कब कर सकता है इंसान अपना खुद का ही श्राद्ध
ऋषिकेश: श्राद्ध हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है. श्राद्ध का मुख्य उद्देश्य अपने दिवंगत पूर्वजों की आत्मा को तृप्त करना और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना है. इसे विशेष रूप से पितृ पक्ष में किया जाता है, जो भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से शुरू हो जाते हैं और अमावस्या तक चलते हैं. इस दौरान लोग अपने पितरों को तर्पण, पिंडदान, और भोजन अर्पित करते हैं. श्राद्ध कर्म से पितरों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति में सहायता मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. वहीं एक ऐसी स्थिति भी है, जहां इंसान अपने पितरों के साथ अपना खुद का श्राद्ध भी कर सकता है.
पितृ पक्ष में श्राद्ध का महत्व
लोकल 18 के साथ बातचीत के दौरान उत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित श्री सोमेश्वर महादेव मंदिर के महंत रामेश्वर गिरी ने बताया कि पितृ पक्ष में श्राद्ध का विशेष महत्व है, क्योंकि यह समय पितरों को समर्पित होता है. भाद्रपद महीने की पूर्णिमा 17 सितंबर से इसकी शुरुआत हो गई है और ये अमावस्या तक चलेगा. ये 15 दिन पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इस दौरान लोग तर्पण, पिंडदान और भोजन अर्पित करके अपने पूर्वजों की आत्मा को सम्मान और श्रद्धा अर्पित करते हैं. ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध कर्म से पितरों की आत्मा प्रसन्न होती है, जिससे परिवार को सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. मोक्ष प्राप्ति और पितृ दोष से मुक्ति के लिए भी यह समय उत्तम होता है.
कब कर सकता है इंसान अपना खुद का श्राद्ध
महंत रामेश्वर गिरी ने बताया कि खुद का श्राद्ध और पिंडदान करना दुर्लभ और असामान्य परिस्थिति मानी जाती है. ऐसी स्थिति तब उत्पन्न हो सकती है, जब व्यक्ति को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो. उसके आगे कुल में कोई अंतिम संस्कार करने वाला न हो. इस स्थिति में व्यक्ति अपने जीवनकाल में ही अपना श्राद्ध और पिंडदान करके पितृ ऋण से मुक्त होने का प्रयास करता है. यह कर्म आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है. कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस प्रक्रिया से व्यक्ति पितृ दोष से मुक्ति पाकर अपने वंशजों के लिए आशीर्वाद सुनिश्चित कर सकता है.
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FIRST PUBLISHED :
September 23, 2024, 12:00 IST