हाइलाइट्स
आरजेडी को अपने ही गढ़ में क्यों हार मिली, यह खतरे की घंटी तो नहीं?उपचुनाव में आरजेडी की हार पर तेजस्वी करेंगे मंथन, आगे है बड़ी लड़ाई.
पटना. बिहार उपचुनाव के नतीजा आ गया है और इसमें एनडीए ने चारों सीटें जीत ली हैं और इंडिया अलाइंस को झटका लगा है. खास तौर पर आरजेडी के लिए तो यह सियासी तौर पर बहुत बड़ा आघात है. दरअसल, इस उपचुनाव को वर्ष 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था. उपचुनाव का परिणाम जहां नीतीश कुमार के साख की परख थी तो वहीं तेजस्वी यादव की आरजेडी के मूल जनाधार (मुस्लिम-यादव गठजोड़) की मजबूती परीक्षा भी थी. तेजस्वी यादव दोहरी परीक्षा भी दे रहे थे क्योंकि उनके नेतृत्व की परख भी इस उपचुनाव से होनी थी. लेकिन, 2020 विधानसभा चुनाव में इन चार सीटों में तीन सीटों पर जीतने वाली आरजेडी उपचुनाव में एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हो सकी. जाहिर तौर पर यह बहुत बड़ा सेटबैक कहा जा रहा है.
इमामगंज से केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की बहू दीपा मांझी ने आरजेडी के प्रत्याशी रौशन मांझी को 5,945 वोटों से हरा दिया. वहीं, तरारी से बाहुबली सुनील पांडे के बेटे विशाल प्रशांत ने भाकपा माले प्रत्याशी राजू यादव को 10 हजार से ज्यादा वोटों से पराजित कर दिया. वहीं, बेलागंज से जदयू की प्रत्याशी मनोरमा देवी ने सांसद सुरेंद्र यादव के बेटे आरजेडी प्रत्याशी विश्वनाथ सिंह को 21,391 वोटों से हरा दिया. जबकि, रामगढ़ में बीजेपी के अशोक कुमार सिंह ने यहां बसपा के सतीश सिंह यादव 1362 मतों से हराया जबकि आरजेडी के अजीत सिंह एनडीए उम्मीदवार से करीब 27 हजार मतों से पीछे रह गए. जाहिर है आरजेडी की चारों सीटों पर हार बड़ी टीस देने वाली रही.
पीके फैक्टर से आरजेडी हुई डैमेज!
इन चारों विधानसभा उपचुनाव में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का फैक्टर भी एनडीए के काम आया और मुस्लिम-यादव गठजोड़ के मतों में बिखराव की वजह बनी. हालांकि, प्रशांत किशोर की पार्टी भी उतना दमदार प्रदर्शन नहीं कर पाई जितनी अपेक्षा थी, लेकिन तेजस्वी यादव को बड़ा झटका दे पाने में जरूर कामयाब रही. विधानसभा की इन चार सीटों पर जब उपचुनाव हो रहा था तब कहा जा रहा था कि यह 2025 का सेमिफाइनल है. इसमें ही पता चल जाएगा कि बिहार की जनता का क्या क्या रुख है यह पता चल जाएगा.
एनडीए की संयुक्त ताकत पड़ी भारी
उपचुनाव के नतीजों में हुआ भी कुछ ऐसा, जनता ने एक बार फिर एनडीए पर विश्वास जताया और सभी चारों सीटों पर जीत का परचम लहराया, वहीं करारी हाक के बाद भी तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि इंडि अलायंस 2025 का चुनाव जीतेगा. लेकिन राजनीति के जानकार कहते हैं कि तेजस्वी यादव का दावा अलग है, लेकिन इतना तय है कि अगर एनडीए एकजुट रहा और नेतृत्व के तौर पर सामने नीतीश कुमार का चेहरा रहा तो तेजस्वी यादव का यह दावा बस दावा ही रह जाएगा. एनडीए की संयुक्त ताकत से एकजुट इंडि अलायंस के लिए भी आसान लड़ाई नहीं होगी.
तेजस्वी ने जो कमाया वह गंवा दिया!
