गढ़वाल विवि के चौरास परिसर स्थित फिश हैचरी.
श्रीनगर गढ़वाल. उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में अब पारंपरिक खेती से किसानों की आमदनी नहीं हो रही है. सालभर मेहनत करने के बाद भी उनकी फसल से इतना पैसा नहीं मिल पाता कि वे अगली फसल के लिए बीज भी खरीद सकें. ऐसे में श्रीनगर गढ़वाल स्थित गढ़वाल विश्वविद्यालय (Garhwal University) का जंतु विज्ञान विभाग किसानों को मछली पालन के लिए प्रोत्साहित कर रहा है ताकि वे मछली पालन से अच्छी इनकम कर सकें. इस साल जंतु विज्ञान विभाग ने अपनी फिश हैचरी में 3 क्विंटल पंगास, रोहू, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प मछलियों का उत्पादन किया है ताकि पर्वतीय क्षेत्र के किसान पारंपरिक खेती छोड़कर मछली पालन के क्षेत्र में काम कर सकें.
जंतु विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक आरएस फर्त्याल ने लोकल 18 को बताया कि विभाग द्वारा चौरास परिसर की हैचरी में पंगास, जयंती रोहू और कॉमन कार्प मछलियों का उत्पादन किया जा रहा है. उनका उद्देश्य उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को मछली पालन के लिए प्रोत्साहित करना है. सरकार लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित कर रही है. वे भी फिशरी के छात्रों को मछली पालन के बारे में जानकारी दे रहे हैं ताकि पढ़ाई पूरी करने के बाद जिन छात्रों के पास जमीन है, वे मछली पालन कर स्वरोजगार शुरू कर सकें. छात्र यहां मछली पालन कर उसे बाजार में बेच रहे हैं और उसी आय से अगली बार मछली पालन के लिए निवेश कर रहे हैं.
पंगास मछली से अच्छा मुनाफा
उन्होंने बताया कि उनके द्वारा लगभग 3 क्विंटल मछली का बीज डाला गया है और अभी तक 2-3 दिनों में 40 किलो तक मछली वे बाजार में बेच चुके हैं. पंगास मछली लगभग 6 माह में बाजार में बेचने के लिए तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को जल्दी मुनाफा होता है. जो किसान मछली पालन का प्रशिक्षण लेना चाहते हैं, वे जंतु विज्ञान विभाग में आकर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और प्रशिक्षण ले सकते हैं.
मछली पालन स्वरोजगार का अच्छा जरिया
एमएससी के छात्र अजय भूषण ने लोकल 18 से कहा कि यहां पर मछली पालन और पॉन्ड मैनेजमेंट के बारे में बताया जाता है. विभाग में फिश हैचरी होने के चलते उन्हें यहां प्रैक्टिकल जानकारी मिल जाती है. मछली पालन स्वरोजगार का काफी अच्छा जरिया है. पर्वतीय क्षेत्रों के किसान मछली पालन से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
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FIRST PUBLISHED :
October 23, 2024, 24:36 IST