बहराइच: किसान जगन्नाथ प्रसाद मौर्य पिछले कई सालों से मोटे अनाज की खेती करते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि एक हेक्टयर में खर्चा सिर्फ जोताई और बीज का आता है बाकी इस फसल में कोई खास खर्चा नही आता है. ये फसल लगभग 90 दिनों में तैयार होने वाली फसल मानी जाती है और मोटे अनाज की डिमांड भी मार्केट में बढ़ती जा रही है. पहले के जमाने में लोग इस अनाज का बहुत इस्तेमाल करते थे और एक बार फिर मार्केट में इसकी मांग बढ़ रही है.
पहले के लोग करते थे इस अनाज का इस्तेमाल
समय के साथ-साथ मोटे अनाजों का चलन बिल्कुल खत्म होता जा रहा है. इसको पूर्ण रूप से बढ़ावा देने के लिए सरकार भी नई-नई रणनीतियां बनाकर किसानों को मुफ्त में बीज भेज रही है, मुफ्त में ट्रेनिंग करवा रही है और किसानों को मोटे अनाज की खेती के लिए जागरूक कर रही है. अब किसान भी धीरे-धीरे मोटे अनाज के प्रति जागरूक हो रहे हैं.
क्या होती है तैयार होने के बाद कीमत
बदलते वक्त के साथ मडुआ समेत मोटे अनाजों की डिमांड भी बढ़ती जा रही है. बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां, बड़े-बड़े शहरों में इन मोटे अनाजों से तरह-तरह के फूड बनाए जाते हैं और फिर महंगे दामों में फूड मार्केट में बेचे जाते हैं. ये लोगों को पसंद भी आते हैं, इन्हीं मोटे अनाजों में से एक अनाज मडुआ है. इसका चावल खाने में काफी फायदेमंद माना जाता है.
यूपी में मडुआ की बुवाई क्यों कम होती है
यूपी में मडुआ की बुवाई क्यों कम होती है कि का जवाब ये है कि यहां मडुआ की बिक्री में बहुत समस्या आती है. यहां किसानों को मडुआ की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है. यूपी में शायद ही कोई ऐसा जिला हो जहां पर इस धान को निकालने वाली मशीन हो और फिर इसकी मांग भी कम होती है. इसलिए यूपी के किसान ज्यादातर इस फसल पर ध्यान नहीं देते हैं. हालांकि अब यूपी सरकार किसानों को मडुआ या मोटे अनाज उगाने को लेकर प्रेरित कर रही है.
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FIRST PUBLISHED :
November 20, 2024, 10:02 IST