हाइलाइट्स
फेसबुक, एक्स जैसे प्लेटफॉर्म कंटेंट से कमाई करते हैं.पारंपरिक मीडिया को उचित मुआवजा नहीं मिलता.सरकार से उचित भुगतान सुनिश्चित कराने की मांग.
फेसबुक और इंस्टाग्राम के मालिकाना हक वाली कंपनी मेटा ने वित्त वर्ष 2023 में 134.90 बिलियन डॉलर का रेवेन्यू हासिल किया था. इसी तरह एक्स (पहले ट्विटर) ने इसी वित्त वर्ष में 1.48 बिलियन डॉलर का राजस्व हासिल किया. दोनों ही कंपनियां दुनियाभर के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की ‘राजा कंपनियों’ में शुमार हैं. इनका पूरा धंधा कंटेंट पर टिका हुआ है. ये कंपनियां खुद कोई कंटेंट क्रिएट नहीं बनातीं, बल्कि कंटेंट बनाने वालों को एक सोशल प्लेटफॉर्म देती हैं, जहां पर करोड़ों की संख्या में यूजर आते हैं. ऐसे में कंटेंट बनाने वाले (क्रिएटर्स) का एक अहम रोल बनता है. मगर, स्थिति ये है कि दोनों प्लेटफॉर्म खुद तो लाखों करोड़ों की कमाई कर रहे हैं, मगर कंटेंट क्रिएटर्स को ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ के समान रेवेन्यू शेयर कर रहे हैं.
अब कंटेंट क्रिएटर्स की बात करें तो इसमें दो कैटेगरीज़ हैं. पहली- बड़े पब्लिशिंग हाउस, दूसरी- यूजर जेनरेटेड (UGC). बड़े पब्लिशिंग हाउस किसी भी कंटेंट को तैयार करते समय कानूनों और नियमों का पालन करते हैं, जबकि यूजर जेनरेटेड कंटेंट कई बार फेक भी होता है. ऐसे में, बड़े पब्लिशर्स का कंटेंट ज्यादा भरोसे-लायक होता है.
पब्लिशर्स का हिस्सा
आमतौर पर ये प्लेटफार्म विज्ञापन से होने वाले राजस्व का एक हिस्सा पब्लिशर्स को देते हैं. हालांकि, इस हिस्से का एकदम सटीक प्रतिशत अलग-अलग हो सकता है. उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया में एक कानून के तहत इन कंपनियों ने स्थानीय समाचार पब्लिशर्स के साथ 30 से अधिक डील्स की हैं, जिससे उन्हें उचित हिस्सा मिल रहा है.
भारत में भी डिजिटल न्यूज़ पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) ने सरकार से मांग की है कि गूगल और मेटा जैसे टेक दिग्गजों से समाचार प्रकाशकों के लिए उचित भुगतान सुनिश्चित कराया जाए. इस विषय पर बहस चल रही है कि विज्ञापन से होने वाले रेवेन्यू का डिस्ट्रिब्यूशन अथवा विभाजन कैसे किया जाए और क्या पब्लिशर्स को उनके कंटेंट के लिए उचित हिस्सा मिल रहा है?
शॉर्ट फॉर्म कंटेंट पर ज्यादा जोर
2024 में मेटा ने क्रिएटर्स को 2 बिलियन डॉलर का भुगतान करने की घोषणा की, जिसमें रील्स जैसे शॉर्ट-फॉर्म कंटेंट को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया. मेटा ने कहा कि वह न्यूज़ पर अब उतना फोकस नहीं रखेगा, जितना कि यूजीसी (यूजर जेनरेटेड कंटेंट) पर. यह यूट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्म के साथ प्रतिस्पर्धा करने के व्यापक प्रयास का हिस्सा है, जिसने 3 वर्षों में क्रिएटर्स को 70 बिलियन डॉलर से अधिक का भुगतान किया है. पेमेंट मॉडल में इन-स्ट्रीम विज्ञापन शामिल हैं, जहां क्रिएटर्स वीडियो व्यू और विज्ञापनों पर इंप्रेशन के आधार पर पैसा कमाते हैं. केवल मेटा ही नहीं, एलन मस्क द्वारा ट्विटर के अधिग्रहण के बाद से X ने भी यूजीसी पर अधिक फोकस किया है.
भारत सरकार के संज्ञान में है मामला
हाल ही में राष्ट्रीय प्रेस दिवस के मौके पर बोलते हुए केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि ओरिजनल कंटेंट बनाने वाले पारंपरिक मीडिया संस्थानों को नुकसान हो रहा है, क्योंकि दिग्गज टेक कंपनियां कंटेंट यूज करने के बदले मूल पब्लिशर्स को उचित मुआवजा नहीं दे रही हैं. उन्होंने कहा कि पारंपरिक मीडिया संस्थान कंटेंट बनाने में मैन पावर और टेक्नलॉजी में बड़ा निवेश करते हैं, लेकिन फेसबुक-एक्स जैसे संस्थान इनके ही कंटेंट से कमाई करते हैं.
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FIRST PUBLISHED :
November 18, 2024, 17:32 IST