मुजफ्फरपुर. राम-नाम-मनि-दीप धरु, जीह देहरी द्वार, ‘तुलसी’ भीतर बाहिरौ, जौ चाहसि उजियार।। तुलसीदास जी कहते हैं कि यदि तुम अपने हृदय के अंदर और बाहर दोनों ओर प्रकाश चाहते हो तो राम-नाम रुपी मणि के दीपक को जीभ रुपी देहली के द्वार पर धर लो. कुछ इसी तरह मुजफ्फरपुर में एक ऐसे राम भक्त हैं. जो राम भक्ति में अपने जीवन को ही राम के नाम कर दिया है और अपने दरवाजे पर राम पेपर और कलम के साथ राम की भक्ति में लीन हो गए है. इन्होंने अपने हाथों से 12 बार श्रीरामचरितमानस लिख दिया है और अब 13वीं बार श्रीरामचरितमानस लिखने के अंतिम चरण पर है. इनका नाम आनंद मोहन सिन्हा है यह मुजफ्फरपुर जिले के जोगनी जागा के रहने वाले है इनकी उम्र 71 साल है. इन्होंने जीवन के पूरे दिन श्रीरामचरितमानस लिखने का संकल्प लिया है.
आनंद मोहन सिन्हा ने Local 18 को बताया की पिता की मृत्यु के बाद उनकी अलमारी में 1979 में परदादी के हाथ की लिखी श्रीरामचरितमानस मिली. जो पूरी तरह से नष्ट हो चुकी थी. यह देख कर मुझे काफी दुख हुआ और तभी से मेरे मन में श्रीरामचरितमानस लिखने का प्रेरणा आ गई. मगर उस समय में मेरी सिंचाई विभाग में नई नौकरी लगी थी जिस कारण श्रीरामचरितमानस लिखने का काम शुरू नहीं कर सका. हर दिन इसे लेकर मन में चिंता जैसी स्तिथि बनी रहती थी फिर मैंने वर्ष 2005-06 में श्रीरामचरितमानस लिखना शुरू किया. पहली बार एक श्रीरामचरितमानस लिखने में मुझे पांच वर्ष लग गए.
आनंद मोहन सिन्हा ने आगे बताया कि मैं सिंचाई विभाग में कनीय अभियंता की नौकरी कर रहा था काम का काफ़ी दबाव था, मगर श्रीरामचरितमानस लिखने में पांच वर्ष का समय लगना भी कुछ अधिक था. लेकिन रिटायर्ड होने के बाद फिर भी जब लिख रहा था उस समय गति काफी धीमी रही एक साल में एक श्रीरामचरितमानस ही पूरी हो पा रही थी. फिर मन और चिंतित रहने लगा जिसके बाद मैंने वर्ष 2021 में पूर्वज द्वारा गांव में बनाए गए रामजानकी मंदिर में 21 दिनों का अनुष्ठान किया.
पांच बार श्रीरामचरितमानस का संपूर्ण पाठ किया. इसके बाद लिखना शुरू किया. फिर अपने दरवाजे पर ही श्री राम का नाम लेकर टेबल कुर्सी सेट किया और फिर तब से मैं यह लिखते आ रहा हूं. मैंने अब तक 12 बार श्रीरामचरितमानस लिख दिया है और 13वीं बार लगभग पूरी होने के कगार पर है. उन्होंने आगे बताया की मैं रोजाना विधि विधान से श्रीरामचरितमानस लिखते आ रहा हूं, रोज हम सुबह शाम करीब 4 घंटा रामचरितमानस लिखते हैं और जब तक लेखनी साथ देगी तब तक श्रीरामचरितमानस लिखता रहूंगा.
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FIRST PUBLISHED :
September 22, 2024, 21:56 IST