मंदिर में विराजमान माता भगवती
पलामू: जहां आस्था की बात होती है, वहां पौराणिक मान्यताएं और कथाएं उभर कर सामने आती हैं. ऐसी ही एक आस्था और मान्यता का केंद्र झारखंड के पलामू जिले में है. यूं तो यह मंदिर कामना पूरक मंदिर है, मगर भैसाखुर के नाम से प्रसिद्ध है. इसकी कहानी बड़ी ही रोचक और खास है.
भैसाखुर मंदिर का इतिहास
दरअसल, पलामू जिले के सदर प्रखंड के जमुने गांव में स्थित भैसाखुर मंदिर का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है. इस मंदिर की शुरुआत देवक्कड़ महाराज द्वारा की गई थी, जिनकी तस्वीर आज भी मंदिर में लगी हुई है. बता दें कि घने जंगल और सुनसान इलाके में जहां दूर-दूर तक कोई नहीं रहता था, उस जमाने में देवक्कड़ महाराज एक बाघ और भैंसा रखते थे, जिससे जुड़ी कहानी आज भी प्रसिद्ध है.
मंदिर की स्थापना और जीर्णोद्वार
मंदिर के पुजारी कुश्मकांत पांडे ने लोकल18 को बताया कि यहां माता भगवती की स्थापना लगभग 60 वर्ष पहले हुई थी. मगर यहां 100 साल से भी अधिक वर्षों से शिवलिंग स्थापित है, जिसके नीचे से आज भी जल निकलता है. उन्होंने कहा कि 60 वर्ष पहले स्थानीय निवासी बिहारी पूरी आकर मंदिर का जीर्णोद्वार किए, जिसके बाद यहां मां दुर्गा की प्रतिमा जयपुर से लाकर स्थापित की गई. तब से आज तक मंदिर में पूजा-अर्चना होती आ रही है.
बाघ और भैंसे की रोचक कहानी
उन्होंने आगे बताया कि देवक्कड़ महाराज ने बाघ और भैंसे को रखा था, जो एक दिन अचानक आपस में भिड़ गए. यह युद्ध घंटों तक चला. अंत में भैंसे ने बाघ को हरा दिया, जिसका निशान एक पत्थर पर छप गया. इसके बाद से मंदिर को भैसाखुर के नाम से जाना जाने लगा. इस मंदिर की सबसे रोचक बात है कि खुदाई में शिवलिंग निकला है. इसके साथ-साथ शिवलिंग वाले स्थान के पास से हमेशा जमीन के नीचे से जल निकलता रहता है.
नवरात्रि में रामलीला का आयोजन
आगे बताया कि नवरात्रि के अवसर पर मां दुर्गा की 9 दिनों तक पाठ कराया जाता है. इस दौरान हर रात आस-पास से ग्रामीण आकर पर्दे पर रामलीला देखते हैं. हर साल यहां नवरात्रि के अवसर पर 9 दिनों तक रामलीला का आयोजन होता आ रहा है. यह परंपरा कई वर्ष पुरानी है. इसके अलावा संधि पूजा के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. पूजा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं.
दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
उन्होंने बताया कि इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु पूजा-अर्चना करने आते हैं. यह कामना पूरक मंदिर है. कामना पूरी होने पर श्रद्धालु साड़ी, कपड़े और सिंगार के सामान मां को भेंट करते हैं. झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ से श्रद्धालु पूजा-अर्चना करने आते हैं. मंदिर परिसर में मां दुर्गा, माता काली, बजरंग बली, शिवलिंग और शिव परिवार विराजमान हैं. मंदिर परिसर के मैदान में सप्ताह में दो दिन सब्जी बाजार लगता है, जहां से स्थानीय ग्रामीण सब्जी खरीदते हैं. वहीं शिवरात्रि के अवसर पर मेले का आयोजन होता है.
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FIRST PUBLISHED :
October 2, 2024, 23:24 IST