दरअसल, वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान एनडीए से अलग हो गये थे और उन्होंने खासतौर से जिन सीटों पर जदयू चुनाव लड़ रहा था, वहां इस गठबंधन के वोटबैंक में निर्णायक सेंधमारी कर दी थी. इसका खामियाजा जहां करीब तीन दर्जन सीटों पर जदयू को उठाना पड़ा और नीतीश कुमार को झटका लगा था. दूसरी ओर राजद और महागठबंधन प्रत्याशियों को इसका सीधा लाभ मिल गया और तेजस्वी के नेतृत्व में आरजेडी 75 सीटें जीतने में सफल रही थी. तब कहा जा रहा था कि तेजस्वी यादव राजनीति के गुर में माहिर हो चुके हैं और अब वह आरजेडी की कमान संभाल लेंगे.
ऐसा रहा तो इंडि गठबंधन के लिए कठिन होगा
हालांकि, उस समय भी चिराग के बिना ही एनडीए ने जीत हासिल की और इतना बहुमत पा लिया की नीतीश कुमार के नेतृत्व में फिर एनडीए गठबंधन की सरकार बन गई. बाद के दौर में 2024 के लोकसभा चुनाव में जब चिराग पासवान फिर एनडीए के साथ आये तो 40 में 30 सीटें जीतने में एनडीए गठबंधन कामयाब रहा. अब जब उपचुनाव में एकबार फिर एनडीए की एकजुट रहा तो 100 प्रतिशत सफलता मिली. जाहिर है कि अगर नीतीश कुमार का चेहरा रहे और एनडीए एकजुट होकर लड़े तो 2025 चुनाव में इस चुनौती से निपटना इंडिया गठबंधन के लिए कठिन होगा.
तेजस्वी की राजनीति के लिए जनता का मैसेज
वहीं, राजनीति के जानकार कहते हैं कि तेजस्वी यादव के लिए लड़ाई तो कठिन है, लेकिन उपचुनाव में उनको टीस के साथ जनता ने कुछ मैसेज भी भेजे हैं, शायद वह पढ़ पाएं तो बेहतर हो. दरअसल, जिस प्रकार की राजनीति तेजस्वी यादव ने 2020 में की थी और सर्वसमाज को लेकर चलने की बात को मजबूती से आगे बढ़ाया था, बदले हुए राजनीतिक दौर में यह काम कर गया था. मुस्लिम-यादव वोटों के समीकरण को साधते हुए समाज के सभी वर्गों का समर्थन उन्हें मिला था. खास तौर पर युवाओं का समर्थन तेजस्वी यादव को भरपूर मिला था. लेकिन, बाद के दौर में उनकी राजनीति कई मुद्दों पर एकतरफा दिखने लगी जिससे जनता में मैसेज गलत गया.
आरजेडी का परंपरागत वोट बैंक भी दरका
विधानसभा उपचुनाव में आरजेडी आरजेडी का परंपरागत मुस्लिम यादव समीकरण दरक गया तो अतिपिछड़ी और पिछड़ी जातियों ने भी बिल्कुल ही किनारा कर लिया. खास तौर पर कुशवाहा समाज का समर्थन उन्हें लोकसभा चुनाव में मिला था, लेकिन विधानसभा उपचुनाव में यह वर्ग उतनी मजबूती से उनके साथ नहीं दिखा. आरजेडी के गढ़ बेलागंज में माय समीकरण बिखर गया तो रामगढ़ में यादवों ने लालू यादव और तेजस्वी यादव का साथ छोड़ दिया. इमामगंज में दलित वोटों को एक रखने में नाकामयाब रहे तो तरारी में सवर्ण विरोध के नाम पर सीपीआई माले पर अतिशय भरोसा नुकसान कर गया.
तेजस्वी यादव के लिए यह है खास सबक
राजनीति के जानकार कहते हैं कि, उपचुनाव तेजस्वी यादव के लिए एक बहुत बड़ा मैसेज है. एक तरफ वह बिहार में सर्वसमाज की बात करते हैं, लेकिन चुनावी पिच पर माय समीकरण में जीत हार का गुणा गणित करने लगते हैं. खास बात यह कि उनकी पहचान सीजनल पॉलिटिशियन की भी बनती जा रही है जो अधिकतर सोशल मीडिया में एक्टिव हैं, न कि जमीन पर. दूसरा यह कि अब उनको लालू यादव के चेहरे के भरोसे ही रहना आने वाले समय में भारी पड़ सकता है. लालू यादव को बीमार हालत में भी चुनावी क्षेत्रों में लेकर घूमना भी उनके लिए नेगेटिव छवि बनाने वाला रहा. उन्हें अब स्वयं जनता के बीच रहना होगा और तेजस्वी यादव को 2025 से अभी से तैयारी करनी होगी और जनता का विश्वास पाना होगा.
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FIRST PUBLISHED :
November 24, 2024, 08:04 IST