किसानों के लिए सरकार के 2 बड़े फैसले, कायनात मेहरबान, कैसा मिलेगा चुनावी फल?

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हाइलाइट्स

मोदी सरकार ने भारत के तिलहन किसानों के हित में दो बड़े फैसले लिए हैं.क्रूड पाम ऑयल, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क बढ़ाया है.दूसरा फैसला सोयाबीन की सरकारी खरीद MSP पर किए जाने को लेकर है.

नई दिल्ली. हरियाणा विधानसभा के चुनाव बिलुकल सिर पर हैं. 5 अक्टूबर को वोटिंग होगी और 8 अक्टूबर को परिणाम हमारे सामने होंगे. जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं. उम्मीद है कि इसी साल नवम्बर में महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव भी कराये जा सकते हैं. हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों ही कृषि प्रधान राज्य हैं. ऐसे में केंद्र सरकार ने बीते कुछ हफ्तों में किसानों को लाभ पहुंचाने वाले दो अहम फैसले लिए हैं. ये फैसले चुनावी दृष्टिकोण से भारतीय जनता पार्टी के नजरिए से कितने फलदायी साबित होंगे, यह तो वक्त ही बताएगा, मगर इतना तो यह है कि किसानों को इनका लाभ जरूर मिलेगा.

मोदी सरकार ने भारत में तिलहन उगाने वाले किसानों के हितों की रक्षा के लिए ये दो फैसले लिए हैं. पहला बड़ा कदम विदेशी क्रूड पाम ऑयल, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क बढ़ाना है. इससे घरेलू किसानों को आयात से मिलने वाली चुनौती कम होगी, और उनके उत्पादों के लिए बाजार में बेहतर कीमतें मिलेंगी. दूसरा फैसला सोयाबीन की सरकारी खरीद की अनुमति से जुड़ा हुआ है. इसकी अनुमति मिलने से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का लाभ मिलेगा.

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इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने 13 सितंबर को कच्चे पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल पर आयात शुल्क (बेसिक कस्टम्स ड्यूटी) को शून्य से बढ़ाकर 20% कर दिया, और इन तेलों के रिफाइंड रूप पर शुल्क 12.5% से बढ़ाकर 32.5% कर दिया. साथ ही, सरकार ने कृषि अवसंरचना और विकास उपकर (Agriculture infrastructure and improvement cess) 5% और सामाजिक कल्याण उपकर (Social Welfare surcharge) 10% जोड़ने के बाद प्रभावी आयात शुल्क को कच्चे तेलों के लिए 5.5% से 27.5% और रिफाइंड ऑयल के लिए 13.75% से 35.75% कर दिया है.

तीन साल बाद फिर से दी सेफ्टी
यह पहली बार है कि अक्टूबर 2021 के बाद कच्चे पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर बेसिक कस्टम ड्यूटी लगाई गई है. इससे पहले 2020 में सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय तेल की बढ़ती कीमतों के चलते आयात शुल्क में कटौती शुरू की थी, जिससे घरेलू उत्पादकों को नुकसान हो रहा था.

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सरल शब्दों में कहें तो सरकार ने घरेलू तेल-बीज उत्पादन करने वाले किसानों को तीन साल पहले जैसी सेफ्टी फिर से दी है. वैश्विक खाद्य तेल की कीमतों में कमी और देश के इस साल 193.32 लाख हेक्टेयर में तिलहन की खेती करने वाले किसानों के लिए मोदी सरकार ने यह कदम उठाया है. इसके साथ ही महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना सरकारों को केंद्र के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सोयाबीन खरीदने की अनुमति भी दी गई है, जिससे किसानों को लाभ होगा.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों पर नजर
आर्थिक रूप से देखा जाए तो इस साल तेल-बीज की फसल अच्छी होने की उम्मीद है, और वैश्विक कीमतें भी कम हैं. इसी के चलते अगस्त में खाने के तेलों की महंगाई दर माइनस 0.86% रही है. कहा जा सकता है कि प्रकृति अथवा कायनात मेहरबान है. इसके अलावा, महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र भी यह कदम राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह राज्य देश का दूसरा सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक है.

इस बार कम हुआ है इम्पोर्ट
भारत का खाद्य तेल का इम्पोर्ट पिछले साल 16.5 मिलियन टन के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था. हालांकि, इस साल के पहले 10 महीनों में आयात 3.6% कम होकर 13.5 मिलियन टन पर आ गया है. खासकर सूरजमुखी तेल का आयात काफी बढ़ा है, जो अब पाम तेल के बाद देश का दूसरा सबसे अधिक आयात होने वाला तेल बन गया है.

देश में खाद्य तेल की खपत हर साल लगभग एक मिलियन टन बढ़ रही है. इस साल अच्छी बारिश और सरकार की बेहतर मूल्य प्रदान करने की कोशिशों से घरेलू उत्पादन में भी 1 मिलियन टन की वृद्धि हो सकती है.

Tags: Agriculture, Edible oil, Maharashtra News, Modi government

FIRST PUBLISHED :

September 23, 2024, 11:53 IST

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