जमीन में बैठकर खाना खाने का रिवाज खास
बागेश्वर: उत्तराखंड राज्य देश-विदेश में अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और संस्कृति को लेकर प्रचलित है. यहां के शुभ कार्यों में आज भी कई पुराने तौर-तरीके अपनाएं जाते हैं. ऐसे ही उत्तराखंड की शादियों में जमीन पर बैठकर खाना खाने का पारंपरिक रिवाज है. इसकी खूबसूरत झलक यहां की शादियों में देखने को मिलती है. लोकल 18 से खास बातचीत करते हुए प्रोफेसर राकेश चंद्र रयाल बताते हैं कि जमीन पर बैठकर खाना खाने के कई फायदे हैं और यह रिवाज पहाड़ में पौराणिक काल से ही चला आ रहा है. आज की युवा पीढ़ी ने भी इसे जिंदा रखा है.
शुद्धता और सादगी का प्रतीक
शादी के दौरान पहाड़ की हरी-भरी वादियों के बीच जमीन पर बैठकर भोजन करना एक अनोखा अनुभव है. यह परंपरा सामूहिकता एकता और सादगी का प्रतीक भी है. इसमें प्रत्येक व्यक्ति पंक्तिबद्ध होकर पत्तल या थाली में खाना खाता है. प्रोफेसर राकेश चंद्र रयाल बताते हैं कि यह परंपरा न केवल सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है. इस रिवाज में खाना बनाते वक्त शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है.
सामाजिकता और स्वास्थ्यवर्धक
जमीन पर बैठकर खाना खाने के पीछे कई वैज्ञानिक कारण छिपे हैं. यह रीति न केवल संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है. यह स्थिति आरामदायक होती है, जिस कारण पाचन प्रक्रिया में सुधार आता है. यह परंपरा सबको एक समान मानने और भाईचारे का संदेश देती है.
युवा पीढ़ी का योगदान
समय के साथ कई रीति-रिवाज खो जाते हैं, लेकिन उत्तराखंड की शादियों में यह परंपरा आज भी कायम है. खास बात यह है कि आज की युवा पीढ़ी भी इस रिवाज को अपना रही है और पूरे उत्साह के साथ निभा रही है. आधुनिकता के बावजूद भी उत्तराखंड के लोग अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं और अपनी संस्कृति को संजोने का काम कर रहे हैं.
सांस्कृतिक महत्व
इस रिवाज में मेहमानों के प्रति आदर और सम्मान की भावना झलकती है. इसमें भोजन की शुरुआत से लेकर समापन तक अनुशासन और समर्पण का भाव रहता है. उत्तराखंड की शादियों में जमीन पर बैठकर भोजन करना अनुशासन और सामूहिकता का प्रतीक है. यह अनोखी रीति लोगों को संस्कृति से जोड़ती है और लोगों को स्वस्थ जीवन जीने का संदेश भी देती है. आधुनिकता के इस दौर में भी यह परंपरा जीवंत है और युवा इसका संरक्षण कर रहे हैं, यह उत्तराखंड के लिए गर्व की बात है.
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FIRST PUBLISHED :
November 24, 2024, 13:45 IST