पाई है. इसके अलावा, पोखर के पास कस्तूरबा गेट का निर्माण भी आज तक पूरा नहीं हो सका है. इस विद्यालय में बापू से जुड़ी कई यादें आज भी मौजूद है. लेकिन, उसे सहेजा नहीं जा रहा है. गांधी जी जिस चरखे से सूत काटते थे, वह चरखा आज भी विद्यालय में रखा हुआ है. इसके अलावा लकड़ी की मशीन, ग्लोब, घड़ी और अन्य सामान एक कमरे में धूल खा रहे हैं. स्थानीय युवक कमाल इस्लामी का कहना है कि अगर ये चीजें सोनालाल जी ने संभाल कर नहीं रखी होती, तो अब मिट्टी में मिल चुकी होती.
सरकार से है मदद की आस
स्थानीय जनप्रतिनिधि गांधी जी के नाम पर आधुनिक चरखा तो गिफ्ट करते हैं, लेकिन जो असली चरखा है, उसकी सही देखभाल नहीं की जा रही है. एक संग्रहालय मॉडल के तहत इन धरोहरों को संरक्षित किया जा सकता है, ताकि पर्यटक यहां आकर बापू की यादों को देख सके. विद्यालय में रखा चरखा अब जर्जर हो चुका है. कमरा भी अब ध्वस्त होने की स्थिति में है. कमरे की खिड़कियां टूट चुकी है, प्लास्टर उखड़ चुका है और गेट को रस्सी से बांध दिया गया है. प्रधानाध्यापक अब्दुल मनान का कहना है कि उनका भी यही सपना है कि विद्यालय का गौरव वापस लौटे और सरकार का ध्यान इस ओर जाए. संसाधनों और फंड की कमी के कारण बापू से जुड़ी चीजें सही तरीके से संग्रहित नहीं हो पाई है. सरकार से मदद मिलती तो बेहतर तरीके से संरक्षित हो पाता.
Tags: Bihar News, East champaran, Education, Local18, Mahatma gandhi
FIRST PUBLISHED :
November 26, 2024, 18:50 IST